भारत में वित्तीय अपराधों से जुड़ीं घटनाओं में चीनी नागरिकों पर आरोप लगना गंभीर मामला है। तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली से शीओ या माओ और वू युआनलुन को तो धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत ईडी ने गिरफ्तार किया है। उन पर कोरोना महामारी के दौरान ऋण ऐप के जरिए धोखाधड़ी करने और उस अपराध से मिले धन का क्रिप्टो करेंसी मंच के जरिए शोधन करने का आरोप है। इसी तरह, दिल्ली पुलिस ने 43 लाख रुपए की साइबर धोखाधड़ी के मामले में चीनी नागरिक फेंग चेनजिन को गिरफ्तार किया है। यही नहीं, इस शख्स की गिरफ्तारी से पुलिस को 100 करोड़ रुपए से ज्यादा के ‘ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग’ घोटाले का पता लगाने में मदद मिली है। क्या भारत में साइबर अपराधी कम थे, जो अब चीनी नागरिक भी लूटमार करने आ गए? हाल के वर्षों में वित्तीय धोखाधड़ी और साइबर ठगी के जो मामले सामने आए हैं, उनका अध्ययन करें तो यह शक और गहरा होता है कि भारत में इन अपराधों को अंजाम देने वालों का पाकिस्तानी और चीनी अपराधियों के साथ गहरा गठजोड़ है। चूंकि पिछले एक दशक में भारत में इंटरनेट और बैंकिंग सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। लोग अपनी कमाई और बचत का बहुत बड़ा हिस्सा बैंक खातों में रखने लगे हैं। वहीं, साइबर सुरक्षा में कई खामियां हैं। लोगों में जागरूकता की कमी है। इसका फायदा साइबर ठग खूब उठा रहे हैं। इंटरनेट ने उन्हें इतनी सुविधा दे दी कि वे दूरदराज के इलाके में स्थित एक छोटे-से कमरे में बैठकर महानगरों में रहने वालों को भी करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं। ठगी के 'धंधे' में पाकिस्तानी और चीनी अपराधियों का प्रवेश इन मामलों को और उलझाता है।
भारत में रहने वाले साइबर अपराधी जब ठगी की रकम विभिन्न माध्यमों से चीन या पाकिस्तान भेज देते हैं तो उसे बरामद करना 'टेढ़ी खीर' होता है। चूंकि ये दोनों देश भारत से शत्रुता रखते हैं, इसलिए उस स्थिति में इनकी जांच एजेंसियां कोई सहयोग नहीं करेंगी। ठगी के तौर-तरीके इस बात के संकेत देते हैं कि साइबर अपराधियों को वहां की सरकारों ने खुली छूट दे रखी है, ताकि वे भारतीय नागरिकों को नुकसान पहुंचाएं। इससे चीन और पाकिस्तान को एक भी गोली नहीं चलानी पड़ती, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत भारी नुकसान होता है। दिल्ली पुलिस को 100 करोड़ रुपए से ज्यादा के जिस ‘ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग’ घोटाले का पता चला है, उसमें सोशल मीडिया समूहों की भूमिका सामने आई है। आसान शब्दों में कहें तो आज सोशल मीडिया समूह सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम नहीं हैं। यहां साइबर अपराधी भी खूब सक्रिय हैं। वे नए-नए तरीकों से लोगों के बैंक खातों में सेंध लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा कैसे फंसाया जाए, इसके लिए वे भारत में रहने वाले साइबर अपराधियों को तरीके भी बताते होंगे। आज एआई की मदद से ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट, प्रोफाइल और फोटो तैयार करना बहुत आसान हो गया है, जिन्हें देखकर असली-नकली का फर्क मालूम करना मुश्किल होता है। फेसबुक पर ऐसी पोस्ट्स की भरमार है, जिनमें किसी 'आकर्षक फोटो' के साथ ऐसे शब्द लिखे होते हैं, जिन्हें पढ़कर बहुत लोग झांसे में आ जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक पोस्ट में किसी महिला (संभवत: एआई से बनाई गई फर्जी फोटो) को करोड़ों रुपए की मालकिन बताते हुए कहा गया था कि 'इनका तलाक हो चुका है, कोई वारिस नहीं है ... इन्हें एक 'वफादार' ड्राइवर की जरूरत है, जिसका वेतन दो लाख रुपए प्रतिमाह होगा ... जिसे यह नौकरी चाहिए, वह अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक के शुरुआती पृष्ठों, स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के दस्तावेजों की फोटो तुरंत भेज दे।' आश्चर्यजनक रूप से, बहुत लोग ये दस्तावेज भेज देते हैं! क्या वे जानते नहीं कि उनके दस्तावेजों का दुरुपयोग किया जा सकता है? वे कथित नौकरी से संबंधित उस पोस्ट की भाषा और फोटो को ध्यान से देखें तो साफ पता चलता है कि यह एक 'जाल' है। अगर लोग जागरूक रहें, कोई संवेदनशील जानकारी साझा न करें तो साइबर ठगी से सुरक्षित रह सकते हैं। बिना सोच-विचार किए अपनी जानकारी खुद ही ठगों तक पहुंचा देंगे तो क्यों नहीं ठगे जाएंगे?