साइबर सुरक्षा और देश की प्रगति

जिस व्यक्ति के साथ एक बार साइबर ठगी हो जाती है, उसका डिजिटल पेमेंट से भरोसा कम हो जाता है

इन दिनों साइबर ठगों ने 'डिजिटल अरेस्ट' के नाम से लूटने का नया तरीका ढूंढ़ लिया है

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साइबर सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिन्न हिस्सा बताकर देश की प्रगति के लिए एक अनिवार्यता का उल्लेख किया है। आज इंटरनेट जिस तरह रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है, वहां साइबर सुरक्षा की ओर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। लोगों को मोबाइल फोन चलाना, इंटरनेट के जरिए विभिन्न सेवाओं का इस्तेमाल करना तो आ गया, लेकिन साइबर सुरक्षा के बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल करना बाकी है। 

यह जानकर ताज्जुब होता है कि इन दिनों साइबर ठग आम लोगों को तो खूब चूना लगा ही रहे हैं, वे अत्यंत उच्च शिक्षित एवं बड़े पदों पर सेवारत / सेवानिवृत्त अधिकारियों को भी धड़ल्ले से लूट रहे हैं! कई लोगों की ज़िंदगीभर की बचत साइबर ठगों ने चुटकियों में उड़ा ली। डिजिटल पेमेंट को देश की अर्थव्यवस्था के बेहतर भविष्य के तौर पर देखा जाता है, लेकिन साइबर ठग इसको जरिया बनाते हुए लोगों के बैंक खातों में सेंध लगा रहे हैं। 

जिस व्यक्ति के साथ एक बार साइबर ठगी हो जाती है, उसका डिजिटल पेमेंट से भरोसा कम हो जाता है। वह परंपरागत ढंग से (नकद) लेनदेन को प्राथमिकता देने लगता है। साइबर ठगों ने जिस तरह लूट मचा रखी है, उसके सामने आम आदमी खुद को असहाय महसूस करता है। सरकार को उन अपराधियों पर नकेल कसने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, जो लोगों की मेहनत की कमाई पर डाका डाल रहे हैं। 

केंद्रीय गृह मंत्री ने साइबर अपराधों से निपटने के लिए अगले पांच साल में 5,000 साइबर कमांडो को प्रशिक्षित करने और उन्हें तैयार करने की योजना बनाने की बात कही है। इससे साइबर अपराधों से निपटने में मदद जरूर मिलेगी। इसके साथ ही उन तौर-तरीकों को विकसित करने पर जोर देना चाहिए, जिससे किसी के बैंक खाते से राशि उड़ाना बहुत मुश्किल हो। 

अगर इसके लिए लेनदेन की कोई सीमा या अवधि तय करनी हो और डिजिटल सुरक्षा कवच विकसित करना हो तो वह भी किया जाए। देश के पास उच्च कोटि के तकनीकी विशेषज्ञ हैं। उनके सहयोग से डिजिटल लेनदेन निश्चित रूप से अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है।

साइबर ठग डिजिटल माध्यम से जो राशि उड़ाते हैं, वह एक निश्चित अवधि तक उस तंत्र में ही रहती है। वह किस खाते से उड़ाई गई, किस खाते में जमा की गई, कहां से निकाली गई ... जैसे बिंदुओं का पता जांच एजेंसियां आसानी से लगा सकती हैं। साइबर ठगों की संपूर्ण गतिविधियों के निष्कर्ष के आधार पर एक ऐसी प्रभावी प्रणाली विकसित की जाए, ताकि वे किसी व्यक्ति के बैंक खाते से राशि न उड़ा सकें। 

अगर वे किसी कारणवश राशि उड़ाने में कामयाब हो भी जाएं तो जिस खाते में राशि जमा हुई है, उस पर बहुत आसानी से तथा तुरंत रोक लगाने की व्यवस्था हो। आम जनता को इसकी जानकारी भी हो। भविष्य में उस खाते को बंद कर दिया जाए और साइबर ठगों की गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए। अभी स्थिति यह है कि अगर आम आदमी साइबर ठगी का शिकार हो जाए तो उसे पता ही नहीं होता कि अब क्या करना है! वह अपने बैंक से संपर्क करता है। पेमेंट ऐप के हेल्प लाइन नंबर तलाशता है। पुलिस के पास भी जाता है। अगर इस बीच कहीं से राहत मिल जाए तो ठीक, अन्यथा इसे ही अपना भाग्य समझकर संतोष कर लेता है। 

ऐसे बहुत मामले सामने आए हैं, जब लोगों ने रुपए गंवाने के बाद अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाए, लेकिन वे खाली हाथ ही रहे। इन दिनों साइबर ठगों ने 'डिजिटल अरेस्ट' के नाम से लूटने का नया तरीका ढूंढ़ लिया है। लोगों के पास फोन आ रहे हैं कि आपके आधार नंबर पर जारी सिम कार्ड का अवैध उपयोग हो रहा है ... उससे बैंक खाता खोलकर मनी लॉन्ड्रिंग की जा रही है ... आपके नाम से पार्सल में मादक पदार्थ, फर्जी पासपोर्ट आदि बरामद हुए हैं ... लिहाजा आपको 'डिजिटल अरेस्ट' किया जा रहा है। 

उसके बाद पीड़ित को भरोसे में लेकर उसे 'छोड़ने' के लिए कुछ शर्तें रखी जाती हैं। पीड़ित अपना पीछा छुड़ाने के लिए शर्तें मान लेता है। वह अपने बैंक खाते संबंधी विवरण तो देता ही है, अपनी पूरी राशि भी ठगों के खाते में भेज देता है। उसे इस बात का भरोसा दिलाया जाता है कि 'अगर आप जांच में निर्दोष पाए गए तो यह राशि आपको वापस भेज दी जाएगी ... अभी यह सरकार के खाते में जमा हो रही है।' 

जब उसे सच्चाई का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो जाती है। ठगों ने यह पैंतरा आजमाकर बड़े-बड़े अधिकारियों को लूट लिया। कई पीड़ित तो बैंक और पुलिस विभाग में काम कर चुके हैं! ऐसी घटनाओं के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि लोग अपने मोबाइल फोन पर आई हर चीज को सच मान लेते हैं, जबकि ख़बरों का सबसे ज्यादा विश्वसनीय एवं सुरक्षित माध्यम 'अख़बार' तो इस संबंध में कई बार चेतावनी दे चुका है। जो ख़बरें पढ़कर सतर्क हो गए, वे सुरक्षित भी रहे।

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