भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने वित्तीय क्षेत्र में डिजिटलीकरण से अगली पीढ़ी की बैंकिंग का रास्ता खुलने संबंधी जो टिप्पणी की है, वह भारत की उन्नत वित्तीय यात्रा की सफलता को दर्शाती है। देश में पिछले एक दशक से भी कम अवधि में जिस तरह इंटरनेट सुविधाओं का विस्तार हुआ, उससे डिजिटलीकरण में तेजी आई है। निस्संदेह इस अवधि में लोगों का बैंकिंग सेवाओं के साथ तेजी से जुड़ाव हुआ और इंटरनेट की मदद से वित्तीय क्षेत्र डिजिटल की डगर पर बहुत आगे बढ़ा। दो दशक पहले तक कितने लोग बैंकों की सेवाएं ले पाते थे? वे कितनी सुलभ थीं? आम लोगों के लिए खाते खुलवाने की प्रक्रिया क्या थी? अगर बैंक में छोटा-सा काम भी करवाने जाते तो कितना समय लगता था? इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1969 में 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसके पीछे मंशा थी कि अब बैंकों तक आम लोगों की पहुंच आसान होगी, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन सेवाओं से दूर ही रहा। समय के साथ बैंकों में नई तकनीक भी आई। वहीं, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि बैंकों से सेवाएं लेने की प्रक्रिया आसान नहीं थी। प्राय: बैंकों की शाखाएं शहरों और कस्बों में होती थीं। अगर दूर-दराज के गांव में रहने वाले किसी व्यक्ति को बैंक में जाना होता तो उसका आधा दिन बीत जाता था। कई बार पूरा दिन भी बीत जाता था। कतारों में लगने से थका हुआ इन्सान जब तपती दोपहर या देर शाम को अपने गांव लौटता तो ऐसा महसूस करता, गोया उसने बहुत बड़ी जंग जीत ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में विभिन्न विकास योजनाओं का लाभ देने के लिए आम जनता के बड़ी संख्या में बैंक खाते खुलवाए थे। उस कार्यकाल को इस बात के लिए खासतौर से याद किया जाएगा, क्योंकि उसी दौरान एक ऐसा आधार तैयार हुआ था, जिससे भविष्य में डिजिटल बैंकिंग की राह आसान हुई।
आज आरबीआई की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2026 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था जीडीपी का 20 प्रतिशत होगी। वहीं, कुछ साल पहले एक वरिष्ठ नेता ने जन धन योजना पर सवाल उठाए थे। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि आम लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे बैंक खाता रख सकें, लिहाजा यह एक ऐसी कवायद है, जिसका कोई फायदा नहीं होने वाला। यह भी तर्क दिया गया था कि आम लोग अपने घरों में नकदी रखना पसंद करते हैं, इसलिए वे बैंकों के जरिए लेनदेन करने में सहज महसूस नहीं करेंगे! आज छोटी-से-छोटी दुकान डिजिटल भुगतान स्वीकार करती है। जिन लोगों ने पहले बैंक शाखा भी नहीं देखी थी, वे अब डिजिटल भुगतान में कुशल हो चुके हैं। उन्हें अपने खाते से राशि संबंधी विवरण जानने के लिए बैंक शाखा जाकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है। मोबाइल फोन के कुछ बटन दबाने मात्र से पूरा विवरण सामने आ जाता है। भारतवासियों ने बहुत जल्द इसे अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया। यह तो अभी शुरुआत है। आने वाले वर्षों में भारत में डिजिटलीकरण से बैंकिंग में बहुत बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। जिन बैंक शाखाओं में कभी लंबी-लंबी कतारें लगती थीं, वे बहुत छोटी होकर लगभग समाप्त हो जाएंगी। बैंक शाखा से संबंधित काम छोटा हो या बड़ा, वह ग्राहक के लिए बहुत आसान हो जाएगा। नकदी पर लोगों की निर्भरता धीरे-धीरे कम हो जाएगी। आज शहरों में तो कई लोगों को याद नहीं कि उन्होंने पिछली बार नकद भुगतान कब किया था! कुछ वर्षों बाद यही स्थिति गांवों में देखने को मिलेगी। सस्ती लागत पर वित्तीय सेवाओं तक पहुंच में सुधार होता जाएगा। वर्तमान में जो देश तकनीकी दृष्टि से बहुत उन्नत माने जाते हैं, वे भी भारत के अनुभवों से लाभ पाने और मार्गदर्शन लेने की कोशिशें करेंगे।