'पेजरकांड' से उठते कई सवाल

इसके पीछे इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ बताया जा रहा है

ये पेजर जब हिज्बुल्लाह तक पहुंचे, उससे पहले ही मोसाद ने उनसे 'छेड़छाड़' कर दी थी

लेबनान में हजारों की तादाद में 'पेजर' में अचानक धमाके होने की घटनाएं दूरसंचार क्रांति के उस पहलू को सामने लाती हैं, जिसके बारे में कभी इतने बड़े स्तर पर चर्चा नहीं हुई थी। अगले ही दिन रेडियो सेट 'वॉकी-टॉकी' में भी धमाके हुए। अगर ऐसे धमाके एक-दो उपकरणों में ही होते तो इसे दुर्घटना कहा जा सकता था, लेकिन हजारों की तादाद में पेजर का फटना न तो कोई दुर्घटना है और न ही कोई संयोग है। इसके पीछे इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ बताया जा रहा है, जिसने पहले भी कई घातक हमले कर अपने 'दुश्मनों' को चौंकाया है। 

पिछले साल 7 अक्टूबर को जब हमास और उसके साथी चरमपंथी संगठनों ने इज़राइल पर धावा बोला था तो मोसाद की खूब किरकिरी हुई थी। कहा गया था कि इस खुफिया एजेंसी ने फिल्मों और किस्से-कहानियों में ही अपनी खास तरह की छवि बना रखी है, असल में यह इतनी दमदार नहीं है। अब लेबनान में 'पेजरकांड' ने दिखा दिया कि मोसाद का नेटवर्क कितना मजबूत है और इसकी जड़ें कितनी गहरी हैं! 

पहले, हिज्बुल्लाह ने अपने सदस्यों को मोबाइल फोन इस्तेमाल करने से मना किया था। उसे आशंका थी कि मोबाइल नेटवर्क में मोसाद सेंध लगा सकती है। इसके बाद पेजर पर निर्भरता बढ़ी, जिसे तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित माना गया था। हालांकि पेजर बहुत घातक निकला! इस उपकरण के जरिए एक ही दिन में हजारों लोगों को निशाना बनाने की संभवत: पहली घटना हुई है। 

अभी पूरी जानकारी सामने नहीं आई, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि ये पेजर जब हिज्बुल्लाह के सदस्यों तक पहुंचे, उससे पहले ही मोसाद ने उनसे 'छेड़छाड़' कर दी थी। यूं तो लेबनान का खुफिया विभाग उपकरणों के मामले में काफी सावधानी बरतता है, लेकिन उसको भी शक नहीं हुआ कि ये पेजर एक दिन किसी बम की तरह फट जाएंगे।

इस घटना को इज़राइल, हिज्बुल्लाह, हमास, लेबनान, ईरान ... से थोड़ा अलग हटकर देखें तो इसके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी कई चिंताएं जुड़ी हुई हैं। अब जबकि हमले का यह तरीका सार्वजनिक हो चुका है तो भारतविरोधी ताकतें भी इसे आजमाने की कोशिशें कर सकती हैं। खासकर चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां तो ऐसे ही मौके की तलाश में रहती हैं। 

याद करें, जब से सोशल मीडिया का प्रसार हुआ है, कितने ही लोग हनीट्रैप के शिकार हो चुके हैं! उनमें सुरक्षा बलों के अधिकारी, वैज्ञानिक से लेकर आम नागरिक तक शामिल हैं। पेजरकांड के बाद कई सवाल उठते हैं। जैसे- जिन मोबाइल फोन व लैपटॉप में चीनी पुर्जों का इस्तेमाल होता है, वे कितने सुरक्षित हैं? इलेक्ट्रिक वाहन, घड़ी, बैटरी से चलने वाले ऐसे खिलौने जिनका निर्माण चीनी कंपनियों द्वारा किया गया या जिनमें चीनी पुर्जे लगे हैं, क्या वे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती पैदा कर सकते हैं? 

केंद्र सरकार पूर्व में कई चीनी मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध लगा चुकी है। इसके बावजूद देश में चीनी फोन और चीनी ऐप्स का इस्तेमाल जारी है। क्या यह सही समय नहीं है, जब हमें तकनीकी दृष्टि से पूरी तरह आत्मनिर्भरता के लिए कदम उठाना चाहिए? हमारे पास 'अपना' सर्च इंजन भी होना चाहिए। इसी तरह ईमेल सेवाओं के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भरता पूरी तरह समाप्त होनी चाहिए। जो लोग सुरक्षा बलों में कार्यरत हैं, उन्हें तो इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि वे दूरसंचार के लिए विदेशी कंपनियों की सेवाएं लेने से परहेज करें। 

पिछले कुछ वर्षों में ऐसी चीजों / सेवाओं / मंचों के विध्वंसक इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ी हैं, जिनके बारे में आमतौर पर ऐसा नहीं सोचा जाता। हाल में पाकिस्तान में कुछ आतंकवादियों ने एक पुलिस थाने पर हमला करने के लिए ऑनलाइन गेम के फीचर्स का इस्तेमाल किया था। वे उसके चैट रूम के जरिए संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे थे। ये 'नए दौर' के युद्धों के तौर-तरीके हैं, जिनको लेकर हमें सावधान रहना होगा।

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