अलग प्रदेशों की मांग से क्या पाकिस्तान के टुकड़े होंगे?

पाकिस्तान के लिए समस्याएं कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं

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अशोक भाटिया
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पाकिस्तान में अलग-अलग देशों की लगातार मांग बढ़ रही है| पाकिस्तान के टूटने की शुरुआत साल १९७१ में हो गई थी, जब भारत की मदद से बांग्लादेश बना| इसके बनने के पीछे भी २४ सालों का असंतोष था| उसके बाद  सिंधुदेश की मांग व बलूचिस्तान की मांग ने पाकिस्तान के नाक में दम कर रखा है| पहले बात करें सिंधुदेश की मांग की तो इसको लेकर हालिया हुई रैली में प्रदर्शनकारियों के हाथों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई विश्व के कई बड़े नेताओं की तस्वीरें नजर आईं| प्रदर्शनकारियों ने सिंध प्रांत को अलग देश बनाने की मांग के मामले में विश्व के नेताओं से दखल देने की अपील की है|सिंधु देश की मांग की कहानी १९४७ से जुड़ी है| भारत को आजादी मिलने के बाद सिंधु क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया और पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक बन गया| अलग सिंधु देश की मांग १९६७ से शुरू हुई जब पाकिस्तान सरकार ने यहां के निवासियों के ऊपर उर्दू भाषा थोप दी| यहां के लोगों ने इसका विरोध किया और इसके फलस्वरूप सिंधी अस्मिता का जन्म हुआ| इन्होंने अपनी भाषा और संस्कृति की दुहाई दी और लोगों को एकजुट किया| इस मुहिम में सिंधी हिन्दू और सिंधी मुसलमान दोनों शामिल हुए| ’सिंधु देश’ जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सिंधियों के लिए अलग देश| सिंधु देश एक विचार है जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बसे और दुनिया भर में फैले सिंधियों का एक सपना है| ये सिंधी दुनिया दूसरे एथनिक समुदायों की तरह अपने लिए एक अलग होमलैंड की मांग करते आ रहे हैं|  जैसे कुर्द अपने लिए अलग देश की मांग करते हैं| यहूदी समुदाय के लोगों ने इजरायल नाम का अपना देश बनाया है| उसी तरह सिंधी पाकिस्तान के अंदर एक निश्चित भूभाग में अपने लिए एक स्वतंत्र और सार्वभौम मातृभूमि चाहते हैं|

भारत से अलग होकर १९४७ में बने पाकिस्तान के लिए समस्याएं कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं| दुनियाभर के कर्ज में डूबे पाकिस्तान में अगर आपको आने वाले कुछ वर्षों में गृहयुद्ध की स्थिति बनती दिखाई दे, तो चौंकने वाली बात नहीं होगी| उर्दू को पाकिस्तान की सरकारी भाषा बनाने की घोषणा के साथ ही पाकिस्तान में अलगाववाद के बीज पनपने लगे थे| लोगों पर जबरदस्ती उर्दू भाषा थोपी गई| बांग्लाभाषी बहुल पूर्वी पाकिस्तान इसी फैसले के चलते अब अलग देश बनकर बांग्लादेश के रूप में आपके सामने है| वहीं, पाकिस्तान में अगस्त, १९४७ के बाद से अब तक बनी सभी सरकारों ने मानवाधिकारों को एक अलग खूंटी पर टांग दिया| बात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की हो या बलूचिस्तान या फिर सिंधु प्रांत की| पाकिस्तानी सरकारों ने इन सभी जगहों से उठने वाली आवाजों का वर्षों से दमन किया है| पाकिस्तानी फौज के बलूचिस्तान में किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक्टिविस्ट करीमा बलोच की कनाडा में हुई हत्या इसका एक ताजा उदाहरण है|

फिलहाल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सबसे ज्यादा हिंदू आबादी रहती है| पाकिस्तान की कुल हिंदू आबादी का करीब ९५ फीसदी सिंध प्रांत में हैं| पाकिस्तान के उत्पीड़न से त्रस्त इन लोगों ने अब वैश्विक नेताओं से गुहार लगाई है| वहीं, प्रदर्शनकारियों के हाथ में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर होने के पीछे एक बड़ी वजह है| कश्मीर की स्थिति को लेकर हुई एक सर्वदलीय बैठक में मोदी ने कहा था कि समय आ गया है, अब पाकिस्तान को विश्व के सामने बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लोगों पर हो रहे अत्याचारों का जवाब देना होगा| मोदी के इस बयान के चलते बलोच आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में काफी तवज्जो मिली थी| इसके बाद २०१६ में भारत के ७०वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान, गिलगित और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों का आभार व्यक्त किया था| दरअसल, पीएम मोदी के बयान के बाद पाकिस्तान में जुल्मो-सितम  झेल रहे इन हिस्सों के लोगों ने उनकी आवाज उठाने के लिए मोदी को सोशल मीडिया पर धन्यवाद दिया था| हाल ही में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जमसोरो जिले में जीएम सैयद के गृहनगर सान कस्बे में हुई रैली में लोगों ने आजादी के लिए नारे लगाए गए| प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान दावा सीधे तौर पर कहा- सिंध, सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक धर्म का घर है| ब्रिटिश साम्राज्य ने इस पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और १९४७ में पाकिस्तान के इस्लामी हाथों में दे दिया था| अलग सिंधुदेश की मांग को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर उठाया जा रहा है| इन लोगों का मानना है कि पाकिस्तान ने सिंध प्रांत पर जबरन कब्जा कर रखा है|

पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही बलूचिस्तान, गिलगित और पाक अधिकृत कश्मीर में असंतोष बढ़ने लगा था| पाकिस्तानी हुकूमत पर पंजाबी वर्ग के वर्चस्व से लेकर मानवाधिकारों के उल्लंघन तक पाक के नापाक इरादों की एक लंबी दास्तान है| इन सबके बीच अब चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर  के चलते भी पाक में भारी असंतोष फैल रहा है| पाकिस्तान के इन हिस्सों की आवाम अब खुलकर अपना विरोध दर्शा रही है| बीते कुछ वर्षों में भारत की वर्तमान मोदी सरकार पर इन लोगों का भरोसा बढ़ा है| ऐसे में अलगाववादी रैली में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर नजर आने से पाकिस्तान की पेशानी पर फिर से बल पड़ सकते हैं| अब देखना यह है कि अलग सिंध देश की मांग से क्या  पाकिस्तान के टुकड़े होंगे? होंगे तो कितने होंगे? सिंध देश यदि अलग बन जाता है तो वहां रहने वाले सिन्धी हिन्दुओं को इसका कितना लाभ मिल सकेगा? सिन्धु देश की मांग के आलावा साल १९४७ में पाकिस्तान के बनने के साथ ही बलूच मुद्दे ने उसकी नाक में दम कर रखा है| आए दिन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की खबरें आती हैं कि उसने अपने यहां कोई धमाका कर दिया, जिसमें पाकिस्तान सरकार या चीन के लोग मारे गए| इसके अलावा भी कई चरमपंथी संगठन हैं, जो बलूच आजादी चाहते हैं|दरअसल ये पाकिस्तान का वो हिस्सा है, जो कभी भी सरकार के बस में नहीं रहा| इसकी दो वजहें हैं- एक, पाकिस्तान ने धोखे से उसे अपने साथ मिला लिया| और दूसरा, बलूचिस्तान मानता है कि पाकिस्तान उसके साथ सौतेला व्यवहार करता रहा|  पूरे देश में छिटपुट हिस्सों में अलगाववाद पनपता रहा| यहां तक कि देश के विभाजन के कुछ समय बाद आए मुस्लिमों को भी वहां स्वीकारा नहीं जा रहा| ये लोग मुहाजिर कहलाते और योजनाओं से दूर रखे जाते हैं| ये भी मुहाजिर सूबे की मांग बीच-बीच में कर लेते हैं| वैसे ये उस तरह के एक्सट्रीम नहीं हैं, जिनपर पाकिस्तान परेशान रहे| अफगानिस्तान में तालिबान आने के बाद से पाकिस्तान का डर और बढ़ा क्योंकि यहां मौजूद पश्तून आबादी अफगानिस्तान का हिस्सा बनने की बात करती आई है| अगर ऐसा हुआ तो लगभग पूरा खैबर पख्तूनख्वा अलग हो जाएगा और पाकिस्तान को टुकड़ों-टुकड़ों में बनने से कोई रोक नहीं सकता|

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