हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिवप्रताप शुक्ला ने यह टिप्पणी कर बहुत गहरी बात कही है कि धार्मिक स्थलों को पिकनिक स्थल नहीं समझना चाहिए। हाल के वर्षों में सड़कों के निर्माण और वाहन सुविधाएं बढ़ने से बहुत बड़ी संख्या में लोग धार्मिक स्थलों पर जाने लगे हैं। तीन दशक पहले, यहां वे ही लोग ज्यादा जाते थे, जिनका एकमात्र उद्देश्य आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करना हो। अब भी काफ़ी लोग इसी उद्देश्य के लिए जाते हैं। साथ ही, ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिनका उद्देश्य वहां मौज-मस्ती करना ज्यादा होता है। पिछले कुछ वर्षों से 'धार्मिक पर्यटन' जैसे शब्द बहुत प्रचलन में आ गए हैं। कुछ विशेषज्ञ टीवी चैनलों पर बताते हैं कि वहां 'धार्मिक पर्यटन' बहुत बढ़ गया, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। वे प्रमाण के तौर पर कुछ आंकड़े पेश करते हैं। ये आंकड़े अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन ऐसा विश्लेषण उन स्थलों की आध्यात्मिक विरासत को प्रकट नहीं कर सकता। अगर किसी को 'पर्यटन' यानी घूमने-फिरने के लिए जाना है, तो भारत में ऐसी जगहों की कोई कमी नहीं है। वहां लोग जाते हैं, खर्च की गई राशि का आनंद उठाते हैं, यादगार लम्हों को फोटो व वीडियो के तौर पर सहेजकर रखते हैं। यह पर्यटन है, जिसे केंद्र व राज्य सरकारें प्रोत्साहित करती हैं। अगर किसी को धार्मिक स्थलों पर जाना है तो वह 'पर्यटक' के तौर पर नहीं, बल्कि 'श्रद्धालु' के तौर पर जाए। इन स्थलों की पवित्रता और मर्यादा का खास ध्यान रखे।
धार्मिक स्थलों पर जाकर भारत की महान आध्यात्मिक परंपरा को जानने-समझने का प्रयास करना चाहिए। यहां मौज-मस्ती के लिए कोई जगह नहीं है, बल्कि इन स्थलों पर आना उन्हीं का सफल है, जो इनके संदेश को जीवन में उतारें। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों में समृद्धि आई है, संसाधनों तक उनकी पहुंच बढ़ी है, जिससे वे 'घूमना-फिरना' भी चाहते हैं। अब तो सोशल मीडिया इसकी एक बड़ी वजह बन गया है। लोग वीडियो बनाकर पोस्ट करते हैं। उन्हें देखकर और लोग भी वहां जाना चाहते हैं। वे इस सिलसिले को दोहराना चाहते हैं। अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों को जरूर देखना चाहिए। इसके साथ, उनकी 'प्रकृति' को नहीं भूलना चाहिए। धार्मिक स्थल संतों, तपस्वियों और दिव्य शक्तियों को समर्पित होते हैं। वहां जाकर मन में श्रद्धा का भाव और गहरा होना चाहिए। ऐसे बहुत लोग हैं, जो कभी वैष्णो देवी, अमरनाथ, केदारनाथ आदि तीर्थों की यात्रा पर गए और उससे उनके जीवन की दिशा बदल गई। बहुत लोग ऐसे होते हैं, जिनका किसी स्थान के साथ आध्यात्मिक जुड़ाव इतना गहरा हो जाता है कि वे वहां जाकर जूते-चप्पल तक नहीं पहनते। वे उस स्थान के कण-कण में समाई आध्यात्मिक ऊर्जा को करीब से महसूस करना चाहते हैं। धार्मिक स्थलों पर जाकर संयम का अधिकाधिक अभ्यास करना चाहिए। संयम सिर्फ खानपान का नहीं, आंखों, कानों और वाणी का भी होता है। वहां से लौटने के बाद संयम के अभ्यास को यथासंभव जारी रखना चाहिए। धार्मिक स्थल हमें प्रशिक्षित करते हैं, ताकि हम मन, वचन और कर्म से बेहतर मनुष्य बन सकें। जो 'पर्यटक' बनकर धार्मिक स्थल जाएंगे, वे इससे वंचित रह जाएंगे। उनकी दृष्टि वहां के भौतिक स्वरूप तक सीमित रहेगी। उनका ध्यान खर्च किए गए पैसों का भरपूर फायदा उठाने पर होगा। धार्मिक स्थल 'भोगभूमि' नहीं, बल्कि 'योगभूमि' हैं। जो लोग 'पैसा वसूल' और 'मनोरंजन' की मंशा के साथ जाना चाहते हैं, वे कहीं और जाएं। धार्मिक स्थल इन गतिविधियों के लिए बिल्कुल नहीं हैं।