जम्मू-कश्मीर में उपेक्षित समुदायों को नया जीवन

अनुच्छेद 35ए मूल संविधान का हिस्सा नहीं था

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ई. प्रभात किशोर
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भारत के संविधान में अनुच्छेद ३७० एवं ३५ ए दो विवादास्पद प्रावधान हैं, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करते हैं| अनुच्छेद ३७० राज्य को अपना संविधान बनाने का अधिकार देता है और राज्य के संबंध में संसद की शक्ति को प्रतिबंधित करता है| अनुच्छेद ३५ ए राज्य को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करने की शक्ति प्रदान करता है| अनुच्छेद ३५ ए मूल संविधान का हिस्सा नहीं था और इसे १९५४ में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से जोड़ा गया था|

५ अगस्त २०१९ को अनुच्छेद ३७० तथा ३५ ए को संसद के द्वारा निरस्त किये जाने के बाद, जम्मू और कश्मीर विधानसभा के लिए प्रथम चुनाव संपन्न हो गया है| हालांकि २०१९ से पहले भी जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों क्षेत्रों के लोग स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपना वोट डाला करते थे, परन्तु पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी, वाल्मीकि और गोरखा समुदायों को विधानसभा चुनावों में वोट डालने से भेदभावपूर्ण तरीके से वंचित रखा गया|

अनुच्छेद ३७० और ३५ए की समाप्ति से वाल्मीकि समाज, गोरखा समाज और पश्चिमी पाकिस्तान  शरणार्थियों (डब्ल्यूपीआर) को विधान सभा चुनाव में प्रथम बार मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ है और यह उनके लिए एक ऐतिहासिक और यादगार क्षण है| इन समुदायों की जनसंख्या लगभग २ लाख है, जो जम्मू क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर जम्मू, सांबा और कठुआ जनपदों में बसे हुए हैं| दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में जीवन यापन करने वाले पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी, वाल्मीकि समाज और गोरखा परिवारों में खुशी का माहौल है|

ऐतिहासिक दृष्टि से, १९४७ में भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भगा दिये गये  पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के ५७६४ परिवार - जिनमें मुख्य रूप से हिंदू और सिख शामिल हैं - कश्मीर में विभिन्न हिस्सों में बसे थे | वाल्मीकि समाज के लगभग ३७२ परिवारों को मूल रूप से बख्शी गुलाम मोहम्मद के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के द्वारा  सफाई कार्य के लिए १९५७ में पंजाब के गुरुदासपुर जिले से जम्मू-कश्मीर लाया गया था| गोरखा समाज के पूर्वज १८वीं शताब्दी में डोगरा महाराजा के अनुरोध पर डोगरा सेना में सेवा हेतु नेपाल से आकर बसे थे| उन्होंने हुंजा की लड़ाई और प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर १९४७ में पाकिस्तानी हमले तक जम्मू-कश्मीर राज्य बलों के सैनिकों के रूप में कई युद्ध लड़े| इन तीन समुदायों में से, पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को सिर्फ लोकसभा चुनाव में मतदान का सीमित अधिकार प्राप्त है|

आज की तिथि में, भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भगा दिये गये पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी  परिवारों की अनुमानित संख्या लगभग २२०००, वाल्मीकि समाज के लगभग ५०० और गोरखा समुदाय की ५०० से अधिक बतायी जाती है| २०१९ में अनुच्छेद ३७० के निरस्त किये जाने के उपरान्त  इन उपेक्षित समुदायों की स्थिति बदल गई है और उनके लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का मार्ग प्रशस्त हुआ है| दशकों के अन्याय और भेदभाव के बाद, अंततः उन्हें राज्य के निवासी होने का प्रमाण  पत्र दिया जा रहा  है| इसने तीन वंचित समुदायों के जीवन और भाग्य को बदल दिया है और अब वे सभी संवैधानिक अधिकारों के साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्ण नागरिक हैं| वे अब भूमि खरीदने, नौकरियों के लिए आवेदन करने, अपने प्रतिनिधियों के चयन हेतु सभी आम चुनावों में भाग लेने और वैकल्पिक आजीविका तलाशने में सक्षम हैं|

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार के भेदभावपूर्ण और सौतेले रवैये ने वाल्मीकि, गोरखा और पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी को सिर्फ उनके धर्म और आस्था की बुनियाद पर उनके मूल अधिकारों से वंचित किया है| अनुच्छेद ३७० और ३५ ए की समाप्ति  से उनके लिए विधानसभा चुनावों में मतदान करने के लिए द्वार खुले हैं और यह उनके जीवन में एक नई सुबह की तरह आया है|

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