इतनी जल्दबाजी क्यों?

सरकार को स्कूलों में इस बात की ओर (अनुशासन की दृष्टि से) खास ध्यान देना होगा

भगदड़, जल्दबाजी, धक्का-मुक्की ... ये सब हमारी ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बन गईं?

मुंबई में बांद्रा रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में चढ़ने के दौरान धक्का-मुक्की से दर्जनभर लोगों के घायल होने की घटना से कुछ ऐसे सवाल पैदा होते हैं, जिनकी ओर हमें गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। ऐसी घटनाओं के लिए सिर्फ सरकार को जिम्मेदार ठहरा देने से काम नहीं चलेगा। भगदड़, जल्दबाजी, धक्का-मुक्की ... ये सब हमारी ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बन गईं? क्या यह अनुशासन की कमी का मामला है या मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है? 

बेशक त्योहारों को ध्यान में रखते हुए सरकार को यात्रियों के लिए खास इंतजाम करने चाहिएं और रेलवे स्टेशनों पर व्यवस्था नहीं बिगड़नी चाहिए। इस तरह की घटनाएं सिर्फ रेलवे स्टेशनों तक सीमित नहीं हैं। किसी आम चौराहे पर देखें तो बहुत लोग वहां भी जल्दबाजी में दिखाई देते हैं। प्राय: वे हरी बत्ती होने का भी इंतजार नहीं करते। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये तो सेकंड के सौवें हिस्से का भी हिसाब रखते होंगे! 

अगर स्कूलों में देखें तो छुट्टी की घंटी बजने से ठीक पहले कई बच्चे अपना बैग लेकर इस कदर तैयार रहते हैं कि जैसे ही 'टन-टन' की आवाज आएगी, वे बहुत लंबी छलांग लगाकर इस जगह से आज़ाद हो जाएंगे! ये तो कुछ ही घटनाएं हैं। हम आस-पास देखें तो ऐसी कई घटनाएं मिल जाएंगी। 

कुछ साल पहले राजस्थान के एक प्रसिद्ध मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। वहां चारों ओर जयकारे गूंज रहे थे। अचानक मौसम बदला और हल्की बारिश होने लगी। बस, फिर क्या था ... कई लोग कतार तोड़कर भगदड़ मचाने लगे। 

वे तुरंत ऐसे 'सुरक्षित' ठिकाने की ओर भागने लगे, जहां उन पर बारिश की बूंदें न पड़ें! लोग ऐसा क्यों करते हैं? अगर कुछ बूंदें गिर भी गईं तो क्या हो जाएगा? ऐसे समय में हमें भक्ति के साथ और ज्यादा अनुशासन दिखाना चाहिए। भगदड़, जल्दबाजी, धक्का-मुक्की ... से न तो खुद की और न ही दूसरों की जान जोखिम में डालनी चाहिए।

सरकार को स्कूलों में इस बात की ओर (अनुशासन की दृष्टि से) खास ध्यान देना होगा। बच्चों को शुरुआती कक्षाओं से यह सिखाना होगा कि ऐसी प्रवृत्ति घोर अनुशासनहीनता होती है। आज हम सर्वत्र इसके परिणाम देख रहे हैं। कहीं शादी के खाने में धक्का-मुक्की, कहीं भंडारे में हाथापाई, कहीं मुफ्त चीजों के वितरण संबंधी कार्यक्रम में सबसे आगे रहने की होड़ ...! ये अनुशासनहीनता से पैदा हुईं ऐसी आदतें हैं, जिन्हें सुधारने की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। 

लगभग दो दशक पहले भारत-पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में बड़ा भूकंप आया था। उस दौरान एक तस्वीर ने सबका ध्यान आकर्षित किया था। कोई संस्था राहत सामग्री के तौर पर कंबल बांट रही थी। उस समय एक कंबल को पहले पाने के लिए दो लोग (जिनके घरों में यकीनन उससे बेहतर कंबल रहे होंगे) बुरी तरह झगड़ रहे थे। क्या ही अच्छा होता, अगर लोग शांति से अपनी बारी का इंतजार करते और यह ऊर्जा नवनिर्माण में लगाते! 

भूकंप, बाढ़, तूफान, सुनामी ... जैसी प्राकृतिक आपदाएं जापान में भी आती हैं और बहुत तबाही मचाती हैं। वहां राहत सामग्री वितरण के दौरान भगदड़, जल्दबाजी, धक्का-मुक्की, हाथापाई जैसी घटनाएं शायद ही देखने को मिलें। साल 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले एक वरिष्ठ नेता के जन्मदिन पर साड़ी वितरण समारोह में मची भगदड़ से 22 महिलाओं की मौत हो गई थी। 

इस साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक सत्संग कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद सत्संग के आयोजकों की 'बदइंतजामी' को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अगर लोगों को इस बात के लिए अनुशासित किया जाए कि 'आपको सार्वजनिक जीवन में विनम्रता का व्यवहार करना है, भगदड़ बिल्कुल नहीं मचानी है, धक्का-मुक्की नहीं करनी है, दूसरों का भी ख़याल रखना है', तो कई हादसों को टाला जा सकता है।

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