अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लगभग 1,100 भारतीय नागरिकों को स्वदेश भेजे जाने की कार्रवाई के निहितार्थ को समझना जरूरी है। यह कोई सामान्य घटना नहीं है कि ये लोग वहां अवैध रूप से रह रहे थे और जब पकड़े गए तो भारत भेज दिए गए। किसी भी देश में जाने और वहां रहने के लिए उसके कानून का पालन करना बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता, वह उस देश का अपराधी तो बनता ही है, अपने देश की छवि भी खराब करता है।
अच्छी कमाई और बेहतर जीवन स्तर की चाहत लेकर विदेश जाना गलत नहीं है। बहुत लोगों ने विदेश को कर्मभूमि बनाकर नाम कमाया है। ऐसे कई लोग तो शीर्ष अमीरों की सूची में शामिल हो गए। उन्होंने उस देश की बेहतरी में योगदान दिया। ऐसे लोगों को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
वहीं, जो लोग किसी देश में गलत तरह से दाखिल होते हैं या वैध दस्तावेजों के आधार पर अनुमति लेकर वहां निर्धारित अवधि से ज्यादा दिनों तक डेरा डाले बैठे रहते हैं, वे बहुत गंभीर अपराध कर रहे होते हैं। इसकी इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।
संबंधित देश उन्हें नियमानुसार निकाल सकते हैं और भविष्य में उनके आने पर पाबंदी भी लगा सकते हैं। इस पर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? यह उचित ही है कि जो लोग कानून का उल्लंघन करते हुए विदेश में दाखिल होते हैं, वहां रहते हैं, उन्हें बाहर किया जाए। भारत में भी कई बांग्लादेशी और रोहिंग्या इसी तरह रह रहे हैं। जब उन्हें बाहर निकालने की बात की जाती है तो यहां कई लोग उनके अधिकारों की दुहाई देकर अदालतों में चले जाते हैं। वे उनके लिए कई सुख-सुविधाओं की मांग करते हैं।
दूसरी ओर, अमेरिका, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों का पैरोकार बना हुआ है, वह भारत को तो इस मामले में उपदेश देता रहता है, लेकिन अपने यहां अवैध रूप से रहने वाले लोगों को निकालने में खूब फुर्ती दिखाता है। अमेरिका को पूरा अधिकार है कि वह अपने कानून का उल्लंघन करने वाले एक-एक विदेशी को बाहर निकाले।
सवाल है- जब भारत कोई कार्रवाई करता है तो अमेरिका के मंत्री, नेता, अधिकारी और थिंक टैंक विरोध में राग अलापना क्यों शुरू कर देते हैं? सवाल तो यह भी पैदा होता है कि भारत में किसी के विदेश जाने को इतनी बड़ी कामयाबी क्यों समझा जाता है? हर व्यक्ति को स्वतंत्रता है कि वह दुनिया में कहीं भी जाकर भविष्य के लिए बेहतर संभावनाएं तलाशे। लोग जाते भी हैं, लेकिन इसके लिए इतना जुनूनी होना ठीक नहीं है कि कानूनों का उल्लंघन करने लग जाएं।
कई लोग सिर्फ इसलिए अपनी संपत्ति गिरवी रख देते हैं या बेच देते हैं, ताकि विदेश जाने का प्रबंध हो जाए। कई शहरों-गांवों में तो इस बात की होड़ मची है कि जैसे ही ठीक-ठाक रकम मिले, अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात या ऑस्ट्रेलिया का वीजा लेने के लिए आवेदन किया जाए। वे किसी भी सूरत में देश छोड़कर जाना चाहते हैं। कई लोग उन्हें बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाते हैं कि वहां तो ऐश ही ऐश हैं ... बस, आपके उधर पहुंचने की देर है ... एक बार वहां कदम रखा कि पूरी सरकार आपके लिए फूलों का हार और नए बंगले की चाबी लेकर खड़ी मिलेगी।
कुछ फिल्मों और धारावाहिकों ने भी बहुत गुमराह किया है। उन्हें देखकर नौजवानों को यह भ्रम होता है कि वहां तो बहुत मौज है। लिहाजा उनकी ख़्वाहिश होती है कि एक बार 'वहां' जाएं और फिर हमेशा के लिए 'वहीं के' हो जाएं! इस धारणा को बढ़ावा देने के लिए समाज भी काफी हद तक जिम्मेदार है। प्राय: वह उन नौजवानों को प्रोत्साहन देने में उदासीनता दिखाता है, जो भारत में रहकर अपनी मेहनत से कोई उद्यम स्थापित करते हैं, लोगों को रोजगार देते हैं और आयकर समेत अन्य करों का भुगतान कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देते हैं।
कई लोग देखादेखी में विदेश जाने के लिए जितनी बड़ी रकम खर्च करते हैं, अगर वे कोई हुनर सीखकर उससे आधी रकम में भी स्वरोजगार करें और ईमानदारी से मेहनत करें तो कुछ ही वर्षों में बहुत बेहतर स्थिति में हो सकते हैं। किसी भी हालत में विदेश जाने के इस जुनून से बचना चाहिए।