'मीठे, सत्य और कल्याणकारी' वचनों से जीवन को बना सकते हैं आदर्श'

असत्य भाषा से बचना चाहिए

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बेंगलूरु/दक्षिण भारत। यहां गणेश बाग, शिवाजी नगर में विशेष प्रवचन माला के दौरान विनय मुनिजी खींचन ने कहा कि जीवों में व्यवहार भाषा से होते हैं। पशु-पक्षियों में भी कोई विशेष ज्ञानी पक्षी को छोड़कर व्यवहार भाषा ही बोलते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा चार प्रकार की- सत्य भाषा, असत्य भाषा, मिश्र भाषा, व्यवहार भाषा होती है।

मुनिजी ने कहा कि प्रज्ञापना सूत्र में बताया गया है कि असत्य भाषा से बचना चाहिए। इससे विश्वास टूट जाता है। मिश्र भाषा संशयकारी होने से, उससे बचना चाहिए। तीर्थंकर देव सत्य भाषा और व्यवहार भाषा का प्रयोग करते थे। जैन आगमों में सत्य भाषा को सत्य भगवान तुल्य माना गया है। भाषा एक शक्ति है। इसका विवेक से प्रयोग करने पर 'महाभारत' का कारण नहीं बनती है। भाषा बदलने से पहले इन्सान को अपने मन को बदलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मन का चिंतन सत्य है, कोमल है, दया और क्षमा से भरा है। लोग भाषा को सुधारने का प्रयास करते हैं। तीर्थंकर देवों ने पहले मन को सुधारने को समझाया है। मन सूक्ष्म होने से इसको पकड़ना साधारण काम नहीं है। मन को पकड़ने के लिए ऋषि-मुनियों ने हिमालय तक यात्रा की, वर्षों तक मन को समझने की कोशिश की। फिर भी मन का वश में होना बहुत मुश्किल है।

उन्होंने कहा कि मीठे वचन, सत्य वचन और कल्याणकारी वचन से अपने जीवन को आदर्श बना सकते हैं। सात्विक भोजन और सात्विक भाषा सभी के लिए मंगलकारी बनते हैं। ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिससे परिवार, समाज और देश की शांति में वृद्धि हो।

इस अवसर पर मैसूरु, बंगारपेट, कोलार, जयनगर, कुमारा पार्क, फेजर टाउन आदि से श्रद्धालु मौजूद थे। संघ प्रवक्ता राजू सकलेचा ने सभी का स्वागत किया। महामंत्री संपत राज मांडोत ने आभार व्यक्त किया। उन्होंने अधिकाधिक लोगों से प्रवचन सुनने की अपील की।

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