हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों ने एक बार फिर एग्जिट पोल्स के दावों को गलत साबित कर दिया। जनता-जनार्दन के मन की थाह पाना इतना आसान नहीं है। एग्जिट पोल्स के 'विश्लेषक' हरियाणा में कांग्रेस के पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनवा रहे थे, लेकिन नतीजे आने पर लगातार तीसरी बार 'कमल' खिल गया! यह कैसे हुआ? विधानसभा चुनावों से पहले जैसा माहौल था, उससे इस बात को लेकर काफी चर्चा थी कि अब भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी।
किसानों की नाराजगी, पहलवानों का 'विरोध प्रदर्शन', बेरोजगारों के मुद्दे और अग्निवीर भर्ती के संबंध में कई तरह की आशंकाएं अपनी जगह थीं। दस साल लगातार सरकार में रहने से सत्ताविरोधी लहर भी पैदा हो जाती है। मनोहर लाल खट्टर की जगह जिस तरह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया, उससे ऐसे कयासों को बल मिला था कि अगर भाजपा विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसकी एक वजह यह भी होगी। इन कयासों को मतदाताओं ने पूरी तरह खारिज कर दिया।
ये नतीजे बताते हैं कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने का भाजपा का दांव काम कर गया। इससे एक ओर जहां सैनी के साथ नई उम्मीदें जुड़ गईं, जनता को बदलाव देखने को मिला, दूसरी ओर कई मुद्दे, जो खट्टर के मुख्यमंत्री रहते उठ सकते थे, वे जोर नहीं पकड़ पाए। विनेश फोगाट जुलाना से जरूर जीतीं, लेकिन जीत का अंतर लगभग 6 हजार वोटों का ही रहा।
स्पष्ट है कि पहलवानों के 'विरोध प्रदर्शन' को पूरे हरियाणा से व्यापक समर्थन नहीं मिला, जैसा कि दावा किया जा रहा था। भाजपा की इस जीत को संभव बनाने में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काफी मेहनत की। इसके साथ यह मानना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर मतदाताओं ने भरोसा जताया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रणनीति बहुत काम आई।
इन नतीजों में कांग्रेस के लिए कई सबक हैं। एग्जिट पोल्स आने के बाद कांग्रेस के नेताओं में खुशी की लहर थी। दरअसल वे चुनाव प्रचार के दौरान यह मानकर चल रहे थे कि इस बार तो हमारी ही सरकार बनेगी ... हरियाणा की जनता लगातार तीसरी बार तो भाजपा को नहीं लाएगी! कुछ 'बुद्धिजीवियों' का तर्क था कि जनता भाजपा से उकता चुकी है ... उसने लोकसभा चुनाव में भी उसे 'झटका' दिया था ... लिहाजा इस बार वह कांग्रेस को सत्ता सौंपेगी ही सौंपेगी, क्योंकि और कोई विकल्प नहीं है!
वास्तव में कांग्रेस के कई नेताओं को 'अति-आत्मविश्वास' हो गया था कि इस बार सत्ताविरोधी लहर के कारण उन्हें विजयश्री का वरदान मिलना तय है। पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के साथ भी ऐसा ही हुआ! वे खुद उचाना कलां से हार गए। बल्कि यह कहना चाहिए कि दुष्यंत इस चुनावी टक्कर में थे ही नहीं। उनकी पार्टी का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा।
वहीं, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। भाजपा ने भी उम्मीद से बेहतर किया। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने खूब उत्साह दिखाया था। यह उत्साह बरकरार रहना चाहिए। यहां लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए। सरहद पार बैठीं अलगाववादी व आतंकवादी ताकतों की आंखों में जम्मू-कश्मीर की शांति बहुत खटक रही है। वे यहां अशांति का जहर घोलने की साजिशें खूब रचेंगी। वे रच भी रही हैं।
इस केंद्र शासित प्रदेश के नेताओं और जनता को बहुत सावधान रहते हुए आगे बढ़ना होगा। राजनीतिक मतभेद अपनी जगह रहेंगे, लेकिन किसी को यह मौका नहीं देना है कि वह दहशत के उसी पुराने खेल को दोहराने में कामयाब हो जाए। जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा हो, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, युवाओं को रोजगार मिले, हर घर में खुशहाली आए और सद्भाव कायम रहे ... इसके लिए सभी दलों को मिलकर काम करना चाहिए।