ओलंपिक में विभिन्न खेलों के मुकाबलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना बहुत गर्व की बात होती है। जब कोई खिलाड़ी या टीम इसमें पदक जीतते हैं तो वह लम्हा इतिहास के उस सुनहरे अध्याय का हिस्सा बन जाता है, जिसे देशवासी दशकों तक याद करते हैं। जिन्होंने इन मुकाबलों में पदक जीते, वे निश्चित रूप से प्रतिभाशाली हैं। जो किसी कारणवश पदक जीतने से चंद कदम दूर रह गए, वे भी प्रतिभाशाली हैं। बस, कुछ बाधाओं ने उनका रास्ता रोक लिया। अगर वे भविष्य में बेहतर रणनीति और अधिक उत्साह के साथ मैदान में उतरेंगे तो जरूर जीतेंगे। बेशक जब भारतीय खिलाड़ियों को ओलंपिक में भाग लेने के लिए भेजा गया था तो उनसे काफी पदक जीतने की उम्मीदें थीं। हालांकि देश के खाते में उस अनुपात में पदक नहीं आए। हर खिलाड़ी ने अपने स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की कोशिश की। अगर मुकाबले में पिछड़ गए तो निश्चित रूप से प्रयासों में कहीं कोई कमी रही होगी, लेकिन महिला पहलवान विनेश फोगाट के साथ जो हुआ, उससे देशवासियों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। उन्होंने मुकाबले में जिस तरह शानदार आगाज किया और ओलंपिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनकर इतिहास रचा, उससे रजत पदक तो पक्का लग रहा था। हालांकि उनसे उम्मीदें स्वर्ण पदक की थीं। जब यह खबर आई कि उन्हें 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण फाइनल से पहले अयोग्य ठहरा दिया गया है, तो ऐसा महसूस हुआ, गोया लहलहाती फसल पर ओले गिर गए।
यह घटनाक्रम बहुत हैरान कर देनेवाला है। इस कार्रवाई के लिए ओलंपिक खेलों के नियमों का हवाला दिया गया। सिर्फ़ 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी को मुकाबले से वंचित कर देने से कई सवाल भी खड़े होते हैं। क्या जिन मुकाबलों में हमारे खिलाड़ियों का वजन बहुत अहमियत रखता है, वहां निगरानी करने के लिए विशेषज्ञ नहीं थे? जो खिलाड़ी ऐसे मुकाबलों में भाग लेते हैं, उनके लिए कोच, सलाहकार, पोषण विशेषज्ञ, फिजियोथैरेपी विशेषज्ञ और चिकित्सक समेत कई लोगों की टीम होती है। उन सबके रहते यह कैसे हो गया? वजन पर काबू रखने, खिलाड़ी को जरूरी सलाह देने, उस पर अमल करवाने जैसी सावधानियों की शुरुआत तो बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। सौ ग्राम वजन घटाना कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं है, बशर्ते समय पर्याप्त हो। ओलंपिक खेल जैसे मुकाबले से पहले, बहुत कम अवधि में तेजी से वजन घटाने की कोशिश के साथ कुछ जोखिम भी जुड़े होते हैं। बहरहाल, कहीं-न-कहीं चूक तो हुई है। विनेश एक अनुभवी पहलवान हैं। उन्हें इस मामले में बहुत सजग रहना चाहिए था। उन्हें स्वास्थ्य एवं फिटनेस संबंधी सेवा उपलब्ध कराने वाले विशेषज्ञों को भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहिए था। खेलों में मामूली अंतर से हार-जीत का फैसला हो जाता है, इसलिए किसी भी मुकाबले से जुड़े नियमों की कहीं अनदेखी नहीं होनी चाहिए। बात जब ओलंपिक की हो तो खास तौर पर सतर्कता बरतनी चाहिए थी। खिलाड़ियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यास में जरूर पसीना बहाएं। उसके साथ नियमों का गंभीरता से अध्ययन भी करें। नियमावली के एक भी बिंदु का जाने-अनजाने में किया गया उल्लंघन बहुत बड़ा नुकसान करवा सकता है। कोई खिलाड़ी पूरी ताकत लगाने के बावजूद मुकाबले में हार जाए तो यह भी प्रशंसनीय है, चूंकि उसने अपनी ओर से तो पूरी कोशिश की थी। इसके उलट, अगर खिलाड़ी बहुत मजबूत स्थिति में है, उसके पदक जीतने की प्रबल संभावना है और बड़े मुकाबले से ठीक पहले उसे बाहर कर दिया जाए तो यह (अनुभव) सिद्धि प्राप्ति से पहले तपस्या में विघ्न आने जैसा है। अगली बार ऐसा विघ्न न आए, इसके लिए बहुत सावधानी के साथ मजबूत तैयारी होनी चाहिए।