कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस युद्ध के नायकों को नमन करते हुए जिस तरह पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया, उसकी चर्चा इस्लामाबाद में तो होगी ही, रावलपिंडी (जहां पाक फौज का मुख्यालय है) में जरूर होगी। प्रधानमंत्री ने सत्य कहा कि 'पाकिस्तान ने इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा और वह स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आतंकवाद की आड़ में छद्म युद्ध जारी रखे हुए है।' पाकिस्तान कोई सबक सीखे या न सीखे, कारगिल युद्ध और उसके बाद हुईं विभिन्न घटनाओं को ध्यान में रखते हुए हमें ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को अधिक मजबूत बनाया जा सके। निस्संदेह कारगिल युद्ध के अनुभव के बाद सरकारों ने ऐसे कई बदलाव किए, जिनसे देश अधिक सुरक्षित हुआ, लेकिन आज भी आतंकवादी घटनाओं में हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। यह बहुत गंभीर चिंता का विषय है। हाल में जम्मू-कश्मीर में जिस तरह आतंकवादी घटनाओं में जवान शहीद हुए, उससे यह संकेत जरूर मिलता है कि आतंकियों और उनके आकाओं का दुस्साहस काफी बढ़ गया है। जब भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को पटखनी दी थी तो सरहद पार दुश्मन के खेमे में सन्नाटा छा गया था। साल 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और साल 2019 की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के होश फाख्ता हो गए थे। उसे यह बात समझ में आ चुकी थी कि अगर उसने एक और बड़ा आतंकी हमला किया तो भारत की ओर से बहुत बड़े स्तर पर जवाबी कार्रवाई होगी।
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोई बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इतनी बदहाल भी नहीं थी, जितनी आज है। पाकिस्तान आमने-सामने की लड़ाई में न पहले कहीं टिकता था और न आज टिक सकता है। कारगिल युद्ध और उससे पहले जितने भी युद्ध हुए, उस दौरान पाकिस्तान के फौजी नेतृत्व को यह ग़लतफ़हमी थी कि वह विदेशी आक्रांताओं की तर्ज पर हमला करते हुए कब्जा कर लेगा। हालांकि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की भारी शिकस्त के बाद रावलपिंडी को यह बात भलीभांति समझ में आ गई कि अब आमने-सामने की लड़ाई का वक्त चला गया। इसके बाद उसने 'छद्म युद्ध' का तेजी से सहारा लेना शुरू कर दिया। पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों की घुसपैठ, गोलीबारी, बम धमाके, भारत की नकली मुद्रा खपाने की कोशिश, हवाला नेटवर्क, सोशल मीडिया के जरिए हनीट्रैप, ड्रोन उड़ाकर हथियारों व नशीले पदार्थों की तस्करी, फर्जी खबरों का प्रसार कर अलगाववाद को बढ़ावा देना ... जैसी हरकतें इसी का हिस्सा हैं। इनमें परंपरागत युद्धों की तुलना में खर्च बहुत कम आता है, जबकि नुकसान बहुत भारी पहुंचाया जा सकता है। हमें कारगिल के उन योद्धाओं को नमन करते हुए भविष्य की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा। भारत की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की ओर से तो खतरा है ही, चीन की ओर से भी बड़ा खतरा है, जिस पर कम बातचीत होती है। गलवान भिड़ंत और एलएसी पर कई बार टकराव के बाद चीन के नापाक मंसूबे खुलकर सामने आ चुके हैं। पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ करने वाले कई आतंकवादियों के कब्जे से चीनी हथियार और तकनीकी उपकरण मिल चुके हैं। भविष्य में ये नापाक ताकतें हमें नुकसान पहुंचाने के लिए पूरा जोर लगाएंगी। इसके मद्देनज़र ज़रूरी है कि इनकी हरकतों का खूब आक्रामकता से जवाब दिया जाए। सुरक्षा बलों का तेजी से आधुनिकीकरण करते हुए ऐसे तरीके ईजाद किए जाएं, जिनसे दुश्मन को उसकी चालों में ही फंसा दिया जाए। आम जनता को समय-समय पर दुश्मन की साजिशों से अवगत कराया जाए। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जाए। आर्थिक दृष्टि से अधिक शक्तिशाली भारत अपने दुश्मनों पर और ज्यादा शक्ति के साथ प्रहार कर सकेगा।