आधी जानकारी, पूरा झूठ

भारत ने कहां शत्रुता कर रखी है?

पाकिस्तान ने भारत को हमेशा शत्रु ही समझा है

जब से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों की विदाई हुई है, पीडीपी प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर से ऐसे बयानों का सिलसिला तेज हो गया है, जो हकीकत से कोसों दूर हैं। वरिष्ठ नेताओं से तो यह उम्मीद की जाती है कि वे जो बयान दें, उससे जुड़े तथ्यों के बारे में पहले खुद जानें। आधी-अधूरी जानकारी झूठ से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है। 

महबूबा मुफ्ती का यह कहना कि 'जम्मू-कश्मीर के लोग दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) के बीच शत्रुता में फंस गए हैं', भी ऐसी ही श्रेणी का बयान है। जम्मू-कश्मीर के लोग न तो 'फंस गए हैं' और न ही यह 'दो देशों' के बीच शत्रुता का मामला है। इस केंद्र शासित प्रदेश ने आतंकवाद के कारण बहुत कुछ खोया है। इसमें कहीं भी 'दो देशों' की शत्रुता नहीं थी, बल्कि एक ही देश ऐसा कर रहा था और वह आज भी कर रहा है, जिसका नाम पाकिस्तान है। 

आखिर, महबूबा मुफ्ती यह कहने से क्यों हिचक रही हैं? भारत ने कहां शत्रुता कर रखी है? यह पाकिस्तान ही है, जिसने शत्रुता को पैदा किया और उसे आज तक जिंदा रखा है। उसका तो जन्म ही भारत से शत्रुता के आधार पर हुआ था। यह पड़ोसी देश जब अपने घुटनों पर रेंग ही रहा था, तब जम्मू-कश्मीर में कबायली लश्कर किसने भेजे थे? वहां किसने खून-खराबा कराया था? पाकिस्तान ने भारत को हमेशा शत्रु ही समझा है। यह और बात है कि हमारी हर सरकार ने उससे संबंध सुधारने के प्रयास किए थे। बदले में उन्हें क्या मिला? युद्ध और आतंकवाद!

महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के हालात और सियासत को बहुत करीब से देखा है। क्या उन्हें मालूम नहीं कि पाकिस्तान ने घाटी के अमन-चैन को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी? जहां तक जम्मू-कश्मीर के लोगों का दोनों देशों के बीच शत्रुता में 'फंस जाने' का आरोप है तो आज पांचवीं कक्षा का बच्चा भी यह बात जानता है कि केंद्र शासित प्रदेश में तिरंगा लहरा रहा है, इसी वजह से स्थानीय लोग बहुत सुरक्षित हैं। 

एलओसी से चंद कदम आगे जाकर (पीओके) देखिए, वहां पाकिस्तान के परचम तले क्या-क्या हो रहा है? वह इलाका आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। जो लोग 'उधर' रह गए या किसी कारणवश 'उधर' चले गए, वे आज आटे के लिए लाइनों में लगे हैं। पाकिस्तानी फौज ने वहां अपने कर्नलों-जनरलों के लिए प्लॉट काट दिए। वहां आम नागरिक कभी आटे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है, कभी बिजली के बिल जमा कराने के लिए दफ्तरों में भटक रहा है। जिसके घर में एक बल्ब, एक पंखा है, उसे 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक के बिल भेजे जा रहे हैं। 

सुविधाओं के नाम पर हालत यह है कि अक्टूबर 2005 के भूकंप में जो स्कूल, अस्पताल आदि क्षतिग्रस्त हुए थे, उनकी आज तक सुध नहीं ली गई। वहां पाकिस्तानी फौज के अधिकारी बड़े-बड़े बंगलों में ऐश कर रहे हैं, दोनों हाथों से दौलत लूट रहे हैं, जबकि आम नागरिक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। महबूबा मुफ्ती के इस कथन में भी तथ्यों का अभाव है कि 'दोनों देश एक-दूसरे से लड़ रहे हैं।' 

यह लड़ाई किसने शुरू की थी? भारत 'लड़' नहीं रहा, बल्कि आत्मरक्षा में प्रतिक्रिया दे रहा है। अगर भारत ने 'लड़ाई' करने की ही ठानी होती तो आज कराची से लेकर लाहौर, इस्लामाबाद और पूरा पीओके हमारे पास होता; पाकिस्तान श्रीनगर नहीं मांग रहा होता, बल्कि क्वेटा और पेशावर बचाने के लिए फिक्रमंद रहता। 

महबूबा मुफ्ती के इस बयान पर क्या ही कहा जाए कि 'जब तक दोनों देश एकसाथ नहीं बैठेंगे, सौहार्दपूर्ण तरीके से बात नहीं करेंगे और (पूर्व प्रधानमंत्री) वाजपेयी की तरह सुलह का रास्ता नहीं अपनाएंगे, तब तक जम्मू-कश्मीर और देश के बाकी लोगों को (आतंकवादी हमलों की) ऐसी घटनाएं देखने को मिलती रहेंगी’! 

वाजपेयीजी तो बस लेकर लाहौर गए थे, जिसके कुछ ही महीने बाद पाकिस्तान का एक और धोखा कारगिल युद्ध के रूप में सामने आया था। अतीत के ये सभी अनुभव साफ कह रहे हैं कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद फैलाएगा, उसके साथ किसी भी तरह की बातचीत से कोई लाभ नहीं होने वाला। नेताओं को चाहिए कि वे इस तथ्य से भलीभांति परिचित हों। सिर्फ प्रचार पाने के लिए ऐसा बयान नहीं देना चाहिए, जो लोगों को गुमराह करे।

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