जवाबदेह कौन?

प्रशासन ने इतनी फुर्ती पहले क्यों नहीं दिखाई?

क्या तब प्रशासन को यह मालूम करने से कोई रोक रहा था?

दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर के 'बेसमेंट' में पानी भर जाने के कारण सिविल सेवा परीक्षा के तीन अभ्यर्थियों की मौत होना अत्यंत दु:खद है। जिन प्रतिभाओं को आगे चलकर देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देना था, उनका यूं दुनिया से चले जाना उनके परिवारों के साथ ही पूरे समाज के लिए बड़ा नुकसान है। हादसे के बाद वहां मौजूद युवाओं ने हंगामा किया और सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए तो प्रशासन की नींद टूटी। उसने फौरन पता लगा लिया कि वहां नियमों का उल्लंघन हुआ था। कोचिंग सेंटर को 'बेसमेंट' का उपयोग 'स्टोर रूम' के रूप में करने की अनुमति थी, लेकिन वहां पुस्तकालय चल रहा था! बड़ा सवाल है- प्रशासन ने इतनी फुर्ती पहले क्यों नहीं दिखाई? क्या तब प्रशासन को यह मालूम करने से कोई रोक रहा था? अगर इतनी चौकसी पहले दिखा देते तो तीन घरों के ये बच्चे आज ज़िंदा होते। आखिर अधिकारियों-कर्मचारियों को हादसे के बाद ही यह क्यों सूझता है कि वहां नियमों का उल्लंघन हो रहा था? अब कोचिंग सेंटर के मालिक और समन्वयक पर गाज गिरी है। दिखावे के नाम पर कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी। सरकार मुआवजा बांटेगी। पक्ष-विपक्ष के नेता एक-दूसरे पर आरोपों के तीर छोड़ेंगे। हफ्ताभर चर्चा होगी। उसके बाद फिर सबकुछ पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा ... एक और हादसा होने तक! हर साल मानसून में ऐसे-ऐसे हादसे होते हैं, जिनके वीडियो देखकर इन्सान घर से निकलने से पहले 10 बार सोचता है। कई जगह बिजली के तार हादसे को दावत देते दिखते हैं। क्या जिम्मेदारों को यह नज़र नहीं आता? आता है, लेकिन सुध तभी लेते हैं, जब कोई इसका शिकार हो जाए। अन्यथा कितनी ही शिकायत कर दें, सिस्टम चिकना घड़ा बन चुका है। नेताओं का जोर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति पर और सरकारों का जोर मुआवजा बांटने पर है। आम आदमी की जान जाती है तो जाए। जवाबदेह कौन है?

पिछले दो दशकों में देश के अलग-अलग शहरों में निजी कोचिंग सेंटर बहुत तेजी से पनपे हैं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन सेंटरों ने कई विद्वान शिक्षकों और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को बेहतर मंच दिया है। विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट सूची में आने वाले कई विद्यार्थी अपनी सफलता का श्रेय कोचिंग सेंटरों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को देते हैं। यहां कोचिंग सेंटरों का होना या न होना मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि जिस जगह अपने बच्चे को पढ़ने भेज रहे हैं, वहां मूलभूत सुविधाएं हैं या नहीं हैं? सुरक्षा के इंतजाम हैं या नहीं हैं? शिक्षक और विद्यार्थियों का उचित अनुपात है या नहीं है? कोचिंग संस्थान द्वारा किए गए सफलता के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन वहां बैठने के लिए मेज-कुर्सी की गुणवत्ता अच्छी है या नहीं है? कक्ष में एसी, पंखे, ट्यूबलाइट आदि तो लगे हैं, अग्निशमन यंत्र है या नहीं है? अगर है तो किस हालत में है? आपात स्थिति में कोचिंग सेंटर से बाहर निकलने के लिए कोई खिड़की या द्वार है या नहीं है? अगर है तो उससे निकलना कितना सुरक्षित है? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाबों को लेकर प्राय: प्रशासन तो उदासीन बना रहता है, अभिभावक भी खास ध्यान नहीं देते। हर किसी की यह जानने में दिलचस्पी होती है कि कोचिंग में कितनी भीड़ उमड़ती है और पिछला परिणाम कैसा रहा ... बच्चे के जीवन की सुरक्षा से जुड़े पहलू पर बात नहीं होती। बात तब होती है, जब किसी कोचिंग सेंटर में हादसा हो जाए! उसके बाद प्रशासन सख्ती दिखाता है, जुर्माना लगाता है। ठीक है, सख्ती दिखानी चाहिए और नियमानुसार जुर्माना भी लगाना चाहिए, लेकिन समय रहते उन खामियों का पता लगाने के लिए जांच क्यों नहीं होती? प्रशासन यह तो कर ही सकता है कि एक सादे कागज पर आसान शब्दों में लिख दे कि कोचिंग सेंटर में ये सुविधाएं होनी चाहिएं और इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इसके बाद कोचिंग सेंटर के बाहर, उसके हर कक्ष और पुस्तकालय आदि में वह लगा दिया जाए। जो बच्चा वहां दाखिला ले, उसे और उसके अभिभावकों को वह जरूर दिया जाए। इससे सुविधाओं की गुणवत्ता और बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इस नियमावली का सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार होना चाहिए। बेशक पढ़ाई और करियर में सफलता जरूरी है, लेकिन इसके साथ जीवन की सुरक्षा भी जरूरी है। विद्यार्थी हो या कोचिंग का कर्मचारी, सबका जीवन सुरक्षित होना चाहिए।

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