बिहार में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौतें होना अत्यंत दु:खद है। यह भी एक विडंबना है कि जब ऐसे मामले सामने आते हैं तो सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप में उलझ जाते हैं। बिहार में भी यही हो रहा है। एक ओर जहां राजद शराबबंदी के बावजूद ऐसी घटना के लिए जद (यू) पर हमला बोल रहा है, दूसरी ओर जद (यू) इस विपक्षी दल की नीतियों पर निशाना साध रहा है। क्या समस्या का समाधान ऐसे होगा?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब शराबबंदी का फैसला लिया था तो उस दौरान इस पहलू पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था। शराब पर प्रतिबंध लगा देने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वहां (शराब की) खपत नहीं होगी! जिन लोगों को इसकी लत लग जाती है, वे दूसरे 'रास्ते' ढूंढ़ने लगते हैं। चूंकि 'मांग' तो अपनी जगह रहती ही है, वहां 'पूर्ति' करने के लिए 'अन्य विकल्प' पैदा होने लगते हैं। सरकार को चाहिए था कि वह 'अन्य विकल्प' उपलब्ध कराने वालों पर पहले सख्ती करती। उनका नेटवर्क ध्वस्त करती। उसके बाद चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी लागू करती।
बेशक शराब एक बुरी चीज है। यह स्वास्थ्य और धन को बर्बाद करती है। इसने कई परिवारों का सुख-चैन तबाह कर दिया। प्राय: हर इलाके में ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिन्हें शराब की लत लगी तो अपना सबकुछ उसी में डुबो बैठे। कई बच्चों का बचपन इस वजह से सुखद नहीं रहा, क्योंकि पिता को शराब की लत लग गई थी। महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के प्रमुख कारणों में से एक शराब भी है। लिहाजा इसके सेवन को तो हर परिस्थिति में हतोत्साहित करना ही चाहिए।
शराबबंदी के पीछे बिहार सरकार की मंशा सही है। इसके साथ अधिकारियों को खूब सतर्क रहना चाहिए कि कहीं भी (अवैध ढंग से) शराब बनाने और बेचने की घटना न हो। हर सरकार के पास अपने राज्य में अवैध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पूरा तंत्र होता है। इसके बावजूद शराब की भट्टियों, बोतलों और तस्करों के नेटवर्क पर नजर नहीं पड़ी ... वह शराब आम लोगों तक पहुंच गई और दर्जनों लोगों की जानें चली गईं! यह कैसे हुआ? इस घटना से संदेह पैदा होता है कि सरकारी तंत्र में कहीं-न-कहीं कमजोर कड़ियां जरूर हैं।
जो लोग परंपरागत तरीके से शराब बनाते हैं, उसके लिए कुछ 'अनुभव' जरूरी होता है। कोई व्यक्ति रातोंरात इसे नहीं बना सकता। क्या पुलिस ऐसे लोगों की पहचान नहीं कर सकती? यह पता लगाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। प्राय: ऐसे लोग अपने इलाकों में इसी 'धंधे' की वजह से जाने जाते हैं। अगर उन पर समय रहते सख्ती नहीं की जाती तो कालांतर में उनकी जड़ें मजबूत होने लगती हैं।
जो लोग अवैध शराब बेचते / पहुंचाते हैं, वे पुलिस की नजरों से कैसे बच जाते हैं? इतने बड़े स्तर पर लोगों तक अवैध शराब पहुंचाई गई और पुलिस को भनक तक नहीं लगी! जब लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी, वे दम तोड़ने लगे और मीडिया ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, तब फौरन कार्रवाइयां शुरू हो गईं। अगर इसमें लिप्त लोगों पर सख्ती से शिकंजा कसा जाता तो आज कई परिवारों में मातम नहीं छाया रहता।
जहरीली शराब से होने वाली मौतों को टालने के लिए विशेषज्ञ कई सुझाव देते हैं, जिनमें सरकारी अनुमति से बिकने वाली शराब की बहाली से लेकर पूरी प्रणाली को ऑनलाइन करने, सिर्फ डिजिटल पेमेंट स्वीकार करने, सेवनकर्ता का आधार कार्ड डेटा लेने आदि की बात की जाती है, ताकि इस बुराई को 'सीमित' किया जा सके। हालांकि उस स्थिति में भी इसके सीमित रहने में संदेह है। जिन्हें इसकी लत होती है, वे खुद के अलावा दोस्तों और परिचितों के नाम से खरीदकर पीने लगेंगे।
शराब वैध हो या अवैध, यह नुकसान ही पहुंचाएगी। जब कुदरत ने दूध, लस्सी, शर्बत, फलों का जूस, गन्ने का रस, नींबू पानी समेत अनेक लाभदायक पेय उपलब्ध कराए हैं तो 'विष' को मुंह क्यों लगाएं? इस मामले में लोगों का दृढ़ इच्छाशक्ति और संयम बरतते हुए शराब से दूर रहना ही सबसे श्रेष्ठ विकल्प है।