मुनीर की डींगें

जनरल मुनीर के पास अच्छा मौका था कि वे पाकिस्तानी जनता को सच बताते

कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के हज़ारों जवानों की जानें गई थीं

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने कारगिल युद्ध में अपनी फौज की संलिप्तता स्वीकार करते हुए जिन शब्दों में शेखी बघारी है, उसके लिए यही कहा जा सकता है- 'चोरी, ऊपर से सीना जोरी।' हालांकि मुनीर ने कारगिल युद्ध के बारे में कोई रहस्योद्घाटन नहीं किया है। उन्होंने जो कुछ कहा, उसके बारे में भारतवासियों को पहले ही पर्याप्त जानकारी है। 

मुनीर सेना प्रमुख के पद पर रहते यह स्वीकारोक्ति कर रहे हैं। उनका इरादा अपने देश की जनता के मन में फौज की छवि को मजबूत करने का है, जिसे पिछले कुछ वर्षों में गहरा धक्का लगा है। मुनीर ने कारगिल युद्ध के बारे में बोलने का थोड़ा हौसला तो दिखाया, लेकिन उस पर भी झूठ का मुलम्मा चढ़ा दिया। उन्होंने युद्ध का जिक्र करते हुए पाकिस्तान को साहसी और निर्भीक राष्ट्र बता दिया! 

अगर पाकिस्तान सच में ऐसा राष्ट्र होता तो कारगिल युद्ध में जान गंवाने वाले अपने फौजियों की लाशें तो ले जाता। पाकिस्तान की नॉर्दन लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट के उन फौजियों की लाशों को भारतीय जवानों ने दफनाया था, वह भी पूरे सैन्य सम्मान के साथ। साहस, निर्भीकता और वीरता के साथ उदारता भारतीय सेना ने दिखाई थी। 

आज कारगिल युद्ध से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण बातें ऑनलाइन उपलब्ध हैं। पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ मिलकर जिन सैन्य अधिकारियों ने षड्यंत्र रचा था, वह उनके ही गले पड़ गया था। जनरल मुनीर अपने भाषण में डींगें हांकते रहे, लेकिन यह क्यों नहीं बताया कि मुशर्रफ ने जो बड़े-बड़े दावे किए थे, वे भरभराकर गिरे थे? 

नॉर्दन लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट के जो घुसपैठिए कारगिल की पहाड़ियों पर भेजे गए थे, वे तब तक 'जीत' की खुशियां मनाते रहे, जब तक कि उनका सामना भारतीय सेना से नहीं हुआ था। जब भारतीय थल सेना और वायुसेना ने धावा बोला तो पाकिस्तानी फौजियों की हालत उस मेमने जैसी हो गई थी, जो भूलवश शेर से टकरा जाए और उसके निकल भागने का कोई रास्ता भी न रहे!

मुनीर के पास अच्छा मौका था कि वे पाकिस्तानी जनता को यह सच बताते कि कारगिल युद्ध परवेज मुशर्रफ और पाक फौज के तत्कालीन उच्चाधिकारियों की हठधर्मिता, जड़ता, अदूरदर्शिता और मूर्खता का परिणाम था। उस युद्ध में भारत के भी कई जवानों ने वीरगति पाई थी। सेना ने उनकी जानकारी सार्वजनिक की थी। देशवासियों ने उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी थी। आज भी उनके सम्मान में कार्यक्रम होते हैं, उन्हें याद किया जाता है। 

जबकि पाकिस्तानी फौज ने कारगिल युद्ध में मारे गए अपने फौजियों की सही-सही संख्या तक नहीं बताई। पाकिस्तान के ही कई सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी दावा कर चुके हैं कि कारगिल की पहाड़ियों पर उनके हज़ारों जवानों की जानें गई थीं। उन्हें युद्धभूमि में घुसपैठिए की तरह दिखाने के लिए उनसे वर्दी, पहचान पत्र और अन्य सैन्य चिह्न पहले ही छीन लिए गए थे। किसी सैनिक के लिए यह बहुत अपमान की बात होती है। 

वे पाकिस्तानी फौजी गलत तरीके से भारतीय भू-भाग पर आए थे। उन्होंने अवैध ढंग से कब्जा किया और भारत की जवाबी कार्रवाई में बुरी तरह मारे गए थे। फिर भी वे इतना हक जरूर रखते थे कि उनका देश उन्हें स्वीकार करे, उन्हें उचित तरीके से अंतिम विदाई दे। उनके परिजन को आज भी नहीं पता कि वे किस कब्र में दफ़्न हैं! 

मुनीर जब यह कहते हैं कि 'सशस्त्र बलों और राष्ट्र के बीच संबंध दिल का होता है' तो उनका एक-एक शब्द अत्यंत हास्यास्पद लगता है। बेशक ऐसा संबंध होता है, लेकिन यह पाकिस्तान में नहीं होता। हकीकत यह है कि आज पाकिस्तानी फौज अपनी जनता की नजरों में ही खलनायक बन चुकी है। उसके लिए 'यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है' जैसे नारे लग रहे हैं। 

बेहतर होता कि जनरल मुनीर अपने देश की जनता को सच्चाई बताते और अतीत में हुईं अपनी ग़लतियों को स्वीकार करते। इसके बजाय उन्होंने वही बेसुरा राग अलापा, जो पाकिस्तान का हर सेना प्रमुख अलापता रहा है।

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