रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहकर पाकिस्तान को आईना दिखाया है कि यदि उसने मैत्रीपूर्ण संबंध रखे होते तो भारत उसे आईएमएफ से मांगे गए पैकेज से भी बड़ा राहत पैकेज दे देता। पाक ने बहुत बड़ा अवसर गंवा दिया। उसने अपने अस्तित्व में आने के बाद जो रास्ता अपनाया, वहां तबाही के अलावा कुछ और मिल ही नहीं सकता था।
अगर हम दुनिया के अन्य इस्लामी देशों के साथ भारत के संबंधों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे बहुत मैत्रीपूर्ण हैं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कतर, कुवैत, मिस्र जैसे देशों का व्यवहार वैसा बिल्कुल नहीं है, जैसा कि पाकिस्तान का है।
ईरान, जिसका पश्चिमी देशों और इजराइल के साथ दशकों से छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है, भारत के साथ मधुर संबंध रखता है। उसके सर्वोच्च नेता खामेनेई कभी-कभार भावावेश में आकर कोई टिप्पणी जरूर कर देते हैं, लेकिन अन्य वरिष्ठ नेताओं का रुख हमेशा सकारात्मक रहा है। खासकर ईरान की आम जनता भारत की संस्कृति, संगीत, पहनावे, खानपान, फिल्मों आदि को बहुत पसंद करती है।
कई इस्लामी देश तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से विभूषित कर चुके हैं। भारत के लाखों लोगों को इन देशों में रोजगार मिल रहा है। कतर ने तो अपने यहां फांसी की सजा पाए भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों को रिहा कर दिया था। वहीं, यूएई ने सहिष्णुता का ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अबू धाबी में हिंदू मंदिर बनाने की इजाजत दे दी थी, जिसका उद्घाटन मोदी ने किया था।
इन देशों में भी कुछ कट्टरपंथी तत्त्व हैं, लेकिन 'भारतविरोध' / 'हिंदूविरोध' वैसा नहीं मिलेगा, जैसा पाकिस्तान में है। आखिर, पाकिस्तान के साथ ऐसी क्या समस्या है, जिससे यह देश भारत से नफरत करता है, जबकि हमारी सरकारें इसकी ओर दोस्ती का ही हाथ बढ़ाती रही हैं?
इस पूरे झगड़े की जड़ है- दो कौमी नज़रिया, जिसका जहर जिन्ना ने पाकिस्तानियों के दिलो-दिमाग में कूट-कूटकर भर दिया। यह नज़रिया पाकिस्तान के स्कूलों-कॉलेजों की किताबों में पढ़ाया जाता है। वहां किसी को पासपोर्ट बनवाना हो या किसी ओहदे की शपथ लेनी हो, दो कौमी नज़रिए के प्रति अपना विश्वास व्यक्त करना होता है।
यह नज़रिया सभी गैर-मुस्लिमों से नफरत करना सिखाता है। यह पाकिस्तानियों को बताता है कि पूरी दुनिया में सबसे पाक और महान लोग आप ही हैं। वहां इतिहास के नाम पर उन विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन किया जाता है, जिन्होंने कभी उन्हीं के पूर्वजों पर अत्याचार किए थे। ज्यादातर पाकिस्तानी अपनी पहचान को लेकर हमेशा भ्रम की स्थिति में रहते हैं। वे कभी खुद को अरब बताते हैं, कभी ईरानी, कभी अफगान तो कभी तुर्क बताकर फख्र महसूस करते हैं।
एक पाकिस्तानी लेखक, जो बचपन से सुनते आए थे कि हमारे पूर्वज अरब देशों से थे, जो जंग जीतते-जीतते इधर आकर बस गए, ने जिज्ञासावश अपना डीएनए परीक्षण करवाया तो कहानी कुछ और ही निकली! उनके सभी पूर्वज भारतीय थे, जो एक-डेढ़ सदी पहले हिंदू थे।
वास्तव में पाकिस्तानियों को इस भ्रम में रखना उनकी फौज और सरकार की बहुत बड़ी कारस्तानी है। पाकिस्तान की बुनियाद 'भारतविरोध' और 'हिंदूविरोध' पर टिकी है। ऐसे में पाक फौज और सरकार को लगता है कि भारत से अच्छे संबंध होने पर पाकिस्तान का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा, खासकर फौज की तो हमेशा कोशिश रही है कि शांति के प्रयासों को बेपटरी किया जाए!
अगर पाकिस्तान के हुक्मरान अक्ल से काम लेते तो आज उनका देश बहुत खुशहाल होता। दोनों देशों के संबंध मधुर होते तो पाकिस्तान में महंगाई काबू में रहती। यह पड़ोसी देश पर्यटन से बहुत कमाई कर सकता था। उसका कपड़ा उद्योग बहुत उन्नति कर सकता था। पाक में आटे के लिए लंबी-लंबी लाइनें नहीं लगतीं और न ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को आईएमएफ के सामने हाथ फैलाना पड़ता। लेकिन कर्मफल टल नहीं सकता। पाकिस्तान ने अतीत में ऐसे कर्म किए हैं, जिनका फल अभी उसे वर्षों तक भोगना ही पड़ेगा।