एक ओर जहां भारत का युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पौष्टिक भोजन, रोजगार, आवास जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है, दूसरी ओर कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा जनता से आबादी बढ़ाने संबंधी अपील करना हैरान करता है! इसे मीडिया की सुर्खियों में छा जाने की कोशिश माना जाए या असल मुद्दों से अनभिज्ञता?
विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि देश की आबादी 142 करोड़ को पार कर चुकी है। संसाधनों पर बहुत दबाव बढ़ गया है। नौकरी के एक-एक पद के लिए सैकड़ों युवाओं में मुकाबला हो रहा है। बसों, ट्रेनों में भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है।
खेत घटते जा रहे हैं। इतनी आबादी का पेट भरने के लिए फसलों पर अंधाधुंध रसायन छिड़के जा रहे हैं, जिससे कई घातक रोग बढ़ गए हैं। दो दशक पहले तक गांवों में कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी बीमारियां बहुत कम लोगों को होती थीं। अब घर-घर में लोग दवाइयां ले रहे हैं। चूंकि खानपान 'शुद्ध' नहीं रहा, इसलिए आरोग्य शक्ति घट गई।
आज सामान्य परिवार किसी कस्बे में भी जमीन खरीदकर मकान बनाए तो उसे वर्षों तक क़िस्तें चुकानी पड़ेंगी, क्योंकि लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। क्या ऐसे में किसी नेता द्वारा यह बयान दिया जाना न्यायोचित है कि आबादी में और ज्यादा बढ़ोतरी करनी चाहिए? ऐसा कहना उन बच्चों के साथ भी अन्याय है, जो अभी इस दुनिया में नहीं आए हैं।
अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि आबादी कितनी होनी चाहिए? वास्तव में इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता। हां, कुछ खास बिंदु जरूर हैं, जिनके आधार पर इसका निर्धारण किया जा सकता है। जैसे- प्राकृतिक संसाधन (जल, जंगल, जमीन) कितने हैं, कितने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं दे सकते हैं, शिक्षा और रोजगार की स्थिति कैसी है, स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या हालत है? इन सबसे बढ़कर एक बिंदु है- कितने बच्चों को अच्छी परवरिश देते हुए ईमानदार नागरिक बना सकते हैं?
अगर प्रजनन दर 2.1 हो तो वह आबादी को प्रतिस्थापित कर सकती है। इससे नीचे जाने पर आबादी में गिरावट आने लगती है, जैसा कि जापान और द. कोरिया जैसे देशों में हो रहा है। भारत के कुछ राज्यों, जैसे- बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड में यह दर कुछ ज्यादा है। बेशक दक्षिण भारत के राज्यों ने इसे नियंत्रित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।
आबादी में कामकाजी आयु वर्ग का होना बहुत जरूरी है। इसके साथ यह भी जरूरी है कि लोगों को काम मिले। आज सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षाओं में युवाओं की भीड़ देखें। सरकारों को चाहिए कि वे पहले इन्हें तो रोजगार दे दें, इनका जीवन बेहतर बना दें! स्वस्थ, शिक्षित, अनुशासित, ईमानदार और कुशल आबादी किसी देश की सबसे बड़ी संपत्ति होती है। ऐसे लोग उस देश को बड़ी से बड़ी चुनौती के भंवर से निकालकर कामयाबी की बुलंदियों तक ले जा सकते हैं।
ऐसा मानव संसाधन तैयार करना आसान काम नहीं है। इसके लिए बच्चों को अच्छा माहौल, अच्छी खुराक मिलनी चाहिए। उन्हें स्कूली पढ़ाई के दौरान ही देशप्रेम और ईमानदारी के संस्कार देने जरूरी होते हैं। उनके लिए ऐसे इंतजाम हों कि पढ़ाई के बाद किसी को बेरोजगारी का दंश न झेलना पड़े। ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपनी जरूरत की छोटी-छोटी चीजों के लिए भी तरसें। अब तक कितने राज्यों की सरकारें ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर पाई हैं?
जब किसी मेहमान को न्योता भेजा जाता है (जो कि कुछ घंटों या दिनों के लिए ही आता है) तो उसके स्वागत-सत्कार, खानपान और आराम के लिए इंतजाम किए जाते हैं। क्या यह उचित नहीं है कि जो बच्चे इस दुनिया में आने वाले हैं, जिन्हें कई दशकों तक यहां रहना है, उनके लिए संबंधित सरकारें भी पहले से पर्याप्त इंतजाम करें?
नेतागण पहले सरकारी स्कूलों की हालत तो सुधार दें, सरकारी अस्पतालों की कुछ फिक्र कर लें, बेरोजगारी से परेशान युवाओं को थोड़ी राहत दे दें ... उसके बाद विवेकपूर्ण तरीके से विचार करते हुए ही आबादी बढ़ाने को लेकर कोई बयान दें।