केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और उनके प्रमुख कारणों का जिक्र कर एक गंभीर मुद्दा उठाया है, जिस पर सबको ध्यान देने की जरूरत है। मंत्री का यह कहना चौंकाता भी है कि भारत में युद्ध, आतंकवाद और नक्सलवाद से भी ज्यादा लोगों की जानें सड़क दुर्घटनाओं में गई हैं! देश में हर साल लगभग पांच लाख दुर्घटनाएं होती हैं। उनमें 1.5 लाख लोग प्राण गंवाते हैं, जबकि तीन लाख लोग घायल होते हैं। यह उन परिवारों के साथ ही देश के लिए भी बड़ा नुकसान है। इससे भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का तीन प्रतिशत गंवा देता है।
कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब सड़क दुर्घटनाएं न हों। कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है तो स्थानीय प्रशासन सख्ती दिखाता है, वह भी कुछ ही दिनों के लिए। उसके बाद सबकुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। गडकरी ने सत्य कहा कि 'हर दुर्घटना के बाद वाहन चालक को दोषी ठहरा दिया जाता है ... जबकि ज्यादातर दुर्घटनाएं सड़क इंजीनियरिंग में खामी की वजह से होती हैं।' दुर्घटनाओं की संख्या में कमी लाने के लिए लेन अनुशासन का पालन करवाने के साथ ही कई और कदम उठाने की जरूरत है।
कोई दुर्घटना राजमार्ग पर हुई हो या गांव-शहर के स्थानीय मार्ग पर, उन सबके मूल कारणों का पता लगाकर उनमें सुधार के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। उदाहरण के लिए, सभी राजमार्गों की सुरक्षा के ऑडिट के अलावा वाहनों की फिटनेस, गति सीमा, सवारियों की संख्या के संबंध में नियमों का सख्ती से पालन करवाने की जरूरत है। इसके लिए जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाकर वाहनों की आवाजाही पर नजर रखी जानी चाहिए। जो वाहन नियमों का उल्लंघन करता पाया जाए, उसके मालिक पर उचित जुर्माना लगाया जाए।
हालांकि केवल जुर्माना लगाने से सुधार नहीं हो सकता। अगर कस्बों से लेकर बड़े शहरों में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की बात करें तो उनके पीछे ऐसे छोटे-छोटे कारण नजर आएंगे, जिन पर पहले ध्यान दिया होता तो कई लोगों का जीवन बचाया जा सकता था। यह भी देखने में आता है कि कई दोपहिया वाहन चालक हेलमेट नहीं लगाते। उनमें से बहुत लोग अपने साथ हेलमेट रखते हैं, लेकिन वे उसे तब लगाते हैं, जब सामने यातायात पुलिस हो। उनके लिए अक्सर व्यंग्य में कहा जाता है कि लोग मोबाइल फोन खरीदते हैं तो उस पर कवर लगवाते हैं, ताकि वह गिरे तो टूट न जाए, जबकि खुद दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं लगाते, भले ही सिर फूट जाए!
दुर्भाग्य है कि यातायात पुलिस के भी कुछ कर्मी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। वाहनों के चालकों से रिश्वत लेते हुए उनके वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बॉडीकैम तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। हाल में अमेरिका में चर्चित घटनाक्रम में एक पुलिसकर्मी इस तकनीक से मिले साक्ष्यों के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया गया था। उसने एक भारतीय छात्रा की दुर्घटना में मौत होने पर असंवेदनशील टिप्पणी की थी।
भारत में यातायात संबंधी नियमों का उल्लंघन करने पर संबंधित व्यक्ति में सुधार के लिए प्रयासों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। उदाहरण के लिए, अगर कोई दोपहिया वाहन चालक हेलमेट नहीं लगाए तो उससे जुर्माना जरूर वसूला जाए, इसके साथ-साथ उसे कम-से-कम दो हेलमेट तुरंत दे दिए जाएं। नियमों का उल्लंघन करने वालों को भी दो श्रेणियों में बांट सकते हैं- पहली, वे लोग जो अनजाने में ऐसा करते हैं। दूसरी, जो जानबूझकर और बार-बार नियम तोड़ते हैं। अनजाने में ऐसा करने वालों के साथ कुछ नरमी बरती जानी चाहिए।
वहीं, जो लोग जानबूझकर और बार-बार ऐसा करते हैं, उन पर जुर्माना लगाने के अलावा सुधार के लिए विशेष नियमों की जरूरत है। खासकर उन लोगों को इसमें शामिल करना ही चाहिए, जो लापरवाही से वाहन चलाते हुए वीडियो रिकॉर्ड करते हैं और सोशल मीडिया पर खुद को किसी 'हीरो' की तरह पेश करते हैं। ऐसे लोगों से सामाजिक सेवा के कार्य करवाने चाहिएं, जैसे- सरकारी अस्पतालों, सार्वजनिक शौचालयों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, स्कूलों, कॉलेजों, उद्यानों, गौशालाओं आदि में सफाई।
जो नागरिक यातायात नियमों का सही तरह से पालन करे, उसे 'पुरस्कृत' करना चाहिए। इसके लिए उसे पेट्रोल-डीजल और गैस सिलेंडर की खरीद पर कुछ छूट दी जा सकती है। अन्य सेवाओं में भी रियायत मिलनी चाहिए। यातायात नियमों का पालन करने वाला ऐसा अनुशासित नागरिक देश को कई तरीकों से फायदा पहुंचाता है। उसे प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए।