सजग रहे जनता

जातिवाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता के जाल में नहीं फंसना है

जो दल सत्ता में हैं, उनके नेताओं से सवाल जरूर पूछिए

निर्वाचन आयोग द्वारा महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों के लिए इम्तिहान की एक और घड़ी आ गई है। उन्होंने पांच वर्षों में कितना काम किया, वे जनता की कसौटी पर कितने खरे उतरे ... यह भावी जनादेश से पता चलेगा। इन चुनावों की रणभेरी बजने के बाद एक ओर जहां भाजपा पर उसी करिश्मे को दोहराने का दबाव रहेगा, जो उसने हरियाणा में दिखाया था। वहीं, कांग्रेस के सामने अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की चुनौती है। 

झारखंड में हेमंत सोरेन के लिए राह आसान नहीं होगी। भाजपा उन पर भ्रष्टाचार के मामले को लेकर हमला बोल सकती है, जिसकी वजह से उन्हें इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा था। हालांकि वे न्यायालय से राहत पाकर फिर मुख्यमंत्री बन गए। 

चुनाव प्रचार के दौरान हर राजनीतिक दल के नेता अपने तरकश से तीर निकालेंगे, जैसा कि हर चुनाव में होता है। इन चुनावों में दलों और नेताओं की तो आजमाइश होगी ही, जनता को भी सजग रहना होगा। हो सकता है कि कुछ नेतागण ज्यादा से ज्यादा तालियां बजवाने और सोशल मीडिया पर छा जाने की कोशिश में असल मुद्दों से भटकाएं, लेकिन जनता को ऐसे पैंतरों से होशियार रहना है। 

जातिवाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता के जाल में नहीं फंसना है। जो दल सत्ता में हैं, उनके नेताओं से जरूर पूछिए - सरकारी स्कूलों के लिए क्या किया, अस्पतालों के लिए क्या किया, पेयजल जैसी सुविधाएं सबको सुलभ कराने के लिए क्या किया, पुलिस व्यवस्था में क्या सुधार किया, क्या थानों में आम आदमी बेखौफ होकर अपनी व्यथा सुना सकता है, क्या युवाओं को रोजगार मिल रहा है, क्या अपराधियों में कानून का खौफ पैदा हुआ है ...?

भाजपा ने झारखंड के कई इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने के आरोप लगाए हैं। महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से भी बांग्लादेशियों के पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं। दोनों ही राज्यों के नेताओं से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि वे घुसपैठियों की पकड़-धकड़ के लिए क्या करने वाले हैं? हर चुनाव में अफवाहों, फर्जी खबरों को हवा देने की कोशिशें होती हैं। अब ऐसी खुराफात करने वालों के पास एआई के तौर पर एक ताकतवर हथियार और आ गया है। इसकी मदद से फर्जी दावे, नकली सबूत गढ़े जा सकते हैं। 

हो सकता है कि कुछ दिनों बाद सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री जोर-शोर से वायरल होती पाई जाए, जिसमें किसी नेता को वह बयान देता दिखाया जाए, जो उसने कभी दिया ही न हो! ईवीएम के बारे में भी अफवाहें फैलाई जाती हैं, जिनको लेकर खास सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसी सामग्री को शेयर करने से बचें। संबंधित प्लेटफॉर्म पर उसकी शिकायत दर्ज कराएं, ताकि उससे अन्य लोग भ्रमित न हों। 

इन चुनावों में जनता को एक संकल्प और लेना होगा। इस बार मतदान प्रतिशत जरूर बढ़ना चाहिए। अगर आप (इन राज्यों के) मतदाता हैं तो अपना कर्तव्य निभाएं। जब निर्वाचन आयोग इतने प्रयास कर रहा है, देश के इतने संसाधन लग रहे हैं, तो मतदाताओं को भी चाहिए कि वे निर्धारित तारीख को घरों से निकलें और मतदान करें। मतदान प्रतिशत का कम रहना लोकतंत्र को कमजोर बनाता है। 

किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि 'मैं मतदान नहीं करूंगा/गी तो क्या हो जाएगा ... एक वोट से कौनसा नतीजा बदल जाएगा ... जिसे जीतना होगा, वह तो जीत ही जाएगा!' पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव नतीजों के आंकड़े बताते हैं कि कई सीटों पर मामूली अंतर से हार-जीत का फैसला हो गया था। इसलिए एक-एक वोट मायने रखता है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए हर मतदाता की भागीदारी जरूरी है।

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