नृपेंद्र अभिषेक नृप
महात्मा गांधी का सपना एक ऐसे भारत का निर्माण करना था, जहां गांवों का विकास हो, न कि केवल शहरों का| भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है| लेकिन विडंबना यह है कि विकास की मुख्यधारा शहरों में केंद्रित हो गई है और ग्रामीण क्षेत्रों को अपेक्षित महत्व नहीं मिल पाया है| वर्तमान समय में, जब सरकारें ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं बना रही हैं, तब भी निचले स्तर पर आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं की कमी बनी हुई है| स्वास्थ्य सेवा किसी भी समाज की नींव होती है, और इसका मजबूत होना बेहद आवश्यक है| लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि शहरों में उच्च गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य सेवाओं का अधिक प्रवाह हो रहा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी है| प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (झकउ) जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मुख्य केंद्र होते हैं, अक्सर अच्छी सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों से वंचित रहते हैं|
वर्ष २०२३ की स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी के कारण कई लोग प्राथमिक इलाज के लिए शहरों की ओर रुख करते हैं| यह स्थिति ग्रामीण विकास में बाधा उत्पन्न करती है और गांवों में जीवन स्तर को नीचे लाती है| इसका समाधान यह हो सकता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (झकउी) में अच्छे डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित की जाए , साथ ही उनके वेतन और भत्तों में अंतर रखा जाए, ताकि वे शहरों की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रोत्साहित हों| इस संदर्भ में, उन डॉक्टरों को जो दूरदराज क्षेत्रों में तैनात होते हैं, अधिक वेतन और भत्ते दिए जा सकते हैं|
शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति का आधार है| लेकिन जब बात ग्रामीण क्षेत्रों की आती है, तो स्थिति यहां भी दयनीय है| एक ओर, शहरों में जहां अच्छे शिक्षकों की अधिकता है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर कम योग्य और अयोग्य शिक्षक पाए जाते हैं| इसका परिणाम यह होता है कि वहां के छात्र अपेक्षित गुणवत्ता की शिक्षा से वंचित रहते हैं| वर्ष २०२३ की शिक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या कम है, और जो शिक्षक वहां तैनात हैं, उनकी गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में है| इसका कारण यह है कि अधिकतर शिक्षक शहरों में तैनाती को प्राथमिकता देते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में जाने से बचते हैं| इसे बदलने के लिए ‘प्रोत्साहन भत्तों की व्यवस्था करनी चाहिए‘, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले शिक्षकों को अधिक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं, जैसे कि अतिरिक्त आवास भत्ता और यात्रा सुविधाएं| वर्तमान व्यवस्था में शहरों के शिक्षकों और कर्मचारियों को अधिक हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) दिया जाता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात कर्मचारियों को कम| यह एक असमान व्यवस्था है, क्योंकि शहरों में काम के अधिक अवसर होते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित| इसीलिए इसमें समानता लाया जाए|
गांवों से शहरों की ओर पलायन का एक मुख्य कारण रोजगार के सीमित अवसर हैं| ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करके इस पलायन को रोका जा सकता है| मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जैसी योजनाएं इस दिशा में सहायक हो सकती हैं, लेकिन इसके साथ ही स्थायी रोजगार के अवसरों का निर्माण भी आवश्यक है| ग्रामीण विकास के कार्यों में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही| कई बार यह देखा जाता है कि गांवों में चल रही योजनाओं का लाभ वहां के लोगों तक नहीं पहुंच पाता है क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण विकास कार्य अधूरे रह जाते हैं| इसे नियंत्रित करने के लिए पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना आवश्यक है| इसके लिए सरकार को डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करना चाहिए, जिसके माध्यम से ग्रामीण विकास योजनाओं की निगरानी की जा सके और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके| इसके अलावा, जनता की भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें विकास कार्यों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि वे भी योजनाओं की निगरानी कर सकें| पंचायती राज और लोकल गवर्नेंस को और मजबूत बनाकर प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए|
सरकार को गांवों में लोक अदालतों और ग्रामीण न्यायालयों की स्थापना करनी चाहिए, जहां त्वरित और सस्ता न्याय प्राप्त हो सके| २०२४ की ग्रामीण न्याय रिपोर्ट के अनुसार, यदि ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय की पहुंच को बेहतर किया जाए, तो वहां के लोगों की समस्याओं का समाधान जल्दी और सुलभ तरीके से हो सकेगा| न्यायिक सुधारों के साथ ही, कानूनी साक्षरता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि ग्रामीण लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकें| वर्तमान युग में डिजिटल साक्षरता एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बन चुकी है| शहरों में लोग इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं का व्यापक रूप से उपयोग कर रहे हैं, जबकि गांवों में यह सुविधा अभी भी सीमित है| डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधाओं का विस्तार तो किया है, लेकिन इसे और व्यापक बनाने की जरूरत है|
गांवों के आर्थिक विकास के लिए कृषि और ग्रामीण उद्योग महत्वपूर्ण स्तंभ हैं| कृषि जहां ग्रामीण जीवन का प्रमुख आधार है, वहीं ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन देकर रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकते हैं| सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में किसानों के लिए नई तकनीकों का परिचय कराना, सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार करना, और फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं लाना आवश्यक है| साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर वहां रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं|
गांधीजी का मानना था कि गांवों का विकास तभी हो सकता है जब पंचायतों को सशक्त किया जाए| पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करके ही गांवों का समग्र विकास किया जा सकता है| इसमें गांव की आवश्यकताओं के अनुरूप विकास योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा सकता है| पंचायती राज के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं को सुनिश्चित करना चाहिए| सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि गांव के लोग ही गांव के विकास का नेतृत्व करें| उन्हें पंचायत स्तर पर अधिक अधिकार दिए जाएं, जिससे वे अपने गांव की जरूरतों के हिसाब से योजनाएं बना सकें और उनका सही क्रियान्वयन कर सकें| इसके लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता भी सरकार को प्रदान करनी चाहिए|
गांवों और शहरों के बीच संतुलित विकास के लिए गांव-शहर सहयोग मॉडल विकसित किया जा सकता है| यह मॉडल इस आधार पर काम करेगा कि गांव और शहर एक-दूसरे के पूरक बनें और उनके बीच संसाधनों और सेवाओं का आदान-प्रदान हो| उदाहरण के लिए, गांवों में उत्पादित कृषि उत्पादों को शहरों में बेचा जा सकता है, जबकि शहरों की तकनीकी सेवाएं और उद्योग गांवों तक पहुंचाई जा सकती हैं| गांवों के विकास में सामुदायिक सहभागिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| यदि गांव के लोग अपने विकास के प्रति जागरूक और सक्रिय होते हैं, तो वे न केवल सरकारी योजनाओं का बेहतर उपयोग कर सकते हैं, बल्कि अपनी जरूरतों और समस्याओं का समाधान भी निकाल सकते हैं| इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय नेतृत्व को प्रोत्साहन दिया जाए और गांवों में सामुदायिक संगठन और सहकारी समितियों का विकास किया जाए|
ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन एक बड़ी चुनौती है| हालांकि सरकार ने जन धन योजना, आधार और मोबाइल बैंकिंग जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली में सुधार करने के प्रयास किए हैं, फिर भी कई ग्रामीण इलाकों में अभी भी लोग बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं| गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा वहां के बुनियादी ढांचे की कमी है| सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं| प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना,हर घर जल योजनान, और सौभाग्य योजना जैसी सरकारी योजनाओं के माध्यम से गांवों में इन सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन इसे और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है| २०२३ की बुनियादी ढांचा विकास रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की गुणवत्ता और बिजली की उपलब्धता में सुधार की आवश्यकता है| इसके अलावा, सुरक्षित पेयजल और सैनिटेशन की सुविधाओं का विस्तार भी किया जाना चाहिए, ताकि गांवों में स्वास्थ्य और स्वच्छता का स्तर बढ़ सके| जब गांवों में बुनियादी सुविधाएं बेहतर होंगी, तब वहां का जीवन स्तर भी ऊंचा उठेगा और लोगों को शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं होगी|
शहरों और गांवों के बीच की असमानता को समाप्त करने के लिए गांवों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को प्रोत्साहन भत्तों, आवास भत्तों, और अन्य सुविधाओं का विस्तार करना होगा| साथ ही, गांवों में स्थानीय नेतृत्व और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देकर वहां के लोगों को अपने विकास की दिशा में सक्रिय रूप से भागीदारी निभाने का अवसर प्रदान करना होगा|