दिल्ली सरकार ने शहर में संचालित कोचिंग सेंटरों को विनियमित करने के लिए कानून लाने संबंधी जो घोषणा की है, वह बहुत देरी से लिया गया फैसला है। अगर दशकभर पहले दूरदर्शिता के साथ कोई कानून लाया जाता तो आज हालात बहुत बेहतर होते। सरकार जागी, लेकिन बड़े नुकसान और हंगामे के बाद! दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर के 'बेसमेंट' में पानी भर जाने के बाद हुए हादसे से अन्य राज्यों की सरकारों को भी सजग हो जाना चाहिए। आज हर छोटे-बड़े शहर में जिस तरह शर्तिया पास कराने, सरकारी नौकरी लगाने के वादों के साथ कोचिंग सेंटर खुल रहे हैं, वहां स्थानीय प्रशासन को अपनी आंखें खुली रखनी चाहिएं। कई कोचिंग सेंटरों और पुस्तकालयों में नियमों को ताक पर रखकर प्रवेश दिया जा रहा है, जो भविष्य में एक और हादसे को दावत दे सकता है। देश का नौजवान शहरों में किराए के कमरों में रहकर जिन मुश्किल हालात में सिविल सेवा और अन्य सरकारी नौकरियों से संबंधित परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है, उससे कुछ सवाल भी पैदा होते हैं। देश में कई दशकों से यह धारणा बनी हुई है कि शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना है ... अगर उसमें भी प्रशासनिक सेवा में चले गए तो क्या ही कहने! कई फिल्मों, धारावाहिकों आदि के जरिए किशोरों, युवाओं के मन में यह बात दृढ़ता से बैठा दी गई कि आप जीवन में तभी सफल कहलाएंगे, जब सरकारी नौकरी करेंगे। अभिभावक भी बच्चों पर दबाव डालते हैं कि जीवन में सफल होना है तो सरकारी नौकरी की तैयारी करो। अगर किसी रिश्तेदार का बच्चा कई वर्ष लगाने के बाद सरकारी नौकरी पा गया तो घर के बड़े-बुजुर्ग अन्य बच्चों को ताने मार-मारकर कहते हैं कि आपने जीवन में क्या किया, फलां को देखें, उसकी सरकारी नौकरी है ... उससे कुछ सीखें, उसे अपना आदर्श मानें!
कुछ वर्ष पहले, इंटरनेट से संबंधित सेवाएं देने वाली अमेरिका की एक बहुत बड़ी कंपनी में भारतीय मूल के तकनीकी विशेषज्ञ को सीईओ नियुक्त किया गया (जिनका वेतन करोड़ों रु. में है) तो सोशल मीडिया पर एक कार्टून बहुत वायरल हुआ था, जिसमें एक काल्पनिक रिश्तेदार को यह कहते हुए दिखाया गया था कि अगर वह व्यक्ति (सीईओ) थोड़ी और तैयारी कर लेता तो उसकी अपने जिले में सरकारी नौकरी लग जाती! भारत में जब बच्चा स्कूल में दाखिला लेता है तो वह अपने आस-पास के वातावरण से धीरे-धीरे यही सीखता है कि अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो यह जीवन अधूरा है! जब वह कॉलेज में पहुंचता है तो यह जानकर बड़ा धक्का लगता है कि उसकी डिग्री सरकारी नौकरी नहीं दे सकती। उसके लिए अलग से कोचिंग करनी होगी। इसके अलावा मकान किराए, खाने-पीने, किताबों, आने-जाने आदि पर लाखों रुपए खर्च करने होंगे। मेहनत और समय लगेगा, वह अलग। परीक्षा के दिन अभ्यर्थियों का हुजूम उमड़ता है। एक-एक पद के लिए सैकड़ों-हज़ारों अभ्यर्थियों के बीच कड़ा मुकाबला होता है। चूंकि पद तो चुनिंदा होते हैं, इसलिए कुछ ही अभ्यर्थियों का चयन होता है। बड़ी तादाद तो उन अभ्यर्थियों की होती है, जो काफी जद्दोजहद के बावजूद खाली हाथ रह गए। उन्हें कई लोगों के तीखे बोल सुनने पड़ते हैं। बेशक देश के राजकाज के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों की जरूरत होती है। जिन लोगों का सरकारी नौकरी के लिए चयन होता है, उनकी मेहनत और प्रतिभा को नकारा नहीं जा सकता। समस्या तब पैदा होती है, जब स्कूली दिनों में ही बच्चे के मन में यह बात बैठा दी जाए कि 'यह पढ़ाई सिर्फ सरकारी नौकरी पाने के लिए है।' जो सरकारी नौकरी से संबंधित परीक्षा उत्तीर्ण करता है, वह प्रतिभाशाली होता है, लेकिन जो किसी कारणवश यह परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाता, वह भी प्रतिभा का धनी हो सकता है। उसकी प्रतिभा उसे किसी अन्य क्षेत्र में बुलंदियों तक पहुंचा सकती है। ऐसे बहुत लोग हैं, जो आज अपनी योग्यता के बूते बड़े-बड़े कारोबारी प्रतिष्ठान चला रहे हैं। वे सैकड़ों-हज़ारों लोगों को रोज़गार दे रहे हैं। जो युवा अपनी प्रतिभा का उपयोग सरकारी नौकरी के जरिए देशसेवा में करना चाहता है, वह जरूर करे। इसके साथ ही, सरकार को चाहिए कि वह व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दे। युवाओं को हुनर सिखाए। प्रतिभा की जरूरत हर क्षेत्र में होती है। जो लोग वैज्ञानिक तरीके से खेती करते हैं, आधुनिक तकनीक आधारित व्यवसाय करते हैं, अपनी अभिरुचि को व्यवसाय में बदलकर रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन करते हैं, देश की प्रगति के लिए आयकर देते हैं, वे भी प्रतिभाशाली होते हैं। बेहतर यह होगा कि प्रतिभाओं को पहचाना जाए और वे जिस क्षेत्र के लिए सर्वाधिक योग्य हैं, उन्हें उनके लिए तैयार किया जाए।