गंगा स्नान और दीपदान से देवताओं की होती है कृपा

ब्रह्म मुहूर्त में गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए

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चेतनादित्य आलोक
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सनातन धर्म में ‘दीपावली’ के समान ही ‘देव दीपावली’ पर्व का भी बहुत महत्व है| इसीलिए दीपावली की तरह ही इसको भी ‘दीपों का त्योहार’ कहा जाता है| देव दीपावली का यह पावन पर्व प्रत्येक वर्ष दिवाली के ठीक १५ दिन बाद यानी कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है| वैसे तो सनातन धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु देश भर में नदियों के किनारे स्नान एवं दीपदान के साथ इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं, परंतु इसका मुख्य आयोजन तो काशी में गंगा नदी के तट पर ही किया जाता है, जहां देश भर से अनुयायी गंगा स्नान एवं दीपदान करने हेतु पहुंचते हैं| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सभी देवतागण स्वर्ग से सीधे काशी की पवित्र भूमि पर आते हैं और दीपावली का पर्व मनाते हैं| 

यही कारण है कि इसे देव दीपावली’ के नाम से जाना जाता है| बता दें कि सनातन धर्म के अनुयायी इस अवसर पर काशी यानी वाराणसी के घाटों को मिट्टी के दीपों से सुसज्जित करते हैं| इस दिन पूरी काशी नगरी एक विराट् उत्सव के प्रकाश और हर्ष-उल्लास में डूब जाती है| ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे संपूर्ण काशी नगरी दिव्यता की रोशनी में नहा रही हो| चारों तरफ भव्यता की अनुभूति होती है| ऐसे में भक्ति और आनंद में डूबा हुआ मन इस प्रकार रम जाता है कि यहां आने वाले सभी श्रद्धालु काशी में ही रहकर यहां की दिव्य रोशनी और भव्य अनुभूतियों के साक्षी बने रहना चाहते हैं|

हिंदू शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के दिन गंगा स्नान करने के बाद दीपदान करने का बड़ा महत्व है| शास्त्र बताते हैं कि देव दीपावली के दिन काशी की पवित्र धरती पर पधारने वाले सभी देवतागण भी परम पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के बाद दीपदान करते हैं| इसीलिए हिंदू धर्मावलंबी ऐसा मानते हैं कि इस दिन गंगा स्नान करने एवं दीपदान करने से देवतागण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं| यही नहीं, इससे भक्तों को पूरे वर्ष शुभ फल की प्राप्ति होती रहती है, जिसके प्रभावस्वरूप उनके सभी पापों का नाश हो जाता है तथा उनको सभी कार्यों में सफलता मिलती है| इस प्रकार देखा जाए तो दिवाली के बाद यह देव दीपावली पर्व देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक और अवसर प्रदान करता है|

शिव पुराण में वर्णन है कि ताड़कासुर का पुत्र त्रिपुरासुर राक्षस के अत्याचारों से न केवल पृथ्वी पर मनुष्य, बल्कि स्वर्ग में देवतागण भी पीड़ित थे| दरअसल, त्रिपुरासुर ने तपस्या के बल और प्रताप से सफलतापूर्वक पूरी दुनिया को जीत लिया और यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका अंत तभी हो सकता है, जब कोई उसके द्वारा निर्मित तीन नगरों को एक ही बाण से भेद देगा| ये तीन नगर त्रिपुरा’ के नाम से जाने जाते थे| त्रिपुरासुर राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त हो चुके देवताओं ने देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ शिवशंकर से रक्षार्थ प्रार्थना की, जिसके बाद भगवान शिव ने एक ही बाण से उसके तीनों नगरों को नष्ट करने के बाद त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था| हिंदू शास्त्रों में उल्लेख है कि जिस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर मनुष्यों एवं देवताओं की रक्षा की थी, वह शुभ दिन कार्तिक महीने की शुभ पूर्णिमा तिथि थी| त्रिपुरासुर-वध से सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु काशी नगरी में पधारे| इस अवसर पर देवताओं ने संपूर्ण काशी में दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं| यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भक्ति-भाव के साथ देव दीपावली मनाने की सदियों पुरानी परंपरा काशी में आज भी अनवरत जारी है| बता दें कि इस वर्ष १५ नवंबर को देव दीपावली का पर्व मनाया जाएगा| मान्यता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में दीपदान करने से जीवन में अपार सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है|

ब्रह्म मुहूर्त में गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए| यदि ऐसा करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान किया जा सकता है| उसके बाद भगवान भोलेनाथ शिवशंकर तथा भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए| संध्या समय किसी नदी या सरोवर पर जाकर दीपदान करना चाहिए| यदि आस-पास कोई नदी या सरोवर नहीं हो तो ऐसी स्थिति में किसी मंदिर में दीपदान करना चाहिए| इस अवसर पर अपनी सामथ्रय के अनुसार ०१, ०५, ११, २१, ५१ अथवा १०८ आटे के दीए प्रज्वलित कर अर्पित करना चाहिए| इसके साथ ही अपने घर में एवं घर के पूजा स्थल पर भी दीप प्रज्वलित करने चाहिए|

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