भारत में नकली नोटों की छपाई और प्रसार हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से भी ऐसे नोटों की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं। इनमें दोषी पाए गए लोगों को सजाएं हो चुकी हैं। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाने के इन अपराधों पर रोक नहीं लग रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2016 में नोटबंदी जैसा बड़ा कदम उठाया था। उसके बाद कुछ अवधि के लिए नकली नोटों का प्रसार रुका, लेकिन बाद में अपराधियों ने नए नोटों की भी नकल कर ली थी।
हाल में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक मदरसे में नकली नोट छापने का मामला सामने आया, जो गंभीर चिंता का विषय है। जहां पढ़ाई-लिखाई और बच्चों को बेहतर इन्सान बनाने का काम होना चाहिए था, वहां ऐसा कपटधंधा कैसे शुरू हो गया? आरोपियों के पास नकली नोट छापने की सामग्री कहां से आई? उन्होंने छपाई का काम कहां से सीखा? आरोपियों के कब्जे से बड़ी संख्या में नकली नोट बरामद हुए हैं। इससे पहले उन्होंने काफी नोट बाजार में खपा भी दिए थे। शक है कि ये महाकुंभ मेले में बड़ी संख्या में नकली नोटों को खपाना चाहते थे।
चूंकि आम नागरिक को ऐसे नोटों की पहचान करने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। ऐसे में जिन लोगों ने इनसे ये नोट लिए होंगे, उन्होंने इस विश्वास के आधार पर लिए होंगे कि जो मुद्रा मिल रही है, वह असली है। इस गिरोह का पर्दाफाश करने में पुलिस और एजेंसियों के जिन कर्मियों ने अपना कर्तव्य निभाया, वे निश्चित रूप से प्रशंसा के पात्र हैं।
उम्मीद है कि उक्त मामले की जांच में उन लोगों पर भी शिकंजा कसा जाएगा, जिनके नाम अभी सामने नहीं आए हैं। नकली नोटों की छपाई के लिए सामग्री जुटाने, छपाई करने, बाजार में खपाने, कमीशन के आधार पर संभावित 'ग्राहकों' से संपर्क करने, नकली नोट उन तक पहुंचाने ... जैसे काम मुट्ठीभर लोगों के बस की बात नहीं होती।
यूं तो भारतीय मुद्रा को सुरक्षित बनाने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अपराधी फिर भी बाज़ नहीं आते। भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए दुश्मन देशों की खुफिया एजेंसियां भी ऐसे अपराधियों की मदद करती हैं। नकली नोटों के इस सिलसिले को खत्म करना बहुत जरूरी है। ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद लोगों का अपनी मुद्रा से भरोसा कम होता है।
आज भी जब कोई व्यक्ति दुकान पर 500 रुपए का नोट लेकर जाता है तो दुकानदार अपनी तसल्ली के लिए उसे एक बार गौर से देखता है। पहले 2,000 रुपए के नोटों को भी इसी तरह देखा जाता था। प्रयागराज वाले मामले में आरोपी 100 रुपए के नोट छापते पाए गए, चूंकि इन पर कोई व्यक्ति ज्यादा ध्यान नहीं देता। तो सरकार ऐसे कपटधंधों को कैसे रोके? इसका एक तरीका तो यह हो सकता है कि अपना खुफिया तंत्र मजबूत किया जाए। स्थानीय स्तर पर ऐसी व्यवस्था की जाए कि जैसे ही नकली नोट दुकानों और अन्य प्रतिष्ठानों में आएं, सरकार को इसकी भनक लग जाए।
इस समय ज्यादातर परिवारों के बैंक खाते खुल गए हैं। क्या ऐसा कोई प्रावधान हो सकता है कि हर साल बड़े नोटों को एक खास समय-सीमा के अंदर बैंक में जमा कराना अनिवार्य हो? इसके कानूनी और तकनीकी पहलू को देखा जाना चाहिए, जिससे नकली नोटों के प्रसार पर कुछ लगाम जरूर लगे। इसका तीसरा और सबसे प्रभावी उपाय है- डिजिटल पेमेंट को और प्रोत्साहन देना।
देश के छोटे शहरों और कस्बों तक डिजिटल पेमेंट की लोकप्रियता बढ़ रही है। ‘चेंज इंडिया’ की एक रिपोर्ट तो यह कहती है कि इन शहरों में 40 प्रतिशत लोग रोजाना डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं। हालांकि इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण भारत में डिजिटल पेमेंट नहीं करने वाले लगभग आधे कारोबारी इस सेवा से अनजान हैं। इसके अलावा डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल नहीं करने वाले उपभोक्ताओं में से 94 प्रतिशत इससे परिचित होने के बावजूद ऐसा नहीं करते हैं। इसके पीछे इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी, सीमित ज्ञान, ऑनलाइन भुगतान पर अविश्वास जैसे कारण हैं।
हाल के वर्षों में डिजिटल धोखाधड़ी से लोगों को बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है। हर महीने ठगी के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं, जिससे लोगों के मन में कई आशंकाएं पैदा होती हैं। अगर सरकार डिजिटल पेमेंट के तौर-तरीकों को अधिक सुरक्षित बना दे तो इससे नकली नोट बनाने वाले और ऑनलाइन ठगी करने वाले गिरोह हतोत्साहित होंगे। साथ ही अर्थव्यवस्था में अधिक पारदर्शिता आएगी, जिसका लाभ देश को मिलेगा।