'बोलने की शक्ति का समझदारी से उपयोग करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी'
अज्ञान दशा में मौन हितकारी नहीं हो सकता है
Photo: PixaBay
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। यहां शिवाजी नगर के गणेश बाग में विनय मुनि खींचन ने शुक्रवार को प्रवचन के दौरान कहा कि तीर्थंकर देवों ने जीवन को अमृतमय बनाने का मार्ग बताया है। साधना के पारगामी जीवन को सिद्धावस्था कहते हैं।
उन्होंने कहा कि पेड़-पौधों का जीवन भाषारहित होता है। उनसे हवा, पानी, भोजन - ये तीनों ही मानव जाति को जीवन जीने में बहुत मददगार हैं। इन तीनों का अनर्थ रूप से उपयोग नहीं करना चाहिए। साधना-आराधना के अभाव में जो भी भाषा बोली जाती है, उसे कल्याण रूप एकान्ततः नहीं मानी जाती है। अज्ञान दशा में मौन हितकारी नहीं हो सकता है। बोलने की शक्ति का समझदारी से उपयोग करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।विनय मुनि खींचन ने कहा कि ज्ञान पर ध्यान दिया जाता है, बोलने की कला पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। इसलिए आज घर-घर में क्लेश होने के बाद जो मौन होता है, वह 'मौन' नहीं होता है। बोलचाल बंद होने को मौन नहीं कहते हैं। मनुष्य को जितना जरूरत हो, उससे ज्यादा नहीं बोलना - यही जैन साधना का सार बताया गया है।
उन्होंने कहा कि आज घर-घर में झगड़े हो रहे हैं, उसका प्रमुख कारण क्रोध और अहंकार से भरी हुई भाषा है। उससे शांति घट रही है, अशांति बढ़ रही है। कितना बोलना, कैसे बोलना, मीठा बोलना, सत्य बोलना, हितकारी, मंगलकारी बोलना - यह बहुत बड़ी साधना है।
इस अवसर पर कालीकट से कमलेश कुमार कोठारी, इंदिरा देवी कोठारी, अजीत कुमार कोठारी, चेन्नई से पवन सुराणा, प्रदीप श्रीमाल, प्रशांतचंद कोठारी, भारती सिंघवी, कृति कोठारी, जुगराज बोरूंदिया, रमेश, मुकेश, ऊटी से गौतमचंद गैलडा, हर्षित, ताराचंद मेहता और अनेक श्रद्धालु मौजूद थे। संघ प्रवक्ता राजू सखलेचा ने सभी का स्वागत किया। महामंत्री संपत राज मांडोत ने आभार व्यक्त किया। गणेश बाग में दैनिक प्रवचन जारी हैं।