यह कहना काफी हद तक सही है कि इन्सान उन चीजों की कद्र नहीं करता, जो उसे मुफ्त में मिल जाती हैं। कुदरत ने हमें साफ हवा, स्वच्छ नदियां, शांत वातावरण और कई संसाधन दिए, लेकिन हमने उनका महत्त्व समझने और संरक्षण करने के बजाय इतना प्रदूषित कर दिया कि अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक 'गैस चैंबर' बन गई। इस मुद्दे पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हो गई कि उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। वहीं, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। दिल्ली में ये हालात रातोंरात पैदा नहीं हुए हैं। वैज्ञानिक तो कई वर्षों से चेतावनी दे रहे थे। सरकारें इससे अनजान भी नहीं थीं। लोगों को पता था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद न तो सरकारों ने कोई फिक्र की और न जनता ने इसकी परवाह की। अब सांस लेना मुश्किल हो गया तो हर कहीं एक ही शिकायत सुनने को मिल रही है- 'प्रदूषण बहुत बढ़ गया है।' बेशक प्रदूषण बढ़ गया, लेकिन हम इतने वर्षों तक खामोश क्यों रहे? क्या इस बात के इंतजार में थे कि जब जान पर ही बन आएगी, तब सोचेंगे? दिल्ली के मौजूदा हालात से अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सबक लेने चाहिएं। आज जो कुछ दिल्ली में हो रहा है, कल वह आपके यहां भी हो सकता है। इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि 'अरे! यह तो दिल्ली में हो रहा है, हम वहां से बहुत दूर रहते हैं ... इधर यह कभी नहीं हो सकता।' पांच दशक पहले दिल्ली की हवा भी तुलनात्मक रूप से बहुत साफ थी। धीरे-धीरे इतना जहर घुल गया कि अब सांस लेना दूभर हो गया है।
राजनीतिक दलों ने पर्यावरण संरक्षण को कभी मुद्दा नहीं बनाया। वे जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद और वोटबैंक को 'खुश' रखने के पैंतरों में उलझे रहे। तब हालात इस कदर नहीं बिगड़े थे। नेतागण भलीभांति जानते थे कि पर्यावरण के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे। अब आम आदमी पार्टी भाजपा-शासित राज्यों पर पराली जलाने के आरोप लगा रही है। भाजपा दिल्ली और पंजाब सरकार के 'कुप्रबंधन' को लेकर सवाल उठा रही है। क्या इससे आम जनता को राहत मिलेगी? हवा में सांस तो 'आम' और 'ख़ास', सभी लेते हैं। लिहाजा यह मुद्दा किसी एक व्यक्ति, राज्य या सरकार का नहीं, हम सबका है। उच्चतम न्यायालय की सख्ती के बाद राष्ट्रीय राजधानी के हालात में सुधार आने की उम्मीद तो है, लेकिन इसमें काफी समय लग सकता है। हमने कुदरत के साथ दशकों तक जो खिलवाड़ किया, उसके दुष्परिणामों से इतनी जल्दी पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता। अब देश के अन्य क्षेत्रों में लोगों को सावधान हो जाना चाहिए। हमें पर्यावरण संरक्षण को बहुत गंभीरता से लेना होगा। कचरा जलाने, धुआं फैलाने जैसी गतिविधियों से जुड़े खतरों को समझना होगा। पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाना होगा। हालांकि इतना कर देना ही काफी नहीं है। दफ्तरों में जहां तक संभव हो, वर्क फ्रॉम होम को प्रोत्साहित करना होगा। जब इंटरनेट के रूप में विज्ञान का एक वरदान हमारे पास है तो उसका सदुपयोग करना चाहिए। साइबर सुरक्षा को भी मजबूत करना होगा। पंजाब समेत जिन राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं हो रही हैं, वहां स्थानीय प्रशासन को सख्ती दिखानी होगी। अवैध ईंट-भट्टों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। स्थानीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण संबंधी हेल्पलाइन होनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता दिखाई दे, तो उसकी शिकायत करने के लिए आसान व्यवस्था हो। धूम्रपान को हतोत्साहित किया जाए। रसोईघरों, ढाबों में परंपरागत चूल्हे की जगह गैस सिलेंडर पहुंचाने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। भोजन पकाने में सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। दिल्ली के हालात की अनदेखी न करें। अब सबको 'जाग' जाना चाहिए।