बदलाव लाएं, सक्षम बनें

बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का बाजार में प्रभुत्व रातोंरात नहीं बढ़ा है

निकट भविष्य में 'ऑनलाइन शॉपिंग' कम नहीं होगी, बल्कि इसका विस्तार होगा

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे 10 करोड़ छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए आवाज उठाकर उनके हितों से जुड़े मुद्दे को रेखांकित किया है। ये विक्रेता देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके पास इतने संसाधन नहीं होते कि ये बड़ी कंपनियों को टक्कर देते हुए अपने प्रचार-प्रसार पर अरबों रुपए खर्च कर सकें। गांव-ढाणियों तक रोजगार के अवसरों का सृजन करने वाले इन विक्रेताओं की रोजी-रोटी पर ग्रहण लगेगा तो देश में बेरोजगारी फैलेगी। इससे कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। 

बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का बाजार में प्रभुत्व रातोंरात नहीं बढ़ा है और न ही दुकानदारों के सामने यह स्थिति अचानक पैदा हुई है। पिछले दशक के मध्य में जब इंटरनेट सेवाओं का तेजी से विस्तार हो रहा था, ऑनलाइन खरीदारी में लोगों का रुझान बढ़ रहा था, तब छोटे खुदरा विक्रेताओं को संगठित होकर कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए थे। उससे थोड़ा पहले, जब कुछ ही लोग मोबाइल फोन पर इंटरनेट सेवाओं का इस्तेमाल करते थे और कभी-कभार ऑनलाइन खरीदारी कर लेते थे, तब बहुत लोग (जिनमें कई दुकानदार भी शामिल हैं) कहते थे कि 'ऑनलाइन शॉपिंग' अमेरिका जैसे देशों में तो ठीक है, लेकिन यह भारत में नहीं चल सकती! 

क्यों नहीं चल सकती? यहां आम लोगों के पास इंटरनेट सुविधा नहीं है, ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए बैंक खाता नहीं है! और तो और, आधा किलो टिंडे और पाव भिंडी के लिए भी बहुत मोल-भाव करने के बाद उन्हें छांट-छांटकर टोकरी में रखने वाली तथा मुफ्त का धनिया लेने वाली जनता मोबाइल फोन पर चीजें देखकर कैसे विश्वास करेगी? वहां मोल-भाव कहां? भारत में तो वही चलता रहेगा, जो अब तक चलता आया है। हमने दुकानदारी ही की है! हमें कौन हिला सकता है?

साल 2024 में हम देख सकते हैं कि ई-कॉमर्स कंपनियों ने इन सभी धारणाओं को गलत साबित कर दिया। अब लोगों के पास बेहतर मोबाइल फोन हैं, इंटरनेट सुविधा है, ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए कई विकल्प हैं, वे ऑनलाइन खरीदारी भी कर रहे हैं। खासकर त्योहारी सीजन में तो इन कंपनियों का काम इतना बढ़ जाता है कि अतिरिक्त कर्मचारी रखने पड़ते हैं। 

वहीं, कई बड़ी दुकानों और शॉपिंग मॉल के मालिक भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि 'ऑनलाइन शॉपिंग' के कारण उनके कारोबार पर असर पड़ा है। उत्तर-पूर्व के एक राज्य में अपना मॉल चलाने वाले एक कारोबारी कहते हैं कि 'पहले क्रिसमस और नए साल पर खूब बिक्री होती थी। लोग मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक सामान, तोहफे, कार्ड वगैरह खरीदने में ज्यादा दिलचस्पी रखते थे। जब से ऑनलाइन शॉपिंग का ज़माना आया है, बिक्री घटती जा रही है। किसी तरह कर्मचारियों की तनख्वाह और बिजली-पानी का खर्च ही निकल रहा है।' 

यही कहानी कुछ और शब्दों में कई लोगों से सुनने को मिल जाएगी कि 'कुछ साल पहले धंधा ठीक था, अब वैसी कमाई नहीं रही, खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना ने भी बहुत नुकसान पहुंचाया।' 

तो क्या किया जाए? इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि सबके जीवन पर इंटरनेट का प्रभाव बढ़ा है। इसमें जैसे-जैसे नई तकनीक आएगी, यह और बढ़ेगा। निकट भविष्य में 'ऑनलाइन शॉपिंग' कम नहीं होगी, बल्कि दूर-दराज के इलाकों तक इसका विस्तार होगा। इसलिए हर दुकानदार, चाहे उसकी आमदनी हजारों रु. में हो या लाखों रु. में, ऑनलाइन बिक्री के तौर-तरीकों पर विचार करे। जहां तक संभव हो, अपना सामान ऑनलाइन बेचने की संभावना तलाशे। यह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। 

अगर अपनी वेबसाइट बनवा लें तो बेहतर, अन्यथा फोन/वॉट्सऐप पर ही ऑर्डर लेकर ग्राहक के घर तक सामान पहुंचाएं। कीमतों की सूची तैयार कर ग्राहकों को ऑनलाइन उपलब्ध कराएं। उसमें सरलता का ध्यान रखें। बड़ी कंपनियों द्वारा ली जा रहीं कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए अपने सामान की कीमत थोड़ी कम रखें। सेवाओं में गुणवत्ता और व्यवहार में विनम्रता लाएं। 

आपकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि अपने ग्राहकों को विदेश में बैठे उन अरबपतियों से बेहतर जानते हैं, जो बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां चला रहे हैं। आप अपने शहर, मोहल्ले के निवासियों की पसंद-नापसंद को ज्यादा जानते हैं। अपने कौशल व अनुभव के साथ तकनीक के नए तौर-तरीके जोड़ें और समय के साथ बदलाव करते रहें। अगर इतना कर लेंगे तो अपने हितों की रक्षा करने में खुद ही सक्षम हो जाएंगे।

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