इन दिनों कई शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकारों द्वारा जो प्रयास किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर लोगों से अपील की जा रही है, उससे क्षणिक राहत तो मिलेगी, लेकिन समस्या का पुख्ता समाधान नहीं होगा।
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) निजी वाहनों के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए पार्किंग शुल्क दोगुना करने की योजना बना रहा है। पूर्व में केजरीवाल सरकार द्वारा 'सम-विषम' नंबरों के अनुसार वाहन चलाने की अनुमति देने का फैसला भी बहुत विवादों में रहा था। उसका नतीजा यह हुआ कि आम लोगों की मुसीबतें बढ़ीं, जबकि कई समृद्ध लोगों ने जरूरत के अनुसार सम या विषम नंबर वाले वाहन खरीद लिए थे।
अब सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट्स की भरमार है, जिनमें अपील की जा रही है कि कचरा न जलाएं, पौधे लगाएं, ऐसी गतिविधियों से बचें, जिनसे पर्यावरण को नुकसान होता है। बेशक हर वह काम प्रशंसनीय है, जो पर्यावरण को जरा-सा भी फायदा पहुंचाए। बड़ा सवाल यह है कि क्या इतना कर देना पर्याप्त है? क्या पार्किंग शुल्क दोगुना करने से लोग निजी वाहनों का इस्तेमाल करना बंद कर देंगे? कचरा जलाने से पैदा हुआ धुआं पर्यावरण के लिए खतरनाक है। क्या धूम्रपान से पैदा हुआ धुआं खतरनाक नहीं है?
हर साल दीपावली पर पटाखों के मुद्दे को लेकर खूब बहस होती है। बड़े-बड़े फिल्मी सितारे सोशल मीडिया पर प्रकट होकर जनता से अपील करते हैं कि पटाखे न चलाएं, इससे हवा प्रदूषित होती है, जानवरों को तकलीफ होती है। इस अपील में तथ्यात्मक रूप से कुछ भी गलत नहीं है। सब जानते हैं कि पटाखों के धुएं से प्रदूषण फैलता है, धमाकों से जानवर डरते हैं।
क्या ही अच्छा हो, अगर ये 'सितारे' ऐसी ही अपील फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से भी करें, जिनकी कई फिल्मों में आतिशबाजी के दृश्य होते हैं। अब तो एआई का ज़माना है। उसकी मदद से बिना कोई प्रदूषण फैलाए आतिशबाजी के दृश्य फिल्माए जा सकते हैं। यही अपील उस दिन भी करें, जब चुनाव नतीजे घोषित किए जाएं। प्राय: जब कोई नेता चुनाव जीतता है तो उसके समर्थक पटाखे चलाकर खुशियां मनाते हैं।
शादियों के सीजन और नए साल पर भी खूब आतिशबाजी होती है। पर्यावरण को बचाने के लिए वहां भी गंभीरता दिखानी होगी। वायु प्रदूषण बड़ी समस्या है। इसके मद्देनज़र एक-दो चीजों पर प्रतिबंध लगाना या नियमों में कुछ सख्ती कर देना काफी नहीं है। ऐसा बहुत कुछ है, जिसे बदलना होगा या उसमें सुधार करना होगा। पर्यावरण संरक्षण सरकार और जनता, दोनों की जिम्मेदारी है। सबको अपने जीवन में झांकना होगा और उन गतिविधियों में यथासंभव सुधार करना होगा, जो वायु प्रदूषण की जिम्मेदार हैं।
यहां कथनी और करनी में अंतर होने से काम नहीं चलेगा। इस साल जब राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के कई इलाकों में भयंकर गर्मी पड़ रही थी, पारा हर दिन नए रिकॉर्ड बना रहा था, तब कई लोग अपने 'एसी कक्ष' में बैठकर जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जता रहे थे! पर्यावरण संरक्षण का संदेश कोरे शब्दों से नहीं, बल्कि अपने जीवन से आना चाहिए। कितने नेता, सरकारी अधिकारी और बड़ी कंपनियों के पदाधिकारी हैं, जो इस संकल्प के साथ अपनी 'सुख-सुविधाओं' में थोड़ी कटौती करने के लिए तैयार होंगे कि हमें पर्यावरण का संरक्षण करना है, हवा को निर्मल बनाना है?
कितने लोग हफ्ते में कम-से-कम दो दिन साइकिल से दफ्तर जाने के लिए तैयार होंगे? कितने लोग गर्मियों में एसी की जगह सिर्फ पंखे या कूलर के लिए सहमत होंगे? कितने लोग सर्दियों में अंगीठी / हीटर के बजाय अतिरिक्त ऊनी कपड़े से काम चला लेंगे? कितने नेता अपने काफिले में गाड़ियों की संख्या कम करेंगे?
कितने लोग बारातों में अलग-अलग गाड़ियां ले जाने के बजाय एक या दो वाहन ले जाने को प्राथमिकता देंगे? सुधारों की शुरुआत सबको अपनेआप से करनी होगी। सिर्फ कागजी बातों से पर्यावरण संरक्षण संभव होता तो कई साल पहले हो जाता, चूंकि सबने स्कूली पढ़ाई के दौरान पर्यावरण पर निबंध लिखा ही था।