पाकिस्तान के इतिहास में 26 अगस्त एक बार फिर 'रक्तरंजित' दिन के तौर पर दर्ज हो गया। यह स्पष्ट रूप से उसकी फौजी 'कारगुजारियों' का नतीजा है। पाकिस्तानी फौज ने बलोचिस्तान में जिस तरह अत्याचार की हदें पार की हैं, उसके बाद आम जनता की ओर से पलटवार होना स्वाभाविक है।
पूरे बलोचिस्तान में एक ही दिन में हिंसा से 40 से ज्यादा लोगों की मौत होना बताता है कि सशस्त्र संघर्ष जोर पकड़ रहा है। उसके मुसाखाइल जिले में 'हथियारबंद लोगों' द्वारा ट्रकों और बसों से यात्रियों को उतारकर उनके पहचान-पत्रों की जांच करते हुए 23 लोगों को मौत के घाट उतारने की घटना दिल दहला देनेवाली है। इसमें जान गंवाने वाले ज्यादातर लोग पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से थे।
हालांकि यह इस किस्म की कोई पहली घटना नहीं है। बलोचिस्तान में पंजाब के प्रति गहरा आक्रोश है। पाकिस्तान में फौज से लेकर पुलिस और नौकरशाही तक पंजाब का दबदबा है। अन्य प्रांतों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। बलोचिस्तान खनिज संपदा से मालामाल प्रांत है। वहां कई दुर्लभ धातुओं समेत प्राकृतिक गैस के भंडार हैं।
बलोचिस्तान का दुर्भाग्य है कि इन सबका उसे कोई फायदा नहीं मिला। इस खजाने से पाक फौज के अफसर ऐश कर रहे हैं। बलोचिस्तान की धरती से निकलने वाली गैस पाकिस्तानी पंजाब के घर-घर तक जाती है, लेकिन आम बलोच आज भी पेट भरने के लिए लकड़ी का चूल्हा जलाकर संघर्ष कर रहा है।
पाकिस्तान की सरकार और फौज के इस रवैए से आजिज़ आकर बलोचों ने अपना हक मांगने के लिए कई बार हुंकार भरी, लेकिन हर बार उन्हें कुचल दिया गया। छब्बीस अगस्त, 2006 को पाक फौज ने बलोचिस्तान के वरिष्ठ नेता अकबर शहबाज़ खान बुगती की हत्या कर दी थी। बलोच इस तारीख को भूले नहीं हैं।
दुनियाभर में 'कश्मीर राग' अलापने वाले पाकिस्तान के लिए आज बलोचिस्तान बचाना मुश्किल हो गया है। वहां जिस स्तर पर गोलीबारी और ग्रेनेड हमले हो रहे हैं, उससे फौज के लिए मुसीबतें बढ़ना तय है। उसने 21 आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया है, लेकिन इस पर सवाल उठ रहे हैं। पाक फौज आतंकवादियों के खात्मे के नाम पर आम बलोचों की हत्याएं करती रही है। वहां कई लोग वर्षों से लापता हैं। उनके परिजन इस्लामाबाद और कई शहरों में धरने-प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।
पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर मस्तुंग, कलात, पसनी, सुंतसर, सिबी, पंजगुर और क्वेटा जैसे इलाकों में घातक हमले हो रहे हैं तो इनके निहितार्थ समझने की जरूरत है। इस साल अप्रैल में भी बलोचिस्तान के नोश्की शहर के पास बस से नौ यात्रियों को उतारकर उनके पहचान-पत्रों की जांच करने के बाद उन्हें गोलियां मार दी गई थीं।
पिछले साल अक्टूबर में केच जिले के तुर्बत में छह मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वे भी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से थे। साल 2019 में ग्वादर जिले के पास ओरमारा में एक बस से 14 लोगों को उतारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। वे पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के कर्मी थे, जिनमें से ज्यादातर का ताल्लुक पंजाब से था।
साल 2015 में तुर्बत के पास मजदूरों के एक शिविर पर घात लगाकर हमला किया गया था। उसमें 20 लोगों की जान चली गई थी। उनमें से ज्यादातर पंजाब से थे। ऐसी घटनाओं के तुरंत बाद पाकिस्तानी सुरक्षा बल एक-दो दर्जन बलोचों को मार गिराते हैं। उसकी प्रतिक्रिया में बलोच आबादी में ज्यादा आक्रोश पनपता है।
पाकिस्तान को इससे सबक लेना चाहिए। बलोच आबादी पर जोर-जुल्म खत्म होना चाहिए। अगर बलोचिस्तान के लोगों को अपने वाजिब हक नहीं मिले तो आक्रोश की यह ज्वाला पाकिस्तान के विखंडन की वजह भी बन सकती है।