जनसंख्या नियंत्रण: प्रभावी नीति बनाएं

अगर देश को विकसित बनाना है तो 'जनसंख्या नियंत्रण एवं संतुलन' की प्रभावी नीति अपनानी ही होगी

आज जनसंख्या नियंत्रण पर गंभीरता से चर्चा करने की जरूरत है

भारत की जनसंख्या को लेकर देश-विदेश की शोध संस्थाओं द्वारा जारी किए जा रहे आंकड़ों का एक ही सार है- अब सरकार को इस संबंध में गंभीरता दिखाते हुए ठोस उपाय करने होंगे। राजस्थान में तो जनसंख्या नियंत्रण नीति के बारे में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बयानों से सियासत गरमाई हुई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। हर राज्य में समय-समय पर यह मुद्दा चर्चा में रहा है। अब लोग सोशल मीडिया पर लिखने लगे हैं कि अगर देश को विकसित बनाना है तो 'जनसंख्या नियंत्रण एवं संतुलन' की प्रभावी नीति अपनानी ही होगी। इस समय हालात ऐसे हैं कि सरकार अरबों रुपए खर्च कर मकान व अस्पताल बनाती है, लेकिन लोगों की भारी तादाद के सामने ये सुविधाएं नाकाफी होती हैं। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों, स्टाफ और बेड की कमी का तो जिक्र किया जाता है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। अगर सरकार इन सुविधाओं में कुछ बढ़ोतरी कर भी दे तो पांच साल बाद ये नाकाफी ही होंगी। बसों, ट्रेनों में भारी भीड़ के कारण यात्रा करना मुश्किल होता जा रहा है। जनरल डिब्बों की हालत किसी से छिपी नहीं है। रोजगार की उपलब्धता की बात करें तो सरकारों के पास कोई जवाब नहीं होता। एक-एक पद के लिए हज़ारों परीक्षार्थी मैदान में होते हैं। हर साल स्कूलों-कॉलेजों से लाखों युवा उत्तीर्ण होकर रोजगार की उम्मीद में आवेदन करते हैं, लेकिन कामयाबी सबको नहीं मिलती। कई युवाओं की तो पूरी जवानी आवेदन करने और परीक्षाएं देने में बीत जाती है। क्या जनप्रतिनिधियों को इन सभी मुद्दों को प्राथमिकता पर लेते हुए जनसंख्या नियंत्रण पर गंभीरता से चर्चा नहीं करनी चाहिए?

जरूर करनी चाहिए, लेकिन बात जब जनसंख्या नियंत्रण एवं संतुलन की होती है तो कुछ नेता इसे 'किसी और ही दिशा' में ले जाने की कोशिश करने लगते हैं। प्राय: खुद को बहुत प्रगतिशील व बुद्धिजीवी की तरह पेश करने वाले नेता भी इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बचते हैं। आज सर्वसमाज तक यह संदेश पहुंचाना होगा कि देश के पास संसाधन सीमित हैं, जमीन सीमित है, पानी सीमित है, अन्न सीमित है, नौकरियां सीमित हैं, सुविधाएं सीमित हैं ...। अगर जनसंख्या इसी तरह बढ़ती रही तो भविष्य में अत्यंत गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। आज भी स्थिति चिंताजनक है। सरकार अपनी शक्ति व सामर्थ्य से जितने मकान बनाएगी, जितना राशन देगी, जितने कॉलेज और अस्पताल खोलेगी, जितनी ट्रेनें-बसें चलाएगी ... ये सुविधाएं कुछ साल बाद नाकाफी होंगी ही होंगी। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि के कारण सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। सभी युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरियां नहीं मिल रही हैं। महंगाई बढ़ती जा रही है। ऐसे में गंभीर असंतोष पैदा हो सकता है। जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वे चर्चा करने के लिए बैठें और ऐसी जनसंख्या नियंत्रण नीति बनाएं, जिससे भविष्य में हालात बेहतर हों। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि 'अगर भारत को विकसित देश बनाना है तो यहां भी चीन की तरह एक संतान नीति लागू कर देनी चाहिए।' चीन ने जिस ढंग से नीति बनाई और लागू की, उसके गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। हमें भारत की सामाजिक आवश्यकताओं एवं सांस्कृतिक मान्यताओं को ध्यान में रखकर ही उपाय करने होंगे। कुछ राजनीतिक दल इस संबंध में चर्चा करने से इसलिए भी हिचकते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वोटबैंक के नाराज़ होने की आशंका होती है। वास्तव में आज जनता काफी जागरूक हो चुकी है। लोग चाहते हैं कि उन्होंने जो परेशानियां उठाईं, वे उनकी संतानों को न उठानी पड़ें ... उन्हें पढ़ाई-लिखाई, भोजन, आवास, चिकित्सा, परिवहन, रोजगार और सभी तरह की गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं मिलें। आज जो राजनीतिक दल जनसंख्या नियंत्रण एवं संतुलन की बात करेगा, उसे जनसमर्थन जरूर मिलेगा।

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