केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सार्वजनिक स्वच्छता को लेकर जो चिंता जाहिर की है, वह हर विवेकशील मनुष्य को होनी स्वाभाविक है। एक तरफ तो हम दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की बातें कर रहे हैं, दूसरी तरफ सार्वजनिक स्थानों पर फैली गंदगी हमारी छवि खराब कर रही है।
कई विदेशी पर्यटक स्वदेश लौटने के बाद सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि वे भारतवासियों द्वारा किए गए स्वागत-सत्कार और विभिन्न स्थलों को देखकर मंत्रमुग्ध हुए, लेकिन स्वच्छता की अनदेखी बहुत अखरी ... किसी का जहां मन किया, थूक दिया ... जहां चाहा, कचरा फेंक दिया!
वास्तव में ऐसी समस्या सिर्फ भारत में नहीं है। पाकिस्तान और बांग्लादेश का भी यही हाल है। लोग अपने घरों को साफ रखने की कोशिश करते हैं, जबकि सार्वजनिक स्थानों पर जर्दा, तंबाकू, पान मसाला आदि खाकर धड़ल्ले से थूकते हैं। कई रेलवे स्टेशनों, बस डिपो, सरकारी दफ्तरों, अस्पतालों, सार्वजनिक शौचालयों की दीवारें इससे रंगी हुई मिलेंगी। यहां रोज़ाना कोई-न-कोई शख्स आकर अपना 'योगदान' जरूर देता है। उसे न तो इस बात का एहसास होता है कि सार्वजनिक स्थान पर थूकना अशिष्टता है और न ही इस बात का बोध होता है कि यूं थूकने से अन्य लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
अगर ऐसे लोगों को कोई टोकता है तो वे अपनी गलती मानने के बजाय उससे झगड़ा करने लग जाते हैं। नितिन गडकरी का यह सुझाव स्वागत-योग्य है कि पान मसाला खाने के बाद सड़क पर थूकने वाले लोगों की तस्वीरें खींचकर उन्हें अखबारों में प्रकाशित करना चाहिए, ताकि लोग उन्हें देख सकें।
यह प्रयोग कुछ लोगों की आदत में सुधार लाने के लिए कारगर सिद्ध हो सकता है। हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है। कई लोग, जो सार्वजनिक स्वच्छता के मुद्दे को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं और नियम तोड़ने पर गर्व महसूस करते हैं, वे अपनी तस्वीरें अखबार में छपी हुईं देखकर फूले नहीं समाएंगे और अपने 'कारनामे' का यह कहते हुए जोर-शोर से प्रचार करेंगे कि हमारे चर्चे तो अखबारों में होने लगे हैं, हम सेलिब्रिटी बन गए हैं!
ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने और अन्य लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ खास कदम उठाए जा सकते हैं। जिन सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा तादाद में लोग थूकते हैं, वहां सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। उसके बाद जो लोग वहां थूकते पाए जाएं, उनसे उस जगह की सफाई करवाई जाए। उनकी वे तस्वीरें अखबारों या सोशल मीडिया आदि में प्रकाशित की जाएं। साथ ही कुछ जुर्माना वसूला जाए। इन लोगों की एक सूची तैयार की जाए। उन्हें यह चेतावनी भी दी जाए कि अगली बार सार्वजनिक स्थानों पर थूकते पाए गए तो उस जगह की सफाई तो करनी ही होगी, उसके अलावा एक और स्थान, जिसमें किसी रेलवे स्टेशन या ट्रेन, बस डिपो, सरकारी दफ्तर, अस्पताल या सार्वजनिक शौचालय को शामिल किया जा सकता है, की सफाई करनी होगी। जुर्माना भी पिछली बार से ज्यादा लगेगा।
सार्वजनिक स्वच्छता सुनिश्चित करने में सिंगापुर ने बहुत प्रगति की है। वहां सार्वजनिक स्थानों पर थूकने, कचरा फेंकने और गंदगी फैलाने वालों पर सीसीटीवी से कड़ी नजर रखी जाती है और तगड़ा जुर्माना भी लगाया जाता है।
वहां हाल में एक भारतीय को किसी शॉपिंग मॉल के प्रवेश द्वार पर गंदगी फैलाने के अपराध में पकड़ा गया और उस पर लगभग 26 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया। जज ने उसे चेतावनी दी कि अगर अगली बार गंदगी फैलाते दिखे तो इससे ज्यादा जुर्माना लगाया जाएगा। स्थानीय अख़बारों ने इस मामले को प्रकाशित किया, जिससे अन्य लोगों को भी सबक मिला।
भारत में कुछ स्थानों पर प्रयोग के तौर पर ऐसी प्रणाली स्थापित की जाए। उसके अनुभवों के आधार पर अन्य स्थानों पर उसका विस्तार किया जाए। अगर इस पर ईमानदारी से काम किया गया तो कुछ ही वर्षों में सार्वजनिक स्थान बिल्कुल स्वच्छ नजर आने लगेंगे।