एनसीपीसीआर ने बच्चों के लिए मदरसा शिक्षा के बारे में उच्चतम न्यायालय से क्या कहा?

जो बच्चे औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में नहीं हैं, वे प्रारंभिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हैं

Photo: NCPCR.Official FB Page

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि मदरसे बच्चों को उचित शिक्षा देने के लिए अनुपयुक्त स्थान हैं और वहां दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है तथा शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है।

बाल अधिकार संस्था ने शीर्ष अदालत को बताया कि जो बच्चे औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में नहीं हैं, वे प्रारंभिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हैं, जिसमें मध्याह्न भोजन, वर्दी आदि जैसे अधिकार शामिल हैं।

एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसों में पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी की कुछ पुस्तकों को शामिल करके केवल शिक्षा प्रदान करने के नाम पर दिखावा किया जा रहा है और इससे यह सुनिश्चित नहीं होता कि बच्चों को औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।

इसमें कहा गया है, 'मदरसा न केवल 'उचित' शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है, बल्कि आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21, 22, 23, 24, 25 और 29 के तहत प्रदत्त अधिकारों का भी अभाव है।'

एनसीपीसीआर ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष दायर अपने लिखित कथन में कहा, 'इसके अलावा, मदरसे न केवल शिक्षा के लिए असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करते हैं, बल्कि उनके कामकाज का तरीका भी मनमाना है, जो पूरी तरह से मानकीकृत पाठ्यक्रम और कार्यप्रणाली का अभाव है।'

बाल अधिकार संस्था ने कहा कि आरटीई अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के अभाव के कारण मदरसे भी अधिनियम, 2009 की धारा 21 के तहत मिलने वाले अधिकार से वंचित हैं।

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