डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारतीय दर्शन के युग प्रणेता

सन् 1931 से 1936 तक राधाकृष्णन आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे

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ई. प्रभात किशोर
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४भारतीय धर्म, दर्शन एवं संस्कृति में जीवन की चहुंमुखी समृद्धि के सभी मूल तत्व विद्यमान है| पाश्चात्य दार्शनिक अपनी कूपमंडूकता एवं श्रेष्ठता  की प्रवृति के कारण पूर्वी राष्ट्रों की प्रचुर आध्यात्मिक दर्शन से नजरें चुराते रहे| डॉ० राधाकृष्णन ने पाश्चात्य अकादमिक मानक के अनुरूप भारतीय दर्शन पर साहित्य का सृजन कर पश्चिमी राष्ट्रों को इसके प्रति झुकाव एवं लगाव हेतु भरसक प्रयास किया| डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1988 को मद्रास (चेन्नई) से उत्तर-पूर्व 84 किमी दूर एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था| राधाकृष्णन का प्रारम्भिक जीवन काल प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तिरूतानी एवं तिरूपति के आध्यात्मिक वातावरण में गुजरा| उनकी प्राथमिक शिक्षा तिरूतानी स्थित प्राईमरी बोर्ड उच्च विद्यालय मे हुई| सन् 1896 में आगे की शिक्षा हेतु उनका नामांकन तिरूपति स्थित हरमन्सवर्ग इवेनजिलिकल लुथरल मिशन स्कूल मे करवाया गया| उच्च शिक्षा हेतु उन्होंने १७ वर्ष की अवस्था में वेल्लौर स्थित वुरहिस कॉलेज में दाखिला लिया पर जल्द हीं मद्रास क्रिश्चन कॉलेज में स्थानान्तरण करवा लिया| उन्होंने सन् 1906 में दर्शन शास्त्र में स्नातकोतर की डिग्री हासिल की| राधाकृष्णन के एमए थेसिस का विषय था ‘वेदान्त एवं इसके तत्व-मिमांसा की पूर्व अवधारणा’ (द इथिक्स ऑफ द वेदान्त एण्ड इट्स मेटाफिजिकल प्रिसपोजिसंस)| वे इस बात से भयभीत थे कि उनका यह थेसिस उनके प्रोफेसर डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज हॉग को नाराज कर देगा| पर उल्टे डॉ. हॉग ने इस उत्कृष्ट कार्य हेतु राधाकृष्णन की भूरि-भूरि प्रशंसा की|

राधाकृष्णन का विवाह मात्र 16 वर्ष की अवस्था मे दूर की रिश्तेदार शिवाकमु के साथ हुआ|  सन् १९०९ में सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेसिडेन्सी कॉलेज के दर्शन शास्त्र विभाग में नियुक्त हुए| तत्पश्चात् सन् 1918 में वे मैसूर विश्वविद्यालय द्वारा दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में चुने गए| सन् 1921 में वे कोलकाता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त किए गए| उन्होंने जून 1926 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों के सम्मेलन में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया| पुनः सितम्बर १९२६ में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित दर्शनशास्त्र के अंतर्राष्ट्रीय सममेलन में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने का उन्हें अवसर प्राप्त हुआ| सन् 1929 में हेरिस मैनचेस्टर कॉलेज के प्राचार्य जे. इस्टलिन कारपेन्टर द्वारा रिक्त किए गए पद पर कार्य करने हेतु वे आमंत्रित किये गये|

सन् 1931 से 1936 तक राधाकृष्णन आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे| सन् 1936 मे उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय मे पूर्वी धर्म एवं नीतिशास्त्र का प्रोफेसर नामित किया गया| सन् 1939 में पंडित मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में अपने आपको स्थानापन्न करने हेतु आमंत्रित किया, जहां उन्होंने जनवरी 1948 तक कुलपति के रूप में अपनी सेवा दी| सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राधाकृष्णन ने यूनेस्को (१९४६-५२) में भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व किया| वे सन् 1949 से 1952 के दौरान सावियत संघ में भारतवर्ष के राजदूत बनाये गये| बाद में वे भारतीय संविधान सभा के लिए चुने गए| सन् 1952 में वे भारतीय गणराज्य के प्रथम उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए| सन् 1957 में कार्यकाल की समाप्ति के उपरान्त उन्हें आगामी कार्यावधि के लिए पुनः उपराष्ट्रपति चुना गया| तदुपरान्त 13 मई 1963 को उन्होने भारतीय गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला तथा इस पद पर १३ मई 1967 तक राष्ट्र की सेवा की| राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने पंडित नेहरू की मृत्यु के पश्चात् दो प्रधानमंत्री क्रमशः लाल बहादुर शास्त्री तथा उनकी मृत्यु के उपरान्त श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार का गठन किया|

अपने जीवन काल में डॉ. राधाकृष्णन ने अनेकों उपाधियां प्राप्त कीं| सन् 1954 में उन्हें भारतवर्ष सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया गया| उन्होंने सन् 1961 में जर्मन ट्रेड बुक का  शांति पुरस्कार एवं सन् 1963 में ऑर्डर आफॅ मेरिट का खिताब पाया| सन् 1975 में उन्हें टेम्पल्टन पुरस्कार दिया गया, जिसकी पूरी राशि उन्होने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को दान कर दी| सन् 1989 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने उनकी याद में राधाकृष्णन छात्रवृति प्रारम्भ किया| राधाकृष्णन साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार हेतु लगातार पांच बार (1933-37) मनोनीत किए गए, हालांकि यह पुरस्कार वे जीत नहीं पाए| अपने जीवनकाल में डॉ. राधाकृष्णन ने अनेकों पुस्तकों की रचना की जिनमें अधिकांश भारतीय धर्म, संस्कृति एवं दर्शन पर आधारित हैं|  

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान राष्ट्रवादी महापुरूष थे| हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं दर्शन के प्रति उनके समर्पण के कारण छद्म धर्मपेक्षतावादियों का एक बड़ा तबका उनका कटु आलोचक भी रहा| पर तमाम आलोचनाओं से बेपरवाह इस युगपुरूष ने जीवन की अंतिम सांस तक अपने अंदर के शिक्षकत्व को प्राणवायु प्रदान करते हुए अपनी राष्ट्रवादी रचनाएं जारी रखीं तथा भारतीय दर्शन से सम्पूर्ण जगत आलोकित होता रहा| 17 अप्रैल 1975 को 86 वर्ष की अवस्था में भारतवर्ष के इस महान दार्शनिक ने इस मायारूपी संसार को सदा के लिए अलविदा कह दिया| डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नश्वर शरीर भले हीं आज हमारे बीच नहीं है, पर भारतीय धर्म, अध्यात्म, संस्कृति एवं दर्शन संबंधी उनका शास्त्ररूपी दीपक युगों-युगों तक हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा|

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