बेंगलूरु/दक्षिण भारत। बेंगलूरु के गणेश बाग, शिवाजी नगर में प्रवचन के दौरान विनय मुनि खींचन ने भाषा पर गहरी विवेचना की। उन्होंने प्रभु महावीर का उल्लेख करते हुए कहा कि भाषा जीव बोलता है, शरीर से निकलती भाषा का आकार वज्र (शस्त्र) जैसा होता है और भाषा का अवसान लोकान्त में होता है। जीवन में व्यवहार की अनिवार्यता होती है। उस व्यवहार को आदर्श, उत्तम और यशस्वी बनाने में भाषा का बहुत ही बड़ा सहयोग रहता है।
उन्होंने कहा कि इन्सान के साथ अच्छी-बुरी, यश-अपयश, न्याय-अन्याय आदि सभी में प्रायः भाषा जुड़ती ही है। असत्य मिश्र भाषा से व्यवहार कमजोर होकर टूट जाता है। वर्तमान जीवन शैली में युवाओं को भाषा का व्यवहार सिखाया जाता है।
विनय मुनि खींचन ने कहा कि कषायों से भरी भाषा बोलने से ही समाज में प्रीति कमजोर होती है। कर्मों के बंधन होते हैं। जन्म-मरण की परंपरा बढ़ती है। अतएव भाषा के साथ धर्म जुड़ने से ही व्यवहार अच्छा बनेगा। लोकप्रिय बनने के लिए भाषा का उचित प्रयोग बहुत ही अच्छा उपाय है। विश्व में जो भी व्यक्ति प्रसिद्ध हुए, महापुरुष बने, उन्होंने हमेशा भाषा का पूरा विवेक किया है।
उन्होंने कहा कि युवावस्था में भाषा का विवेक रखना बहुत ही कठिन है, परंतु जिनके आदर्श भगवान महावीर, स्वामी विवेकानंद जैसे होते हैं, वे हमेशा उचित भाषा, सत्य भाषा और सभी के लिए मंगलकारी, कल्याणकारी भाषा का ही प्रयोग करते हैं।
धर्मसभा में हीरा बाग से प्रकाश खींवसरा, चामराजपेट से सुरेश रणवाल, नगरथपेट से शांतिलाल डूंगरवाल, श्रीरामपुरम से दिनेश खींवसरा, गौतमचंद ओसवाल, फलोदी से प्रकाशचंद पारख, हुब्बली से पारसमल पटवा सपरिवार तथा राममूर्ति नगर से प्रीतम मेहता सपरिवार और उपनगरों से श्रद्धालु मौजूद थे। संघ प्रवक्ता प्रसन्न मांडोत ने सभी का स्वागत किया। महामंत्री संपत राज मांडोत ने आभार व्यक्त किया। बताया गया कि 25 नवंबर तक पन्नवणा सूत्र पर प्रवचन जारी रहेंगे।