उत्तर प्रदेश के कानपुर और राजस्थान के अजमेर जिले में दो ट्रेनों को क्रमश: विस्फोटक एवं अवरोधक लगाकर पटरी से उतारने की कोशिशें किसी बड़ी साजिश की ओर संकेत करती हैं। हाल में कुछ और इलाकों में ट्रेनों के बेपटरी होने की घटनाएं हुई थीं। कहीं उनके पीछे भी ऐसी साजिश तो नहीं थी? कानपुर जिले में कालिंदी एक्सप्रेस के मार्ग में जिस तादाद में विस्फोटक रखे गए, उनकी तस्वीरें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
यह तो ट्रेन चालक ने सूझबूझ दिखाते हुए आपातकालीन ब्रेक लगा दिए, अन्यथा सैकड़ों लोगों की जानें जा सकती थीं। अपराधियों ने रसोई गैस सिलेंडर के अलावा पेट्रोल से भरी बोतल, माचिस और ऐसी कई चीजें रखी थीं, जो अत्यंत ज्वलनशील होती हैं। अगर उनकी मंशा के मुताबिक सिलेंडर में धमाका हो जाता तो ट्रेन के इंजन से लेकर सवारी डिब्बों तक आग तेजी से फैलती। जब तक अग्निशमन सेवाएं पहुंचतीं, ज्यादातर लोग जान गंवा चुके होते और कई गंभीर रूप से झुलस जाते।
वहीं, अजमेर जिले में मालगाड़ी को पटरी से उतारने के लिए सीमेंट के ब्लॉक रखे गए थे। सौभाग्य से वहां भी हादसा टल गया। इन घटनाओं से सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि ट्रेनों को पटरी से उतारने, उन्हें विस्फोटकों से उड़ाने की कोशिशों के पीछे किसका हाथ है? क्या ऐसी हरकतें विदेशी ताकतों (खासकर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों) के इशारों पर हो रही हैं?
कालिंदी एक्सप्रेस मामले की जांच एनआईए की टीम कर रही है। उम्मीद है कि वह इस अपराध के जिम्मेदारों को बेनकाब करेगी। कानपुर और अजमेर में ट्रेनों को नुकसान पहुंचाने के लिए जो हथकंडे अपनाए गए, उन पर गौर करें तो शक होता है कि अपराधियों को किसी ने ऐसे तरीके अपनाने की पट्टी पढ़ाई होगी, जिसमें कोई बड़ा 'साजो-सामान' लाने का जोखिम न हो और नुकसान ज्यादा से ज्यादा हो।
गैस सिलेंडर, बोतल, पेट्रोल, माचिस जैसी चीजें हर घर में आसानी से मिल जाती हैं। अगर कोई इन्हें लेकर जाए तो कौन शक करेगा? इसी तरह सीमेंट का ब्लॉक भी शक के दायरे में नहीं आता। रोजाना इस्तेमाल होने वाली और सामान्य दिखने वाली चीजों से बड़ी वारदात करने के तरीके तलाशना आम शरारती तत्त्वों के बस की बात नहीं होती। ऐसी खुराफात वही कर सकता है या सिखा सकता है, जिसका काम ही विध्वंसक तौर-तरीके खोजना हो।
ट्रेन की पटरियों पर सिक्के, ब्लेड, साबुन, कंकर, बोतल जैसी चीजें रखकर वीडियो बनाने की घटनाएं कई बार हुई हैं। ऐसे 'प्रयोग' खतरनाक हो सकते हैं। लिहाजा इन्हें नहीं करना चाहिए। रेलवे द्वारा समय-समय पर ऐसे तत्त्वों को चेतावनी दी जाती है, कार्रवाई भी की जाती है। ट्रेन की पटरियां मौज-मस्ती और 'प्रयोग' करने की जगह नहीं हैं। यहां की गई शरारत कई लोगों की जान जोखिम में डाल सकती है। सुरक्षा बलों की सख्ती के बाद ऐसे शरारती तत्त्व अपनी हरकतों से बाज़ आ जाते हैं।
जो तत्त्व आम लोगों को जान-माल का नुकसान पहुंचाने की नीयत से ट्रेनों को निशाना बनाते हैं, उनकी एक मंशा जनता में भय फैलाने की भी होती है। अगर वे अपने नापाक इरादों में कामयाब हो जाएं तो क्या होगा? लोगों में अफरा-तफरी फैलेगी, वे ट्रेन के सफर से परहेज करेंगे और सरकार को आड़े हाथों लेंगे कि हमारी जान की परवाह नहीं है!
कालिंदी एक्सप्रेस भिवानी (हरियाणा) जा रही थी, जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर इसके साथ कोई अप्रिय घटना हो जाती तो यह बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता था! उक्त घटनाओं से सबक लेते हुए सरकार को चाहिए कि वह पटरियों को अधिक सुरक्षित बनाए, जगह-जगह गुप्त कैमरे स्थापित कर पटरियों की निगरानी की जाए, जरूरत हो तो ड्रोन या कोई अन्य तकनीक इस्तेमाल की जाए।
राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर एकजुटता दिखाएं। जांच एजेंसियां फुर्ती दिखाते हुए अपराधियों के गिरेबान तक पहुंचें। उनके खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाकर मामले को तेजी से आगे बढ़ाएं। ऐसे अपराधियों पर भारी जुर्माना लगाने के साथ ही उनके लिए आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक के कानूनी प्रावधान किए जाएं।