बर्बर कृत्य

इतनी बड़ी घटना को बेखौफ होकर अंजाम देने वालों पर राजनीतिक छत्रछाया न हो, यह मुश्किल लगता है

कोई सामान्य व्यक्ति इतना दुस्साहस नहीं कर सकता

पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा में एक 'जोड़े' को छड़ी से पीटने की घटना का वीडियो रोंगटे खड़े कर देनेवाला है। इस राज्य में यह क्या हो रहा है? वीडियो देखकर लगता नहीं कि पिटाई करने वाले शख्स को कानून का कोई डर है। उसने जिस तरह युवक-युवती को सरेआम पीटा, वह अत्यंत बर्बर है। हैरत होती है कि 21वीं सदी में ऐसी घटना हुई, वह भी हमारे देश में! मजमा लगाकर 'इन्साफ' करने की ऐसी घटनाएं पहले अफगानिस्तान में खूब होती थीं। वहां आज भी तालिबान शासन में सजा देने के खौफनाक तरीके प्रचलित हैं। लेकिन भारत में यह कैसे हो सकता है, जहां कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए एक आधुनिक व स्पष्ट तंत्र है? आरोपी अपने हाथों में छड़ी लेकर युवक-युवती को पीटता रहा और लोग खड़े तमाशा देखते रहे! क्या तृणमूल कांग्रेस के राज में कुछ लोग इतने उद्दंड हो गए हैं कि उन्हें किसी की परवाह नहीं है? आरोपी तजमुल उर्फ जेसीबी को चोपड़ा से तृणकां विधायक हमीदुल इस्लाम का करीबी बताया जा रहा है। इतनी बड़ी घटना को बेखौफ होकर अंजाम देने वालों पर राजनीतिक छत्रछाया न हो, यह मुश्किल लगता है। कोई सामान्य व्यक्ति इतना दुस्साहस नहीं कर सकता। घटना के संबंध में हमीदुल ने जो बयान दिया, एक विधायक से तो उसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। वे किन 'नियमों' का हवाला दे रहे हैं? 'सामाजिक सम्मान' और 'रिवाजों' के नाम पर ऐसे बर्बर कृत्य की अनुमति किसी को नहीं है। ऐसी घटना पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, इराक या बांग्लादेश जैसे देशों में होती (तब भी यह निंदनीय कहलाती), तो एक बार यह माना जा सकता था कि वहां सामाजिक समानता, मानवाधिकारों की स्थिति अच्छी नहीं है, न्याय प्रणाली पर रूढ़िवाद हावी है, लेकिन भारत में प. बंगाल के विधायक पीड़ित महिला के लिए ही आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं!

यह तो इस पूरे कांड का किसी ने वीडियो बना लिया, अन्यथा न इसके बारे में सबको पता चलता और न ही तजमुल की गिरफ्तारी होती। वीडियो में आरोपी शख्स दोनों को छड़ी से तो पीटता ही है, वह युवती के बाल पकड़कर उसे लात भी मारता है। उसकी हरकत का कोई विरोध नहीं करता, बल्कि हर कोई मूकदर्शक बना रहता है! क्या प. बंगाल में दबंगों व अपराधियों का दुस्साहस इतना ज्यादा बढ़ गया है कि कोई उनका विरोध भी नहीं कर सकता? संदेशखाली की घटना को भी कौन भुला सकता है? महिलाओं के खिलाफ इतनी क्रूरता की घटनाएं पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े करती हैं। हर राज्य की पुलिस का अपना खुफिया नेटवर्क होता है, जिससे जुड़े लोग उसके आंख-कान बनकर महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजते रहते हैं। क्या पुलिस के पास आरोपी तजमुल के बारे में कोई सूचना नहीं थी? जब उसने 'तुरंत इन्साफ' करने के लिए यह मजमा लगाया तो पुलिस को कैसे पता नहीं चला? वीडियो में साफ दिखता है कि काफी बड़ा जमघट लगा था। क्या वहां मौजूद लोगों में से एक ने भी पुलिस को सूचित नहीं किया, जबकि सूचना देने के कई सरल विकल्प हैं? वीडियो वायरल होने के बाद आरोपी गिरफ्तार भी हुआ और तृणकां ने उससे पल्ला झाड़ते हुए पीड़ितों को सुरक्षा उपलब्ध कराने और घटना में शामिल लोगों में से किसी को न बख्शने की बात कही। अगर हकीकत में ऐसा हो तो ठीक है, लेकिन बेहतर यह होगा कि राज्य सरकार तजमुल जैसे दबंगों पर शिकंजा कसे और उन विधायकों को मर्यादा का पाठ पढ़ाए, जो वोटबैंक को 'खुश रखने' के लिए वाणी और व्यवहार का संयम भूल जाते हैं।

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