हिंसकों और भस्मासुरों को पड़ोसी जनता चुनती ही क्यों है?

भारत ही एकमात्र देश है, जो अपने पड़ोसियों के बीच अलग तरह का देश है

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आचार्य विष्णु श्रीहरि
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पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन की आंधी चल रही हैं| कहीं जनता शासकों को कान पकड़ कर बाहर कर रही है तो कहीं तख्तापलट हो रहा हैं, कहीं इस्लामिक शासन स्थापित हो रहा है तो कहीं तानाशाही कायम हो रही है| इसका उदाहरण बंग्लादेश है और श्रीलंका हैं| इन दोनों देशों में अभी-अभी नयी सरकारें स्थापित हुई है| बांग्लादेश में जहां पर तख्तापलट हुआ, लोकतांत्रित ढंग से चुनी हुई सरकार कुचली गयी और इस्लामिक मूल्यों पर आधारित हिंसक और हिन्दू विरोधी सरकार बनायी गयी जो अन्य अल्पसंख्यक मूल्यों का भी घोर विरोधी है जिसनें इस्लामिक हिंसा और कत्लेआम के खिलाफ अपना सत्ता फर्ज निभाने के लिए आगे नहीं आयी| श्रीलंका में भी सत्ता परिवर्तन हुआ है, कहने के लिए एक लोकतांत्रित सरकार वहां भी स्थापित हुई है पर वह लोकतांत्रित सरकार सिर्फ नाम मात्र की है उसकी मान्यताएं कम्युनिस्ट विचार धारा से मिलती हैं, कम्युनिस्ट विचारधारा की मान्यताओं का सीधा अर्थ हिंसक, अराजक और वैश्विक विरोधी होना|

इसके अलावा अन्य पडोसियों देशों जैसे पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान, म्यांमार आदि में भी जो सरकारें स्थापित हैं वे सरकारें कहीं से भी मानवीय मूल्यों से जुड़ी हुई नही हैं और सर्वधर्म सम्मभाव से दूर हैं| अफगानिस्तान का तालिबान सरकार अपने स्थापना के समय से ही गैर मुसलमानों का दमन कर चुकी हैं, अपने शासन क्षेत्र से गैर मुसलमानों को हिंसा और धमकी के बल पर भागने के लिए मजबूर कर दिया है| जबकि पाकिस्तान अपने इस्लामिक मूल्यों पर हिंसक रहने की गतिविधियों के घेरे में ही कैेद रहता है| मालदीव में भी घोर इस्लामिक हिंसक मूल्यों वाली सरकार है| नेपाल में कम्युनिस्ट मूल्यों वाली सरकार है| नेपाल में कम्युनिस्ट मूल्यों वाली सरकार चीन के साथ दोस्ती रखती हैं और भारत के साथ दुश्मनी रखती हैं|

चीन और पाकिस्तान जैसे हमारे दुश्मनों के लिए अच्छी बात यह है कि उसकी संस्कृति और मानसिकता के ही सरकारें बन रही हैं| सिर्फ भारत ही एक मात्र देश है जो अपने पड़ोसियों के बीच अलग तरह का देश है जिसके लिए अल्पंसख्यक ही महत्वपूर्ण और विकास-उन्नति के केन्द्र विन्दु होते हैं और उनके लिए संविधान भी विशेष ध्यान रखता है| लेकिन भारत के लिए ऐसी सरकारें चिंता के ही विषय होती हैं और भारत के सामने कई प्रकार की चुनौतियां खड़ी होती हैं, अपनी अर्थव्यवस्था और गरीब जनता की कीमत पर भारत को ऐसी देशों की बुनियादी और जरूरी जरूरतों को पूरा करने के लिए आगे आना पड़ता है| पर एक महत्तवपूर्ण विचारन का विषय यह है कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल क्या ये सफल देश हैं, क्या ये स्वयं पर खडे देश हैं, क्या ये कटोरे लेकर भीख मांगने वाले देश नहीं हैं, क्या ये भारत जैसे मूर्ख देश के रहमोकर्म पर जिंदा रहने वाले देश नहीं हैं| सच तो यह है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका और नेपाल एक विफल देश हैं, विफल देश उस देश को कहते हैं जो हिंसा ओर अलगाव से युक्त होता है और जो आर्थिक तंत्र से बेहाल, फटहाल होता है, जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय नियम कानूनों की प्राथमिकता निरर्थक होती है, बेकार होता है, चारो तरफ अराजकता फैला हुआ होता है| दुनिया के लिए विफल देश एक बहुत बड़ी समस्या की तरह होते हैं जहां पर सिर्फ और सिर्फ हिंसा ही पसरी होती है और चारों तरफ गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती हैं, भूख और बेकारी पसरी होती है, भूख बेकारी से मानवता भी शर्मसार होती है| ऐसे देशों की मानवीय सहयाताएं देना विश्व समुदाय की जिम्मेदारी बन जाती है| यही कारण है कि विफल देश को दुनिया अपने लिए एक समस्या मानती हैं और एक संकट भी मानती है|

भारत के पड़ोसी देशों की जनता भी इसी मानसिकता के सहचर हैं| इनके लिए राजकता, शांति, सदभाव और उन्नति-विकास की अवधारणाएं कहीं भी अर्थ नहीं रखती हैं| वे हमेशा ऐसी सरकार चुनती हैं और ऐसे शासक चुनते हैं जो भस्मासुर होते हैं, हिंसक होते हैं, आतंकी होते हैं, मानवता विरोधी होते हैं, विकास विरोधी होते हैं, उन्नति विरोधी होते हैं, धार्मिक रूप से असहिष्णुता कायम करने वाले होते हैं, अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसक स्वभाव रखने वाले होते हैं, जिनके लिए अंतर्राष्ट्रीय चार्टर कोई अर्थ ही नहीं रखता है| क्या तालिबान आकाश और पताल में रहता था, तालिबान तो अफगानिस्तान की जनता के बीच ही संरक्षण पाता था| पाकिस्तान के शासकों ने आतंकवाद की खेती कर और आतंकवाद के फैक्टरी खोल कर पाकिस्तान को एक हिंसक और आतंकवादी निर्यातक देश नहीं बना दिया है, इसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था चौपट नहीं हुई है क्या? इस कारण पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में कटौरे लेकर भीख नहीं मांग रहा है? फिर भी भीख उसे नहीं मिल रही है| पाकिस्तानी जहां भी जाते हैं वहां पर तिरस्कार और अपमान झेलते हैं, उनकी पहचान सिर्फ और सिर्फ आतंकी की होती है, हिंसक की होती है, मानवता खोर की होती है| मालदीव सिर्फ एक टापू वाला देश है जो समुद्र में विलीन होने वाला है, कोई उसे अपनी जमीन देने के लिए तैयार नहीं है| 

मालदीव की अर्थव्यवस्था भारत की मेहरबानी पर चलती है, भारत की आर्थिक सहायता पर मालदीव का संकट दूर होता है, प्राकृतिक आपदा आने पर भारत ही मदद करता है पर मालदीव की जनता ने एक ऐसे हिंसक और मजहबी व विकृत मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति को अपना शासक बना बैठा जो भस्मासुर बन गया और मदद देने वाले भारत के खिलाफ ही आंख दिखाने लगा, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इस्लामिक यूनियनबाजी पर उतर आया| नेपाल में जनता ने चीन पक्षधर कम्युनिस्टो को अपना शासन बना लिया| सबसे ज्यादा चिंता तो श्रीलंका की जनता ने कायम की है| श्रीलंका की जनता ने एक ऐसे व्यक्ति को अपना शासक चुन लिया जो कर्म और विचारधारा से कम्युनिस्ट है, कम्युनिस्ट विकास और उन्नति के विरोधी होते हैं, अर्थव्यवस्था का विध्वंस करते हैं, अशांति को स्थापित करते हैं| इसका उदाहरण सोवियत संघ ही नहीं बल्कि भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल जैसे प्रदेश भी है जहां पर कम्युनिस्टों ने अपने शासन के दौरान विकास और उन्नति की कब्र खोद डाली, कल-कारखानों को बंद करा दिया, कानपुर जिसे भारत का मैनचैस्टर कहा जाता था को कम्युनिस्ट यूनियनबाजी ने कब बना दिया, आज कानपुर विरान है, बड़े उद्योगों और बडी फैक्टरियों का नामोनिशान मिट गया| श्रीलंका को चीन ने तबाह कर दिया और उसकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया| एक कम्युनिस्ट शासक श्रीलंका को फिर से समृद्धि की राह पर गतिमान कर सकता है? बांग्लादेश में इस्लामिक शासन बना कर कौन सा संदेश दिया गया है? बांग्लादेश भी कुछ दिनों में बुनियादी समस्याओं के लिए तरसेगा, जहां पर हिंसा और आतंकवाद की फैक्टरियां दुनिया के लिए चुनौती बनेगी| म्यांमार के आधे भूभाग पर सेना सरकार का अस्तित्व ही नहीं है|

चीन की कारस्तानी भी विमर्श में शामिल होनी चाहिए| भारत विरोध के कारण चीन हमेशा इस्लामिक और कम्युनिस्ट तानाशाही वाली सरकारें बनवाती रही हैं| हिंसक, भ्रष्ट और राजकता विरोधी शासक चीन के टूल बन जाते हैं| चीन पहले कर्ज का फांसा फेंकता है और बाद में कंगाल कर देता है| चीन के कर्ज से श्रीलंका कैसे तबाह हुआ, यह उदाहरण के तौर पर हमारे सामने खड़ा है| चीन के पक्ष में जो खड़ा हुआ, उसके कर्ज का जो शिकार हुआ वह कटौरे लेकर भीख मांगने लगा| फिर भी पडोसी देशों के शासक चीन के प्रति निष्ठा और यूनियनबाजी से बाज नहीं आते हैं|

पड़ोस में ऐसी इस्लामिक और तानाशाही मूल्यों वाली सरकारें भारत के लिए एक खतरनाक चुनौती और समस्या बन गयी हैं| भारत को इससे सावधान रहना होगा| भारत को अपनी सीमा सुरक्षित रखनी होगी| अपनी तिजोरी भी बंद रखनी होगी| ऐसे पडोसी देशों को उसके भाग्य और कर्म पर ही छोड़ देना चाहिए| भारत को इन सांपों को मदर कर दयावान बनने की कोई जरूर नहीं है क्योंकि ये हिंसक और भस्मासुर हैं|

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