'वन नेशन, वन इलेक्शन' आज के भारत की आवश्यकता

चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है

जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए

प्रह्लाद सबनानी
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं| परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को १९५० एवं १९६० के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग समय पर कराए जाने लगे| आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं| ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल ६५ दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं|

किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है| जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के श्रम से किसी प्रकार का उत्पादन तो होता नहीं है परंतु एक तरह से श्रमदान जरूर करना होता है| यह श्रम यदि बचाकर किसी उत्पादक कार्य में लगाया जाय तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि इस श्रम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकती है| अमेरिकी थिंक टैंक के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, देश में बार बार चुनाव कराए जाने के चलते उस देश का सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत से कम हो जाता है| चुनाव कराने के लिए होने वाले खर्च पर भी यदि विचार किया जाय तो भारत में केवल लोकसभा चुनाव कराने के लिए ही ६०,००० करोड़ रुपए का खर्च किया जाता है| आप कल्पना कर सकते हैं इस राशि में यदि विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं, नगर निगमों, निकायों एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव पर किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ा जाय तो खर्च का यह आंकड़ा निश्चित ही एक लाख करोड़ रुपए के आंकडें को पार कर जाएगा|

उक्त बातों के ध्यान में आने के पश्चात केंद्र सरकार ने विचार किया है कि भारत में वन नेशन वन इलेक्शन के नियम को लागू किया जाना चाहिए| इस विचार को आगे बढ़ाने एवं इस संदर्भ में नियम आदि बनाने के उद्देश्य से भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन  किया गया था| इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में राष्ट्रपति/केंद्र सरकार को सौंप दी है| इसके बाद, केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल की समिति ने इस रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया है एवं इसे अब लोकसभा एवं राज्यसभा  के सामने विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा|

किसी भी देश की लोकतंत्रीय प्रणाली में समय पर चुनाव कराना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है| चुनाव किस प्रकार हों, समय पर हों एवं सही तरीके से हों, इसका बहुत महत्व होता है| परंतु देश में चुनाव बार बार होना भी अपने आप में ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती है| विश्व के कई देशों, यथा स्वीडन, ब्राजील, बेलजियम, दक्षिण अफ्रीका, आदि में समस्त प्रकार के चुनाव एक साथ ही कराए जाने के नियम का पालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है| चुनाव एक साथ कराने के कई फायदे हैं जैसे इन देशों में चुनाव कराने सम्बंधी खर्चों पर नियंत्रण रहता है| दूसरे, सुरक्षा हेतु पुलिसकर्मियों एवं चुनाव करवाने के लिए स्थानीय कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता को कम किया जा सकता है| तीसरे, देश में चुनाव एक साथ कराने से अभिशासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है एवं चौथे विभिन्न स्तर के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव में वोट डालने वाले नागरिकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होती है क्योंकि नागरिकों को मालूम होता है कि पांच साल में केवल एक बार ही वोट डालना है अतः वह अन्य कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करना पसंद करता है| इसी प्रकार यदि कोई नागरिक किसी अन्य नगर यथा दिल्ली में कार्य कर रहा है और उसके मुंबई का निवासी होने चलते उसे वोट डालने के लिए मुंबई जाना होता है तो पांच वर्ष में एक बार तो इस महान कार्य के लिए वह दिल्ली से मुंबई आ सकता है परंतु पांच वर्षों में पांच बार तो वह दिल्ली से मुंबई नहीं जा पाएगा| इसके अलावा लोकसभा, विधानसभाओं, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग होने से विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारी, इनमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मंत्री आदि भी शामिल रहते हैं, अपना सरकारी कार्य छोड़कर चुनाव प्रचार के लिए अपना समय देते हैं| जबकि, यह समय तो उन्हें देश एवं प्रदेश की सेवा में लगाना चाहिए| इससे देश में अभिशासन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है|    

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए गठित उक्त विशेष समिति ने यह सलाह दी है कि शुरुआत में लोकसभा एवं समस्त प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते है| यदि ऐसा होता है तो यह भी सही है कि देश में लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संसाधनों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी, इसका हल किस प्रकार निकाला जाएगा इस पर भारतीय संसद में विचार किया जा सकता है| साथ ही, भारत में ६ राष्ट्रीय दल, ५४ राज्य स्तरीय दल एवं २००० से अधिक गैर मान्यता प्राप्त दल हैं जिनके बीच में सामंजस्य स्थापित करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है| साथ ही, भारत में अंतिम बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ १९६० के दशक में कराए गए थे| आज भारतीय नागरिकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता होगी कि लोकसभा, विधान सभाओं एवं स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ किस प्रकार कराए जा सकते हैं ताकि उन्हें वोट डालने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो| इन समस्याओं का हल भारतीय संसद में चर्चा के दौरान निकाला जा सकता है| यदि किसी कारण से केंद्र में लोकसभा अथवा किसी प्रदेश में विधानसभा पांच वर्ष की समय सीमा के पूर्व ही गिर जाती है तो लोकसभा अथवा उस प्रदेश की विधान सभा के चुनाव शेष बचे हुए समय के लिए पुनः कराए जा सकते हैं, ऐसे प्रावधान को कानूनी रूप प्रदान दिया जा सकता है| इससे विभिन्न राजनैतिक दलों के सांसदों एवं विधायकों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे लोकसभा अथवा विधानसभा को समय पूर्व भंग कराने अथवा गिराने का प्रयास नहीं करें|वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बंध में कुछ संशोधन तो देश के वर्तमान कानून में करने ही होंगे और फिर पूर्व में भी विभिन्न विषयों पर अलग अलग खंडकाल में (समय समय पर) १०० बार से अधिक संशोधन कानून में किए ही जा चुके हैं|

यह तर्क भी सही नहीं है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से भारत के नागरिक केंद्र एवं राज्यों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार चुनने को प्रोत्साहित होंगे| परंतु, भारत का नागरिक अब पूर्ण रूप से परिपक्व एवं सक्षम हो चुका है कि वह लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर केवल एक ही दल की सरकार को नहीं चुनेगा| देश में ऐसा कई बार हुआ है कि लोकसभा एवं विधान सभा के एक साथ हुए चुनवा में लोकसभा में एक दल के सांसद को चुना गया है एवं विधान सभा में किसी अन्य दल के विधायक को चुना गया है|  

भारत आज एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में भारत को अपने संसाधनों का उत्पादक कार्यों के लिए उपयोग करना आवश्यक होगा न कि रक्षा एवं सरकारी कर्मचारी देश में बार बार हो रहे चुनाव के कार्यों में व्यस्त रहें| कुल मिलाकर वन नेशन वन इलेक्शन, देश के हित में उठाया जा रहा एक मजबूत कदम है| इस विषय पर, भारत के हित में, देश के समस्त राजनैतिक दलों को गम्भीरता से विचार कर इस नियम को भारत में लागू किया जाना चाहिए|

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