पीओके का प्रश्न

आज पीओके में पाकिस्तान के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं

पीओके की डेमोग्राफी काफी हद तक बदल चुकी है

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर के रामबन विधानसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पीओके के निवासियों के लिए जो संदेश दिया, उसकी गूंज बहुत दूर तक सुनाई दे रही है। बेशक पाकिस्तान ने भारत के उस भू-भाग पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। उसने वहां के लोगों का जीवन भी दयनीय बना रखा है। रक्षा मंत्री द्वारा पीओके के निवासियों के लिए कहे गए ये शब्द भी सत्य हैं कि 'हम आपको अपना मानते हैं, जबकि पाकिस्तान आपको विदेशी मानता है।' 

उन्होंने पीओके निवासियों के लिए यह कहकर कि '... आइए तथा हमारा हिस्सा बनिए', पाकिस्तान की फौज और सरकार को भी आईना दिखाया है। पीओके आज नहीं तो कल, पाकिस्तान के पंजे से छूटेगा ही छूटेगा। वहां उग्र विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, जिनमें लोगों ने पाकिस्तान के जुल्म से आजिज़ आकर भारत से 'मिलने' की इच्छा जताई थी। 

हालांकि बात इतनी सादा नहीं है। आज पीओके में पाकिस्तान के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं, लोग सोशल मीडिया पर यह बात स्वीकार कर रहे हैं कि 'अगर वे जम्मू-कश्मीर में होते तो बहुत बेहतर ज़िंदगी गुजार रहे होते', तो इसकी वजह यह नहीं है कि वहां अचानक 'भारतप्रेम' की लहर पैदा हो गई है। असल वजह यह है कि पीओके में आम जनता का जीना मुहाल हो गया और जम्मू-कश्मीर में हालात बहुत बेहतर हैं। 

हमें वहां के अन्य सामाजिक पक्षों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। वास्तविकता यह भी है कि पीओके की डेमोग्राफी काफी हद तक बदल चुकी है। वहां पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से बड़ी तादाद में लाकर लोगों को बसाया गया है। वे कश्मीरी भाषा नहीं बोलते। पीओके में पाक फौज और रेंजर्स के जवान बस गए हैं। उनमें भी पंजाबियों का बोलबाला है। पीओके आतंकवादी कैंपों का गढ़ बन चुका है। वहां बहुत बड़ी तादाद उन लोगों की है, जो कश्मीरी खानपान, पहनावे, संगीत और संस्कृति से पूरी तरह कट चुके हैं।

यही नहीं, पाकिस्तानी एजेंसियों, मीडिया और आतंकवादी संगठनों ने उनका ब्रेनवॉश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहां भारत के खिलाफ नफरत की कई घटनाएं देखने को मिलती हैं। पीओके पर पाकिस्तान का कब्जा एक समस्या है ही, वहां भारत के खिलाफ किए गए दुष्प्रचार का लोगों के दिलो-दिमाग पर असर बहुत बड़ी समस्या है। अगर ऐसे कुछ लोग भी इधर आ गए और उन्हें स्वतंत्र विचरण करने की अनुमति दे दी गई तो वे सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा बन सकते हैं। 

ध्यान रखें, यहां किसी की पहचान, पहनावा, भाषा, आस्था या सामाजिक पृष्ठभूमि मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि पीओके के लोग भारत के विविधतापूर्ण समाज में घुल-मिलकर रह भी सकेंगे या नहीं? इस प्रश्न को हल्के में नहीं लेना चाहिए। पाकिस्तान ने पीओके के साथ जिस तरह भेदभाव किया, उसे बदहाली में रखा, उससे लोगों में आक्रोश का लावा पक रहा है। यह एक दिन जरूर फूटेगा। भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा। 

आज पीओके के लोग सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर में आटा, दाल, चावल, सब्जियों, तेल, गैस और दवाइयों की कीमतें सुनते हैं तो अपना माथा पीट लेते हैं। वे उस घड़ी को कोसते हैं, जब पाकिस्तान ने वहां अवैध कब्जा किया था। इस समय पीओके सहित पूरे पाकिस्तान में दो चीजों की कीमतें सबसे ज्यादा चर्चा में हैं- आटा और बिजली। वहां आटे की किल्लत से लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है, जबकि बिजली के बिल इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि राशि देखते ही करंट महसूस हो रहा है! 

कई घर ऐसे हैं, जहां सिर्फ दो बल्ब और एक पंखा हैं, लेकिन बिजली का बिल 50 हजार रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए तक आ रहा है। लोग बिजली का बिल भरने के लिए अपने घर का सामान बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में वे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से जान छुड़ाना चाहते हैं। भविष्य में उनकी कोशिशें कामयाब होंगी, लेकिन उससे पहले उन्हें उस दुष्प्रचार से भी पीछा छुड़ाना होगा, जिस पर पीओके में बहुत लोग आंखें मूंदकर विश्वास करते हैं।

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