पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के कारनामों को देखकर यह तो अंदाजा लगाया जा सकता था कि वे एक दिन 'जरूर फंसेंगे', लेकिन इतने बुरे फंसेंगे, इसकी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। फैज हमीद किसी समय पाकिस्तान में बहुत ताकतवर शख्सियत माने जाते थे। बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों और कारोबारियों के बीच उनकी दहशत हुआ करती थी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को परवान चढ़ाने की बहुत कोशिशें की थीं। अब उम्र के इस पड़ाव में जाकर पाकिस्तानी फौज ने ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया। न केवल गिरफ्तार कर लिया, बल्कि कोर्ट मार्शल की कार्यवाही भी शुरू कर दी। अगर यह कार्यवाही अपने अंजाम तक पहुंची तो फैज हमीद के पूरे करियर पर बट्टा लग जाएगा। उनके कंधों पर जो 'सितारे' लगा करते थे, वे बरसाती पतंगों की तरह उड़ जाएंगे! फैज हमीद एक ऐसे सैन्य अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर की शांति में आतंकवाद की आग लगाने की भरपूर कोशिशें की थीं। इसके कारण भारत के कई सैनिकों और आम नागरिकों ने जान गंवाई थी। उन पर कारोबारियों से करोड़ों रुपए की उगाही के आरोप भी लगे हैं। अब उसकी लपटें फैज हमीद तक आ पहुंची हैं, वह भी सेवानिवृत्त होने के लगभग दो साल बाद। निस्संदेह मनुष्य कर्मफल से बच नहीं सकता, चाहे पाकिस्तानी फौज के उच्चाधिकारी ही क्यों न हों, जो ओहदे पर रहते हुए अपनेआप को सर्वशक्तिमान समझने लगते हैं।
आज पाकिस्तानी फौज फैज हमीद के पर कतर रही है तो इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सख्ती बरत रही है। पाकिस्तान में फौज के 'कोर' कमांडर को 'करोड़' कमांडर यूं ही नहीं कहा जाता। फैज हमीद भी सेवानिवृत्ति से पहले पेशावर और बहावलपुर में कोर कमांडर रहे हैं। उन्हें सज़ा देकर पाकिस्तानी फौज पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को कड़ा संदेश देना चाहती है कि अगला नंबर आपका ही है। फैज हमीद और इमरान ख़ान की 'दोस्ती' के किस्से सबको मालूम हैं। फैज चाहते थे कि इमरान उन्हें सेना प्रमुख बनाएं और इमरान चाहते थे कि फैज उनकी कुर्सी सलामत रखें। क्या ही संयोग है कि आज दोनों सलाखों के पीछे हैं। हालांकि बात इतनी-सी नहीं है। फैज हमीद, इमरान की चापलूसी करते हुए उन्हें यह पट्टी पढ़ाने में कामयाब रहे कि वे सेना प्रमुख बनने के बाद भी उनके वफादार रहेंगे। उधर, वे तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के साथ नजदीकी बढ़ा रहे थे कि उनका नाम आगे बढ़ा दें। यही नहीं, वे अपने एक रिश्तेदार के जरिए शरीफ़ खानदान से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे कि भविष्य में जब सियासी समीकरण बदलें तो उनके सेना प्रमुख बनने की राह खुल जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो फैज हमीद 'तीन नावों' में सवार थे और सबके 'चहेते' बनने की कोशिश कर रहे थे। आखिरकार उनकी नाव भंवर में फंसकर हिचकोले खाने लगी। अब कोर्ट मार्शल की घोषणा से तो यही लगता है कि फैज की नाव गहरे समंदर में डूबने वाली है। पाकिस्तानी फौज के इस पूर्व अधिकारी के साथ जो कुछ होने जा रहा है, वह इसके अन्य पदाधिकारियों के लिए एक नजीर भी है, जो एक तरफ तो देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, दूसरी तरफ अपने पद का दुरुपयोग करते हुए खूब भ्रष्टाचार भी करते हैं। पिछले दिनों पाक फौज के पूर्व ब्रिगेडियर इम्तियाज का मामला सुर्खियों में रहा था, जो अपने कारनामों के लिहाज से फैज हमीद के 'उस्ताद' माने जा सकते हैं। उन्हें ज़िंदगी के आखिरी दिनों में उस दौलत से महरूम होना पड़ा, जो उन्होंने आतंकवाद और भ्रष्टाचार से जोड़ी थी। सच है, बुरे कर्मों का नतीजा बुरा ही होता है।