मुइज्जू का यू-टर्न

दिल्ली ने उन्हें निराश नहीं किया

मुइज्जू महाशय का यह यू-टर्न बहुत लोगों को भ्रम में डाल सकता है

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के बयानों में भारत के प्रति 'प्रेम' देखकर आश्चर्य होता है। कुछ महीने पहले ये ही मुइज्जू भारत से संबंध बिगाड़ने को आमादा थे। इनकी 'मंडली' जानबूझकर आपत्तिजनक बयान दे रही थी, जिन्होंने 'आग में तेल' डालने का काम किया था। 

अब मुइज्जू के सुर बदल गए हैं। वे उम्मीद जता रहे हैं कि मालदीव में और अधिक भारतीय पर्यटक आएंगे। यही नहीं, उन्हें भारत और मालदीव के सदियों पुराने संबंधों की भी याद आ गई, जिन्हें वे मधुर बनाने पर जोर दे रहे हैं। मुइज्जू में यह बदलाव कैसे आया? नेताओं को परिस्थितियों के आधार पर बयान बदलते तो बहुत देखा है, लेकिन मुइज्जू में जो बदलाव दिखाई दिया, वह अत्यंत दुर्लभ है! 

ये ही मुइज्जू थे, जो चुनाव प्रचार के दौरान 'इंडिया आउट' लिखी टीशर्ट पहनकर मालदीव की गलियों में खूब घूमे थे। तब ये भारत के खिलाफ बयानबाजी करते हुए कई लोगों के मन में यह बात बैठाने में कामयाब हो गए थे कि दिल्ली की वजह से हमारी सुरक्षा खतरे में है। अब मुइज्जू ने यू-टर्न ले लिया है। वे भारत और मालदीव को यूपीआई के जरिए जोड़ने की दिशा में काम करने का वादा कर रहे हैं! 

मुइज्जू महाशय का यह यू-टर्न बहुत लोगों को भ्रम में डाल सकता है कि उनका हृदय-परिवर्तन हो गया। हालांकि इस मामले में भ्रमित होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, क्योंकि मुइज्जू भविष्य में कभी भी रंग बदल सकते हैं। अभी वे भारत की तारीफों के पुल इसलिए बांध रहे हैं, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है, खजाना खाली है, कहीं और से मदद मिलने की उम्मीद नहीं है, विपक्ष आक्रामक है और जनता निराश है।

मुइज्जू 'चीन के चेले' माने जाते हैं। वे राष्ट्रपति बनने के बाद भारतविरोध की सनक में चीन गए थे। वहां शी जिनपिंग ने आश्वासन तो बड़े-बड़े दिए, लेकिन सहयोग के नाम पर कन्नी काट गए। चीन अपने कर्ज के जाल को लेकर वैसे ही कुख्यात है। श्रीलंका की हालत सब देख चुके हैं। पाकिस्तान की तबाही किसी से छिपी नहीं है। 

मुइज्जू ने सोचा था कि बीजिंग में उनकी दाल खूब गलेगी। हालांकि हुआ इसका उलटा। दाल गलना तो दूर, बीजिंग की बेरुखी से मालदीव के चूल्हे ठंडे होने की नौबत आ गई। पहले, हर साल हजारों की तादाद में भारतीय पर्यटक मालदीव जाते थे, जो वहां के कुछ मंत्रियों द्वारा नरेंद्र मोदी के बारे में की गईं अपमानजनक टिप्पणियों के कारण खफा हो गए थे। इससे मालदीव के बहिष्कार की ऑनलाइन मुहिम शुरू हो गई थी। लोगों ने मालदीव के टिकट रद्द करवाने शुरू कर दिए थे। 

वास्तव में यहीं से मालदीव के खजाने पर चोट पड़नी शुरू हो गई थी। जब भारतीय पर्यटकों ने मुंह मोड़ा तो मुइज्जू के मन में उम्मीद थी कि 'अब चीन, तुर्किये और पाकिस्तान से पर्यटक आएंगे। लिहाजा घाटे की भरपाई वहां से हो जाएगी', लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बीच विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खाली होने लगा। मालदीव के दिवालिया होने की आशंका जताई जाने लगी थी। खजाने की हालत देखकर मुइज्जू समझ गए कि अब दिल्ली जाने का वक्त आ गया है। 

दिल्ली ने उन्हें निराश नहीं किया। चालीस करोड़ डॉलर के द्विपक्षीय मुद्रा अदला-बदली समझौते के अलावा 30 अरब रुपए के रूप में सहायता मिलने से मालदीव की सुस्त अर्थव्यवस्था में ऊर्जा आएगी। हनीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर नए रनवे के उद्घाटन से हवाई यातायात मजबूत होगा। 

जब प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त प्रेसवार्ता में कहा कि 'मालदीव के लोगों के लिए चीजों की जरूरत पूरी करनी हो, प्राकृतिक आपदा के समय पीने का पानी उपलब्ध कराना हो, कोविड के समय वैक्सीन देने की बात हो, भारत ने हमेशा अपने पड़ोसी होने के दायित्व को निभाया है', तो मुइज्जू का भावहीन चेहरा बता रहा था कि उन पर घड़ों पानी पड़ गया! 

मालदीव हो या अन्य पड़ोसी देश, भारत ने सदैव उनकी मदद की है। उन्हें भी यह बात समझनी होगी कि भारतवासी अपने देश और संस्कृति के खिलाफ बयानबाजी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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