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बच्चों में बढ़ता मोटापा है खतरे की घंटी

बच्चों में मोटापा एक गंभीर और बढ़ती स्वास्थ्य समस्या

बच्चों में बढ़ता मोटापा है खतरे की घंटी
Photo: PixaBay

सुनिधि मिश्रा
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ५-१९ वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापे की दर पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है| वर्तमान में, लगभग १४.४ मिलियन भारतीय बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं| यह आंकड़ा विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में अधिक चिंताजनक है, जहां यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में २.५ गुना अधिक पाई जाती है| आधुनिक युग में बच्चों में बढ़ता मोटापा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है| यह इस इस बात की तरफ़ संकेत भी दे रहा है है आने वाला भविष्य ख़तरे में है|

बच्चों में मोटापा एक गंभीर और बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है| यह तब होता है जब एक बच्चे का शरीर का वजन उसकी ऊंचाई, आयु और लिंग के अनुपात में अत्यधिक हो जाता है| इसका पता लगाने के लिए बच्चे का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) गणना की जाती है, जो उसकी ऊंचाई और वजन को ध्यान में रखती है| जिन बच्चों का बीएमआई अपने आयु और लिंग के ९५वें पर्सेंटाइल से अधिक होता है, उन्हें मोटापे वाला माना जाता है| इसी संदर्भ में हाल ही में आई रिपोर्ट भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी के भी  अनुसार, भारत में ५-१९ वर्ष की आयु के लगभग १४.४ मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रसित हैं| यह संख्या पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है| बदलती जीवनशैली और खान-पान की आदतें इस समस्या के प्रमुख कारण हैं| आज के डिजिटल युग में, बच्चे मोबाइल फोन, टैबलेट और वीडियो गेम्स में अधिक समय बिताते हैं| 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (२०२३) के आंकड़ों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में ५-१९ वर्ष के २२.७ फ़ीसदी बच्चे और ग्रामीण क्षेत्रों में १२.१ फ़ीसदी  बच्चे मोटापे से ग्रसित हैं| पिछले पांच वर्षों में इस समस्या में ६३ फ़ीसदी  की वृद्धि दर्ज की गई है, जो एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है| फास्ट फूड और जंक फूड की बढ़ती लोकप्रियता ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है| एक अध्ययन के अनुसार, शहरी क्षेत्रों के ६५ फ़ीसदी बच्चे सप्ताह में कम से कम ३-४ बार फास्ट फूड का सेवन करते हैं| साथ ही, ७८ फ़ीसदी  बच्चे नियमित रूप से कार्बोनेटेड पेय पदार्थों का सेवन करते हैं| कार्बोनेटेड पेय पदार्थो पे बहुत ही अधिक मात्रा में चीनी का प्रयोग होता है जो की स्वास्थ्य के के लो मीठे ज़हर की तरह काम करती है और इसमें इसकी मात्रा की ज़रूरत से बहुत ज़्यादा होती है जिससे की मोटापा होने की संभावना बढ़ जाती है| पारंपरिक और पौष्टिक भोजन की जगह प्रोसेस्ड फूड ने ले ली है, जिससे बच्चों के पोषण संतुलन में गड़बड़ी आ रही है| 

आज के समय में फ़ास्ट फ़ूड की तरफ़ बढ़ती लोकप्रियता की वजह से बच्चों के ना केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव बढ़ रहा है, इसकी वजह से उनके मानसिक स्वास्थ्य पे भी प्रभाव पड़ रहा है| बाज़ार में उपलब्ध ज़्यादातर खाद्य पदार्थो में केमिकल और प्रेज़र्वेटिव्स का प्रयोग होता है जिससे की खाद्य पदार्थ लंबे समय तक चल सके और साथ ही साथ उसके स्वाद को भी भी उत्तम बनाया रखा जा सके| समस्या बाहर के खाने से ज़्यादा इस बात की है कि खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता पर है, ऐसे कई सारे केस सामने जिसमे जॉंच के समय, खाद्य पदार्थो के मानक सही नहीं पाए गए, इस बात पे ध्यान देने के ज़रूरत है कि हम खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता की जॉंच करे| इस समस्या से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है| परिवार स्तर पर, स्वस्थ खान-पान की आदतों को बढ़ावा देना और बच्चों को शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करना महत्वपूर्ण है| भारतीय पारंपरिक खाद्य पदार्थ प्राकृतिक और पोषक होते हैं और बच्चों के लिए बहुत लाभकारी हैं|

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