राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने ओटीटी मंच के संबंध में जो चिंता जाहिर की है, वह एक गंभीर मुद्दा है। इस पर परोसी जा रही सामग्री का भलीभांति विनियमन होना ही चाहिए, अन्यथा इससे गंभीर सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। ऐसा नहीं है कि ओटीटी के आने से पहले समाज में सबकुछ अच्छा ही था। समस्याएं तब भी थीं, लेकिन ओटीटी ने तो हद ही पार कर दी।
यह कहने को तो कलाकारों को अभिव्यक्ति की भरपूर आजादी दे रहा है। यहां बहुत संभावनाएं हैं। भविष्य में इसके विस्तार की काफी गुंजाइश है। इसके साथ हमें यह देखना होगा कि जो कुछ इस पर पेश किया जा रहा है, उसका स्तर कैसा है? एक वेब सीरीज, जिसकी कहानी खुफिया एजेंसी में कार्यरत अधिकारी के इर्दगिर्द घूमती है, में उसके पारिवारिक जीवन को दिखाया गया है। वेब सीरीज में उस अधिकारी के छोटे-छोटे बच्चे अभद्र शब्द बोलते नजर आते हैं।
उस सीरीज में यह भी दिखाने की कोशिश होती है कि खुफिया एजेंसियों में कार्यरत अधिकारी देश के दुश्मनों का बहादुरी से सामना करते हैं तथा उन्हें दैनिक जीवन में कई समस्याओं, तनावों से भी जूझना पड़ता है। बेशक ऐसा होता है, लेकिन यह कहां तक उचित है कि सीरीज में बच्चों को अभद्र शब्द बोलते दिखाया जाए? सवाल तो यह है कि किसी को भी ऐसा बोलते क्यों दिखाया जाए? क्या लोकप्रियता हासिल करने का यही एक तरीका बचा है?
देशवासियों के मन में सेना और खुफिया एजेंसियों के प्रति बहुत सम्मान की भावना होती है। अगर कोई व्यक्ति यह सोचकर परिवार के साथ उस सीरीज को देखने बैठ जाए कि इससे देशप्रेम की भावना मजबूत होगी तो उसे बहुत धक्का लगेगा।
यह मामला किसी एक वेब सीरीज के साथ नहीं जुड़ा है, बल्कि अब तो ऐसी सामग्री की बौछार हो चुकी है। चूंकि बच्चे भी अपना मनपसंद कार्यक्रम देखना चाहते हैं। जब वे कोई सामग्री ढूंढ़ते हैं तो इस बात की काफी आशंका होती है कि उसका स्तर उनके अनुकूल न हो। कई घरों में मां-बाप कामकाजी होते हैं। वहां बच्चे दोपहर को स्कूल से आने के बाद ओटीटी मंच को खंगालते हैं। उस दौरान उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं होता कि यहां बहुत-सी चीजें आपके लिए ठीक नहीं हैं।
इन सीरीजों में अमर्यादित दृश्यों के साथ हिंसक दृश्यों की भी भरमार देखने को मिलती है। उनके ऐसे संवाद लोगों की जुबान पर चढ़ रहे हैं, जिनमें अश्लीलता भरी हुई है। स्कूलों-कॉलेजों के कई बच्चे आपसी बातचीत में उन्हें दोहराते हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है, गोया यह कोई बहादुरी का काम हो! ऐसी सामग्री देखने से बच्चों का ज़ेहन कैसा होगा?
प्राय: यह तर्क दिया जाता है कि ओटीटी तो वही दिखा रहा है, जो समाज में हो रहा है। वास्तव में यह कुतर्क है। सिनेमा, साहित्य, मीडिया और इस तरह के अन्य माध्यमों की जिम्मेदारी इतनेभर से खत्म नहीं हो जाती कि जो हो रहा है, वह दिखा दिया। उन्हें समाज को सही दिशा भी दिखानी होती है। अगर कोई माध्यम कोरी नकारात्मकता को लाकर लोगों के सामने परोसता रहे तो वह खुद उसमें भागीदार हो जाता है।
समाज में चोरी, रिश्वतखोरी, हत्या, धोखाधड़ी आदि को बुरा क्यों समझा जाता है? इसलिए कि ये कृत्य सभ्य समाज के लिए खतरनाक हैं। ये नैतिकता के विरुद्ध हैं। हमें बचपन से सिखाया जाता है कि ये बुरे काम हैं। अगर किसी देश में बुराई का महिमा-मंडन हो, बुरे काम करने वाले को हीरो की तरह पेश किया जाए तो क्या वहां सभ्य समाज का अस्तित्व हो सकता है?
बिल्कुल नहीं, क्योंकि बच्चों को जो सिखाया जाता है, जो दिखाया जाता है, वे उसे ग्रहण करते हैं और एक दिन वैसा ही बनने की कोशिश करते हैं। इसलिए ओटीटी जैसे माध्यमों को मर्यादित करना जरूरी है। वहां आपत्तिजनक व अभद्र सामग्री पेश करने की छूट बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।