जन धन योजना के 10 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इसके लिए यह कहना कि '... योजना वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में सर्वोपरि रही है', देश के वित्तीय क्षेत्र में पिछले एक दशक में आए बड़े सकारात्मक बदलाव को जाहिर करता है।
याद करें, जब इस योजना को शुरू किया गया था तो इसके औचित्य पर कितने सवाल उठाए गए थे! कई बुद्धिजीवी (जो भारत की हर समस्या का समाधान पश्चिमी देशों के मॉडल में देखते हैं) ने कहा था कि देश के आम लोगों को बैंकिंग की इतनी समझ ही नहीं है।
यह भी कहा गया था कि आम आदमी के पास इतनी रकम नहीं है कि वह उसे जमा कराने के लिए बैंक शाखा में जाए। आज इस योजना की सफलता के आंकड़ों ने सिद्ध कर दिया कि अगर जनता-जनार्दन देश की बेहतरी और अपने कल्याण के लिए कुछ ठान ले तो तमाम पूर्वाग्रह ध्वस्त हो जाते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश में बिचौलियों और भ्रष्टाचार की भयावह स्थिति के संबंध में एक बार कहा था कि जब जनकल्याण के लिए एक रुपया भेजते हैं तो लाभार्थी तक सिर्फ 15 पैसे पहुंचते हैं। यह कड़वी हकीकत थी। पहले, विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों के हक की खूब लूट-खसोट होती थी। व्यवस्था में न तो पर्याप्त पारदर्शिता थी और न ही कोई ऐसा जरिया था, जिससे लोगों तक सीधे ही रकम पहुंच जाए।
बैंक जरूर थे, लेकिन उनकी पहुंच सीमित थी। उनमें बड़े कारोबारी वर्ग, संपन्न लोगों और सरकारी कर्मचारियों के ही खाते होते थे। आम आदमी के लिए बैंक खाता खुलवाना, उसका संचालन करना काफी मुश्किल होता था। यह स्थिति तब थी, जब सरकार दर्जनभर बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी कर चुकी थी।
उस दौर के हालात को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण का आम जनता को खास फायदा नहीं मिल रहा था। जन धन योजना की शुरुआत की गई तो बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों से लेकर सामान्य लोगों के मन में निश्चित रूप से वह तस्वीर मौजूद थी। जब छह महीनों में ठीक-ठाक संख्या में खाते खुल गए थे, तब कई लोगों ने यह कहते हुए मजाक उड़ाया था कि इस योजना का क्या फायदा, क्योंकि ज्यादातर खाते तो खाली पड़े हैं/पड़े रहेंगे!
वास्तव में उस दौरान उन खातों के रकम संबंधी आंकड़ों से ज्यादा जरूरी था- उस आधार का निर्माण होना, जिस पर भविष्य में कई कल्याणकारी योजनाओं की नींव रखी जानी थी। यह काम जन धन ने किया। आज केंद्र सरकार दिल्ली से 1 रुपया भी भेजती है तो शहरों से लेकर ढाणियों तक में रहने वाले खाता धारकों को 1 रुपया जरूर मिलता है। बिचौलियों और भ्रष्टाचारियों की भूमिका खत्म!
जन धन योजना को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए बैंककर्मियों के योगदान की सराहना जरूरी है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खाते खोलने, लोगों को योजना की जानकारी देने, ग्रामीणों की समस्याएं सुनने, उनका समाधान करने जैसे कार्यों में बहुत मेहनत लगती है। इस योजना के तहत एक दशक में 53 करोड़ से ज्यादा खाते खोलना अपनेआप में एक कीर्तिमान है। कई देशों की जितनी जनसंख्या नहीं है, उससे ज्यादा तो भारत में जन धन खाते खुल गए! उनमें भी महिला खाताधारक बहुत आगे हैं।
जन धन योजना के कई फायदों में से बड़ा फायदा यह है कि इसने परिवारों में बचत की आदत को बढ़ावा दिया है। सरकारी सहायता और ऋण तक लोगों की पहुंच आसान हुई है। वित्तीय सेवाओं का लाभ पाने में लैंगिक अंतर निश्चित रूप से दूर हुआ है। बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच बढ़ने से भविष्य में आर्थिक तंत्र में और पारदर्शिता आएगी।