उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा खानपान की चीजों की शुद्धता सुनिश्चित करने संबंधी दिए गए निर्देश स्वागत-योग्य हैं। जो लोग इन चीजों में गंदगी मिलाकर बेच रहे हैं, वे उपभोक्ताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं। उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी जरूरी है। अब खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने खाद्य कारोबारियों के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए, उनके अनुसार, दोषी लोगों पर 25 हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
यह उचित ही है कि जानबूझकर लोगों के विश्वास और स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों पर इसी तरह शिकंजा कसा जाए। कुछ लोग इस बात को लेकर आपत्ति भी जता सकते हैं कि खानपान की छोटी दुकान चलाने वाला व्यक्ति इतना जुर्माना कहां से देगा? तो क्या किसी को इस बात की खुली छूट मिलनी चाहिए कि वह लोगों को गंदगी परोसे? यह कितना बड़ा पाप है!
लोग यह सोचकर किसी दुकान / रेस्टोरेंट में जाते हैं कि उन्हें वहां शुद्ध चीजें मिलेंगी। जब कोई उन्हें अशुद्ध और अपशिष्ट मिश्रित चीजें खिलाता है तो यह कोई सामान्य अपराध नहीं है, बल्कि सोच-समझकर किया गया कपट है।
प्राचीन काल में भी ऐसे अपराध होते थे। कुछ लोग अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते थे। वे ऋषियों और आम जनता के भोजन में ग़लत चीज़ों की मिलावट कर देते थे। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें कठोर दंड मिलता था। ऐसी घटनाओं को रोकना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए खाद्य संरक्षा से जुड़े नियमों को ठीक तरह से लागू कर दें। उनके साथ कुछ नियमों (जिनमें तकनीक पर जोर हो) को और जोड़ दें तो ऐसी घटनाओं पर लगाम लग सकती है।
इन अपराधों में शामिल लोगों का पर्दाफाश करने में तकनीक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। दुकान / रेस्टोरेंट में चाय बनाते, खाना पकाते समय मिलावट करने वालों का वहां आस-पास मौजूद लोगों में से ही किसी ने वीडियो बना लिया था। ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाने के बाद संबंधित इलाके की पुलिस हरकत में आई।
मसूरी में तो दो भाइयों पर चाय के बर्तन में थूकने और उसे ग्राहकों को पिलाने का आरोप लगा! इसी तरह उप्र के सहारनपुर जिले में एक युवक तंदूर से रोटी निकालकर उस पर थूकता पाया गया! अगर इनकी हरकतें वीडियो में रिकॉर्ड नहीं की जातीं तो ये अब तक कितने ही लोगों को थूक मिश्रित चीजें खिला-पिला रहे होते! इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन्होंने पहले भी ऐसे कृत्य किए हों।
ये घटनाएं सिर्फ कुछ राज्यों में नहीं हो रही हैं। अगर सोशल मीडिया पर सर्च करेंगे तो कई राज्यों में लोग इन्हीं हरकतों को दोहराते नजर आएंगे। इन घटनाओं से कुछ सवाल भी पैदा होते हैं- क्या ऐसे लोगों को कोई मानसिक समस्या है? क्या इन्हें देशविरोधी ताकतें ऐसी खुराफातें करने के लिए उकसा रही हैं, ताकि आसान तरीकों से लोगों की जान को खतरे में डाला जाए? क्या ये लोग किसी कुंठा के शिकार हैं? क्या इन्हें दूसरों को गंदगी परोसने से आनंद आता है? ये सवाल पुलिस जांच के अलावा मनोवैज्ञानिक शोध के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं।
इन घटनाओं को यह सोचकर हल्के में नहीं लेना चाहिए कि सब लोग तो ऐसा नहीं कर रहे। बेशक सब लोग ऐसा नहीं कर रहे, लेकिन उक्त घटनाओं से सबक लेकर खानपान की चीजों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए गंभीरता तो दिखानी होगी।
सभी प्रतिष्ठानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य हो। अधिकारियों द्वारा समय-समय पर इनकी जांच की जानी चाहिए। स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाए। वहीं, पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे ग्राहक को मालिक समेत कर्मचारियों के बारे में जानकारी आसानी से मिल जाए। जिस दुकान / रेस्टोरेंट में गलत चीजों की मिलावट होती पाई जाए, ग्राहक उससे दूरी बना लें।