पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न की तुलना भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति से कर लोगों के बीच गलत संदेश का प्रसार कर रही हैं। ऐसा बयान लोगों को भ्रम में डाल सकता है। भारत में ऐसी स्थिति कहां है? क्या महबूबा मुफ्ती नहीं जानतीं कि पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश में क्या हुआ और अभी क्या हो रहा है? भारत के सामुदायिक सद्भाव की मिसाल दी जाती है। यहां कुछ समस्याएं जरूर हैं। उनके होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। बेशक भारत में भी कुछ खुराफाती तत्त्व हैं, जिन्हें देश में शांति एवं सद्भाव नहीं सुहाते। वे हमेशा रंग में भंग डालने की कोशिशें करते रहते हैं, लेकिन इस देश के बहुसंख्यक लोगों ने ऐसे तत्त्वों को कभी हावी नहीं होने दिया। जबकि बांग्लादेश में तो महीनों से हुड़दंग मचा हुआ है। महबूबा मुफ्ती को यह अंतर समझना होगा। भारत में हर धर्म के लोग बहुत प्रेम से रहते हैं। इतनी ज्यादा विविधता वाले देश को चलाना कोई मामूली बात नहीं है। यहां होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस समेत सभी त्योहार मिल-जुलकर मनाए जाते हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे के लिए नेक भावनाएं रखते हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां अलग-अलग समुदायों के पूजन स्थल एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। वहां लोग सदियों से आरती, इबादत, प्रेयर, अरदास कर रहे हैं। आज तक किसी को कोई समस्या नहीं हुई। ऐसे में बांग्लादेश के हालात से जोड़कर कोई बयान देना हकीकत से परे है। इस पड़ोसी देश में लूट-मार जोरों पर हैं। शेख हसीना के समर्थकों को उनकी राजनीतिक विचारधारा के कारण निशाना बनाया जा रहा है, जिनमें कई लोगों की तो हत्याएं कर दी गईं। वहीं, हिंदुओं का उत्पीड़न जोर-शोर से जारी है। बांग्लादेश का अल्पसंख्यक समुदाय अपने प्राण बचाने के लिए पलायन करने को मजबूर है। महबूबा मुफ्ती किस बात को कहां जोड़ रही हैं?
क्या जम्मू-कश्मीर की इन पूर्व मुख्यमंत्री को नब्बे के दशक का वह दौर याद नहीं जब कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में 'शरणार्थी' बनना पड़ा था? उस दौरान कितने ही कश्मीरी पंडितों की हत्याएं कर दी गई थीं, महिलाओं के साथ अशोभनीय हरकतें की गई थीं। जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं ने कितनी बार कश्मीरी पंडितों के लिए आवाजें उठाईं? इन्होंने कब कहा कि हमारे उन बिछड़े भाइयों-बहनों का स्वागत करेंगे, उनकी सुरक्षा हम करेंगे? कश्मीरी पंडित बहुत मेहनती और स्वाभिमानी लोग हैं। वे जन-धन की हानि के बाद फिर से संभल गए। आज वे देश-विदेश में अपनी योग्यता के बूते बड़े-बड़े पदों पर सेवारत हैं। उन्हें किसी की हमदर्दी की जरूरत नहीं है। उनके साथ अपनी मातृभूमि पर जो कुछ हुआ, उस पर बात तो होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ नेता इस संबंध में क्या कर रहे हैं? क्या वे वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर कोई ठोस कदम उठाएंगे? महबूबा मुफ्ती ने कुछ धार्मिक स्थानों के सर्वेक्षण पर आपत्ति जताते हुए जो बयान दिया, वह भी वास्तविकता से दूर है। ये सर्वेक्षण न्यायालयों के आदेश से हो रहे हैं। बेहतर तो यह होता कि ये मामले न्यायालयों में जाते ही नहीं। हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि जो विदेशी आक्रांता यहां आए, उन्होंने बहुत बड़ी संख्या में मंदिरों को निशाना बनाया और लोगों पर घोर अत्याचार किए थे। आक्रांता हमारे हीरो नहीं हो सकते। उन्होंने इस देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ... हर दृष्टि से बहुत हानि पहुंचाई थी। यह समय इस बात का नहीं है कि हम उन आक्रांताओं की हर गलती और गुनाह का हिसाब करते रहें। अभी तो देश में करोड़ों लोगों तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचानी हैं। हर समुदाय के लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना है। इसके लिए जरूरी है कि आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थानों के मामले बहुत आत्मीयता एवं सद्भाव के माहौल में सुलझा लिए जाएं, किसी को न्यायालय जाना ही न पड़े। श्रीराम जन्मभूमि का मामला ऐसे सुलझाया जाता तो क्या ही बात होती! हम सब भारत मां की संतानें हैं। अगर विवादों को विवेक एवं शांति से सुलझाकर अपनी ऊर्जा देश के विकास में लगाएंगे तो भविष्य को उज्ज्वल बनाएंगे।