बाल मुकुन्द ओझा
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पशुओं के अधिकारों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिये दुनिया भर में हर साल चार अक्टूबर को विश्व पशु कल्याण दिवस के रूप में मनाया जाता है| इस आयोजन का उद्देश्य पशुओं के कल्याण के मानक में अपेक्षित सुधार लाना है| विश्व के सभी देशों में अलग-अलग तरह से इस दिवस को मनाया जाता है| इस वर्ष की थीम द वर्ल्ड इज देयर होम टू रखी गई है| इस दिवस का मूल उद्देश्य विलुप्त हुए प्राणियों की रक्षा करना और मानव से उनके संबंधो को मजबूत करना है| जन जागरण और जन शिक्षण के माध्यम से पशुओं को संवेदनशील प्राणी का दर्ज़ा देने के लिए समाज के सभी वर्गों का योगदान आवश्यक है| पशुओं के प्रति सम्वेदना के मामले में हम भारतीय सौभाग्यशालीं है क्योंकि हमारे यहॉं जीवन मूल्यों के साथ पशुओं के कल्याण को जोड़ा है| हमारे पौराणिक आख्यानों में जो दशावतार हैं उनमें से दो वराह और नृसिन्ह अवतार भी थे|
हमारे देश में पशु संरक्षण की सुदीर्घ और स्वस्थ परम्परा रही है जिसका निर्वहन हम आदिकाल से कर रहे है| यह दिवस जानवरों से प्रेम करने वाले और उन्हें सम्मान देने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है| यह पशु प्रेमी दिवस के नाम से भी जाना जाता है| इस दिवस का आयोजन १९३१ ईस्वी परिस्थिति विज्ञानशात्रियों के सम्मलेन में इटली के शहर फ्लोरेंस में शुरू हुआ था| इसका उद्देश्य विलुप्त हुए प्राणियों की रक्षा करना और मानव से उनके संबंधो को मजबूत करना था| आदिकाल से ही पशुओं और मनुष्य का संग रहा है| जंगली पशुओं को पालतू बनाया गया| उनसे फिर काम लिया गया| पालतू पशु भी घर परिवार के एक सदस्य की तरह ही हो जाता है|
इस दिवस को मनाने के कई अन्य कारण भी है| इनमें जानवरों के प्रति प्रकट किये जाने वाले घृणास्पद व्यवहार, आवारा कुत्तों और बिल्लियों के प्रति व्यवहार, उनका अमानवीय व्यापार आदि प्रमुख कारण है| इसके अलावा प्राकृतिक आपदा के समय भी इन जानवरों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था और उनकी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती जाती थी| पशु-उत्पीड़न कोई नई समस्या नहीं है| सदियों से पशुओं के साथ बुरा व्यवहार होता आया है| इतिहास की पुस्तकों से पता चलता है कि मानव का पहला साथी कुत्ता बना क्योंकि इसकी स्वामिभक्ति पर आज तक किसी प्रकार का संदेह व्यक्त नहीं किया गया| जैसे-जैसे मानव घर बसाकर रहने लगा, उसे खेती करने की आवश्यकता हुई वैसे-वैसे पशुओं का महत्व भी बढ़ता गया|
आर्य संस्कृति में गौ-जाति का बड़ा महत्व था, जिसके पास जितनी अधिक गाएँ होती थीं वह उतना ही प्रतिष्ठित और संपन्न माना जाता था| ऋषि-मुनि भी गौ पालते थे, वनों में घास की उपलब्धता प्रचुर थी| समय के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताओं का विस्तार हुआ, तब उन्होंने गाय, भैंस, बैल, बकरी, ऊँट, घोड़ा, गदहा, कुत्ता आदि पशुओं को पालना आरंभ किया| युद्ध के मैदानों में घोड़ों और हाथियों की उपयोगिता अधिक थी| राजे-महाराजे इन पशुओं को बड़ी संख्या में पालते थे| मशीनीकृत वाहनों के आविष्कार के पहले घोड़ा सबसे तेज गति का संदेशवाहक था| चाहे वस्तुओं की दुलाई हो अथवा मनुष्यों की हमारे घरेलू पशु इसके एकमात्र साधन थे| ग्रामीण भारत में बैलगाड़ियों की उपयोगिता आज भी बरकरार है|
इतनी सारी उपयोगिताओं के बावजूद पशुओं का उत्पीड़न मानवीय बुद्धिमत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता| घरेलू पशुओं को मल-मूत्र से युक्त कीचड़ में बैठने तथा खड़े होने के लिए विवश कर दिया जाता है| गाड़ियों में हॉंके जाने वाले पशुओं को प्राय इतनी निर्दयता से पीटा जाता है मानो वे निष्प्राण वस्तुएँ हों| हमें हमेशा पशु पक्षियों के प्रति प्रेम और सद्भाव से पेश आना चाहिए| वह भी हमारी तरह खुशी और दुःख के भाव महसूस करतें हैं| वे बोल नहीं सकतें पर उनकी अपना बोली है| कहीं लोग पक्षी पालतें हैं| पिंजरें में पक्षियों को रखकर पालना गलत है| पक्षी स्वभाव से आजाद है उनको आजाद छोड़ना ही सही होगा है| यदि हम किसी पीड़ित जानवर को देखें तो उसकी मदद करनी चाहिए| पशुवों के चिकित्सक के पास ले जाकर उसकी इलाज करवाना बड़े पुण्य का काम होगा| पशु पक्षी भी पीड़ा महसूस करतें हैं| बहुत कम लोगों में पशु पक्षी के प्रति प्रेम भावना जीवित हैं| अगर किसी में यह न भी हो तो कम से कम उन्हें तंग न करें| किसी छोटे बच्चे को किसी प्राणी पर अन्याय करते हुए देखें तो उन्हें रोकें और समझाएं|