सच्चाई पर झूठ की लीपापोती

बांग्लादेशी हिंदुओं की पीड़ा ढाका से लेकर दिल्ली और वॉशिंगटन डीसी तक सुनाई दे रही है

मुहम्मद यूनुस का कर्तव्य है कि वे अपने देश की छवि बेहतर बनाएं

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस का यह बयान सच्चाई पर झूठ की लीपापोती है कि उनके देश में हिंदुओं पर हमले सांप्रदायिक नहीं थे और मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य सलाहकार की कुर्सी पाते ही मुहम्मद यूनुस के तेवर बदल गए हैं। वे हकीकत से मुंह मोड़ते हुए उन ताकतों के सुर में सुर मिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनका आशीर्वाद पाकर वे अपना ओहदा आगे भी बरकरार रख सकते हैं। 

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों के वीडियो, सोशल मीडिया पर उनकी पोस्ट्स को दुनियाभर में देखा गया, भारत से लेकर अमेरिका तक उनके लिए आवाजें उठाई गईं, लेकिन मुहम्मद यूनुस को यह मामला बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया लगता है! बांग्लादेशी हिंदुओं की पीड़ा ढाका से लेकर दिल्ली और वॉशिंगटन डीसी तक सुनाई दे रही है। अगर कहीं सुनाई नहीं दे रही तो वह मुहम्मद यूनुस का दफ्तर है! 

क्या ही अच्छा होता अगर ये नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अपने दफ्तर की खिड़कियां खोलकर एक नज़र बाहर भी डालते। बांग्लादेश में हिंसा भड़कने के बाद खुद को निशाना बनाए जाने पर वहां हिंदू समुदाय ने रैलियां निकाली थीं। अगर लोगों के साथ छिटपुट घटनाएं ही हुई थीं तो रैलियां निकालने की नौबत क्यों आई? मुहम्मद यूनुस का यह कहना भी हकीकत से परे है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले सांप्रदायिक से कहीं ज्यादा राजनीतिक थे। 

वास्तव में बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को अल्पसंख्यकों को सताने के लिए कोई बहाना चाहिए। अगर हिंसा राजनीतिक कारणों से भड़की थी तो मंदिरों पर हमले क्यों हुए? मंदिर तो एक ऐसा स्थान होता है, जिसे बाहर से देखकर ही पता लग जाता है कि इसका संबंध आस्था से है। इसके अलावा हिंदुओं के घरों में घुसकर तोड़फोड़ और उनकी बेटियों से अभद्रता क्या थी?

मुहम्मद यूनुस कितनी ही लीपापोती करने की कोशिश करें, सोशल मीडिया के इस दौर में घटनाओं को ज्यादा समय तक छिपाकर नहीं रख सकते। अगर एक बार यह मान भी लें कि बांग्लादेश में हिंसा के पीछे सिर्फ राजनीतिक कारण थे, तो स्थानीय अल्पसंख्यक समुदायों के लोग सोशल मीडिया पर खुद के मकानों, प्रतिष्ठानों और धार्मिक स्थलों को खतरे में क्यों बता रहे थे? कई यूट्यूब चैनलों के वीडियो पर टिप्पणियां करते हुए बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों ने अपनी पीड़ा बयान की थी, जो मुहम्मद यूनुस को अब तक सुनाई नहीं दी है! 

बांग्लादेश में कोटा प्रणाली के खिलाफ जिस तरह प्रदर्शन हुए, हिंसा भड़की, उग्र भीड़ ने प्रधानमंत्री आवास में घुसकर तोड़फोड़ की, हंगामा किया, उसके दृश्य देखकर यह विश्वास और दृढ़ होता है कि वह छात्रों का आंदोलन नहीं था। उसके पीछे कट्टरपंथी तत्त्व और विदेशी ताकतें थीं। बेकाबू भीड़ में शामिल कई युवकों ने शेख हसीना के अंत: वस्त्र तक लूटकर हवा में लहराए थे। यह बहुत शर्मनाक था। शेख हसीना उन युवकों की दादी की उम्र की हैं। 

ऐसा प्रदर्शन किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। क्या बांग्लादेश में सत्तारूढ़ नेताओं में से किसी ने ऐसी ओछी हरकतों की निंदा की? किसी भी देश के नागरिकों का कर्तव्य होता है कि वे सरकार और शीर्ष नेताओं से भारी से भारी नाराजगी के बावजूद अपने राष्ट्रीय नायकों और शहीदों का सम्मान करें। जबकि बांग्लादेश में हुड़दंगियों ने उनकी प्रतिमाओं पर हथौड़े चला दिए थे। 

जो अपने नायकों की प्रतिमा के साथ ऐसा कर सकता है, उसने अन्य लोगों के साथ कैसा बर्ताव किया होगा? निस्संदेह मुहम्मद यूनुस का कर्तव्य है कि वे अपने देश की छवि बेहतर बनाएं, लोगों के बीच विश्वास पैदा करें, शांति एवं सद्भाव के लिए काम करें, हालात सुधारें, लेकिन सच बोलने का हौसला भी दिखाएं।  

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