युवा भारतीय महिलाओं की उभरतीं आकांक्षाएँ
भारतीय महिलाएँ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं
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प्रियंका सौरभ
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विवाह की औसत आयु २००५ में १८.३ वर्ष से बढ़कर २०२१ में २२ वर्ष हो गई है, जिसमें अधिक युवा महिलाएँ अनुकूलता के आधार पर साथी चुनती हैं्| एक रिपोर्ट के अनुसार ५२% महिलाओं ने साथी चयन में अपनी बात रखी, जो २०१२ में ४२% थी| कई युवा महिलाएँ आर्थिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रही हैं, विशेष रूप से उद्यमिता के माध्यम से, क्योंकि सरकार महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिए समर्थन दे रही है| उदाहरण के लिए: नीति आयोग द्वारा महिला उद्यमिता मंच ने १०, ००० से अधिक महिला उद्यमियों के नेटवर्क को बढ़ावा दिया है| युवा महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय शासन में बढ़ती भागीदारी के साथ राजनीतिक रूप से अधिक सक्रिय हैं| ग्रामीण महिलाओं के बीच स्वयं सहायता समूह सदस्यता २०१२ में १०% से बढ़कर २०२२ में १८% हो गई्| ये आकांक्षाएँ पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और मानदंडों को चुनौती दे रही हैं| जैसे-जैसे अधिक महिलाएँ करियर बना रही हैं, घरों में पारंपरिक लैंगिक अपेक्षाएँ बदल रही हैं| मनरेगा पुरुषों और महिलाओं के लिए समान वेतन प्रदान करता है, जो ग्रामीण घरेलू गतिशीलता को प्रभावित करता है| अधिक शिक्षा और आय के साथ, युवा महिलाओं का अब परिवार के वित्तीय और सामाजिक निर्णयों में अधिक प्रभाव है| स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण महिलाओं को सामूहिक रूप से घरेलू वित्त का प्रबंधन करने के लिए सशक्त बनाया है| बाद में विवाह करने और साथी चुनने में सक्रिय भागीदारी की ओर बदलाव ने अरेंज मैरिज की पारंपरिक संरचना को चुनौती दी है|
बाल विवाह में कमी और बाद में विवाह करने को प्राथमिकता देने की रिपोर्ट करता है| बढ़ती स्वतंत्रता ने सामाजिक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए शिक्षा या काम के लिए महिलाओं की अकेले यात्रा को सामान्य बना दिया है| २०१२ में ४२% की तुलना में अब ५४% महिलाएँ बस या ट्रेन से अकेले यात्रा करने में सहज महसूस करती हैं| युवा महिलाएँ पेशेवर सेटिंग्स में लैंगिक समानता के बारे में तेज़ी से मुखर हो रही हैं, कानूनी और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दे रही हैं्| पोष अधिनियम (कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम) , २०१३ ने महिलाओं को कार्यस्थल के मुद्दों को प्रभावी ढंग से सम्बोधित करने के लिए सशक्त बनाया है| स्वयं सहायता समूह और ग्राम सभाओं में युवा महिलाएँ शासन में महिलाओं की भूमिका पर पारंपरिक विचारों को चुनौती दे रही हैं्| केरल कुदुम्बश्री मिशन महिला-नेतृत्व वाले शासन को बढ़ावा देता है, जिसने राज्यों में इसी तरह के मॉडल को प्रेरित किया है|
भारतीय महिलाएँ ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं| भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, हमारे लिए महिलाएँ न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं| अनादि काल से ही महिलाएँ मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं| झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए हैं| २०३० तक पृथ्वी को मानवता के लिए स्वर्ग समान जगह बनाने के लिए भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ चला है| लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण करना सतत विकास लक्ष्यों में एक प्रमुखता है| वर्तमान में प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक और सामाजिक विकास जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है| महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं्| प्रसिद्ध अमेरिकी धार्मिक नेता ब्रिघम यंग ने ठीक ही कहा है कि जब आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं| जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं्|
स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाएँ न केवल ख़ुद को सशक्त बना रही हैं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबुती में को भी योगदान दे रही है| सरकार के निरन्तर लगातार आर्थिक सहयोग से आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में उनकी भागीदारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है| पिछले ६-७ वर्षों में महिला स्वयं सहायता समूहों का अभियान और तेज हुआ है| आज देश भर में ७० लाख स्वयं सहायता समूह हैं| महिलाओं के पराक्रम को समझने की ज़रूरत है, जो हमें महिमा की अधिक ऊंचाइयों तक पहुँचाएगी| आइए हम उन्हें आगे बढ़ने और फलने-फूलने में मदद करें्| महिलाओं के सर्वांगीण सशक्तिकरण के लिए ’अमृत काल’ इन्हें समर्पित हो| युवा भारतीय महिलाओं की उभरती आकांक्षाएँ भारत के सामाजिक ताने-बाने को उत्तरोत्तर रूप से परिभाषित कर रही हैं, एक ऐसे समाज को बढ़ावा दे रही हैं जहॉं लैंगिक समानता और महिलाओं की एजेंसी आदर्श बन गई है| सहायक नीतियों को सुनिश्चित करने से इस बदलाव में तेज़ी आ सकती है, जिससे समावेशी और सशक्त भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सकता है|